अगर सीपीसी के आदेश 41 नियम 5 के तहत जारी निर्देश मनमाना और विकृत है तो उसमें हस्तक्षेप किया जा सकता है : बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर किसी अपीली अदालत ने सीपीसी के आदेश 41 नियम 5 के तहत कोई आदेश किया है जो मनमाना और विकृत है तो उसमें हस्तक्षेप किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति दामा शेशाद्रि नायडू ने कहा,
"मेरा मानना है कि सीपीसी के आदेश 41 नियम 5 के तहत अपीली अदालत के अधिकार एक विवेकाधीन अधिकार है। और जब तक इसके तहत कोई निर्देश मनमाना और विकृत नहीं है, अपीली अदालत सीपीसी की धारा 115 या अनुच्छेद 227 के तहत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।"
अदालत ने कहा कि सीपीसी के आदेश 41 नियम 5 एक अपील में मदद करने का उपाय है और यह विपक्ष को समान स्तर पर रखने का उपाय है।
न्यायमूर्ति नायडू ने कहा,
"यह प्रतिस्पर्धी पक्षों के हितों के बीच संतुलनकारी उपाय है…एक पक्ष जिसके समर्थन में फ़ैसला दिया गया है और एक ऐसा पक्ष जो इस आशा में है कि अपील से उसके पक्ष में फ़ैसला होगा।"
पृष्ठभूमि :
प्रतिवादी ट्रस्ट ने 1961 में याचिकाकर्ता को खुली जगह का एक हिस्सा लीज़ पर दिया। याचिकाकर्ता को इस जगह पर निर्माण करने और 40 साल तक इसका प्रयोग करने की अनुमति दी गई थी। 1964 में एक औपचारिक समझौता हुआ जिसमें यह कहा गया कि याचिकाकर्ता इस पर चार मंज़िला निर्माण कर सकता है और 40 साल की लीज़ को अगले 40 साल के लिए और बढ़ा दिया गया।
जब लीज़ 2001 में समाप्त हुई, ट्रस्ट ने अपना लीज़होल्ड अधिकार मूल प्रतिवादी को दे दिया। 2005 में प्रतिवादी ने किराया और बेदख़ली (आरएई) का मुक़दमा दायर किया और उसने किरायेदार को इस आधार पर वहाँ से बेदख़ली की माँग की कि उसने इस जगह को किसी और को किराए पर दे दी है और इस तरह इसके प्रयोग की शर्त का उल्लंघन किया है।
एक अन्य आरएई मुक़दमा इसी परिसंपत्ति के बारे में दायर किया गया कि जिस उप-किरायेदार को यह जगह दी गई है वह इसका प्रयोग ग़ैरक़ानूनी और अनैतिक कार्यों के लिए कर रहा है। निचली अदालत ने दोनों ही मामलों में सुनवाई के बाद किरायेदार को जगह ख़ाली कर देने का आदेश दिया।
मूल किरायेदार और उप-किरायेदार दोनों ने इस आदेश को चुनौती दी। अपीली अदालत ने आदेश पर रोक लगा दिया और यह शर्त लगाई कि किरायेदार इस परिसंपत्ति के प्रयोग के एवज़ में परिसंपत्ति के मालिक को अदालत द्वारा निर्धारित राशि हर महीने अंतरिम राहत के रूप में देंगे। अपीलकर्ताओं ने हाईकोर्ट में दो रिट याचिकाएँ दायर की।
पीठ ने सुनवाई में कहा -
"अंतरिम राहत का आदेश इसलिए दिया गया है ताकि किसी भी पक्ष को दूसरे की तुलना में वरीयता नहीं मिले। अगर राशि बहुत ज़्यादा या बहुत कम होती है तो इससे दोनों ही पक्षों के साथ ग़ैर-बराबरी होगी। सीपीसी के आदेश 41 नियम 5 के तहत पूरा प्रयास है दोनों ही पक्षों को बराबरी देना। यह संतुलनकारी कार्य है। एक पक्ष जिसके समर्थन में फ़ैसला दिया गया है और एक ऐसा पक्ष जो इस आशा में है कि अपील से उसके पक्ष में फ़ैसला होगा।"
अदालत ने याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए कहा कि अपीली अदालतों के आदेश तरकपूर्ण हैं और इनमें किसी भी तरह के हस्तक्षेप की ज़रूरत नहीं है।
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