जांच अधिकारी के स्वयं कानूनी विशेषज्ञ होने पर विभागीय कार्रवाई का सामना कर रहे कर्मचारी को अपने बचाव के लिए वकील नियुक्त करने की अनुमति है: गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2023-01-19 08:32 GMT

गुजरात हाईकोर्ट विभागीय कार्यवाही के संदर्भ में माना कि जांच अधिकारी के स्वयं कानूनी विशेषज्ञ होने पर आरोपी कर्मचारी अपने बचाव के लिए वकील नियुक्त करने का हकदार है।

जस्टिस ए.एस. सुपेहिया ने ऐसे ही कर्मचारी द्वारा की गई याचिका स्वीकार करते हुए कहा,

"वर्तमान मामले में चूंकि जांच अधिकारी खुद सिटी सिविल जज हैं और कानूनी कार्यवाही के विशेषज्ञ हैं, इसलिए याचिकाकर्ता के मामले में बचाव करने के लिए वकील नियुक्त करने से इनकार नहीं किया जा सकता... सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि यदि किसी कर्मचारी के खिलाफ शुरू की गई जांच में कानूनी कौशल रखने वाले किसी भी व्यक्ति को जांच अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाता है, आरोपी कर्मचारी की जांच में सहायता के लिए लीगल प्रैक्टिशनर से इनकार करना अनुचित होगा।"

अदालत रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें याचिकाकर्ता को जांच में अपने बचाव के लिए लीगल प्रैक्टिशनर की सेवा लेने से इनकार किया गया। विशेष सतर्कता अधिकारी के समक्ष शिकायत के बाद जांच शुरू की गई और अनुशासनात्मक अधिकारी सिटी सिविल एंड सेशन कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश हैं।

इस पृष्ठभूमि में याचिकाकर्ता ने कार्यवाही का बचाव करने के लिए लीगल प्रैक्टिशनर नियुक्त करने की अनुमति का अनुरोध करते हुए आवेदन दायर किया, जिसे खारिज कर दिया गया।

न्यायालय ने पाया कि गुजरात सिविल सेवा (अनुशासनात्मक और अपील) नियम, 1971 के नियम 9(5)(सी) के तहत अपराधी द्वारा अनुशासनात्मक कार्यवाही में लीगल प्रैक्टिशनर नियुक्त करने पर कोई पूर्ण रोक नहीं है।

अदालत ने प्रोफेसर रमेश चंद्र बनाम दिल्ली यूनिवर्सिटी, अन्य ऑनलाइन 2015 एससी 483 (2015 (5) एससीसी 549) पर भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

"जहां घरेलू न्यायाधिकरण के समक्ष जांच में दोषी अधिकारी को कानूनी रूप से प्रशिक्षित विवेक के खिलाफ खड़ा किया जाता है। अगर वह लीगल प्रैक्टिशनर के माध्यम से पेश  होने की अनुमति मांगता है तो इस अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार करना खुद को बचाने के लिए उचित अनुरोध से इनकार करना होगा और प्राकृतिक न्याय के आवश्यक सिद्धांतों का उल्लंघन होगा...।"

अंत में अदालत ने प्रतिवादी प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को जांच में अपना बचाव करने के लिए लीगल प्रैक्टिशनर को नियुक्त करने की अनुमति दे।

अदालत ने आदेश दिया,

"इस तरह के लीगल प्रैक्टिशनर का नाम प्रतिवादी नंबर 2-जांच अधिकारी को 15 दिनों की अवधि के भीतर दिया जाएगा। ऐसा नाम दिए जाने के बाद जांच अधिकारी यानी प्रतिवादी नंबर 2 विभागीय कार्यवाही में याचिकाकर्ता का पक्ष प्रस्तुत करने के लिए लीगल प्रैक्टिशनर को मामले का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति देगा।“

केस टाइटल: दिव्येश गोविंदभाई कुंवरिया बनाम गुजरात राज्य

कोरम : जस्टिस ए.एस. सुपेहिया

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