दुर्गा पूजा के लिए निर्धारित भूमि पर अन्य उत्सवों की अनुमति देने से इनकार करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन: कलकत्ता हाईकोर्ट ने गणेश पूजन की अनुमति दी

Update: 2023-09-09 04:52 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को आसनसोल दुर्गापुर विकास प्राधिकरण (ADDA) को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ताओं को 18-22 सितंबर के बीच सार्वजनिक मैदान पर गणेश पूजा समारोह आयोजित करने की अनुमति दे। इस मैदान का उपयोग सरकारी कार्यों और दुर्गा पूजा के लिए किया जाता है।

जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य की एकल पीठ ने कहा कि गणेश पूजा की मेजबानी से इनकार करना और उसी आधार पर दुर्गा पूजा मनाने की अनुमति देना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।

कोर्ट ने कहा कि यदि ज़मीन पर दुर्गा पूजा की अनुमति दी जाती है, जो हिंदुओं का उत्सव भी है, तो कोई कारण नहीं है कि अन्य धर्मों या उसी धर्म के उत्सव, चाहे वे अन्य मूर्तियों के हों, उनको अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ADDA द्वारा किए जाने वाला यह भेदभाव अनुच्छेद 14 के अपवादों के भीतर उचित वर्गीकरण के दायरे में आने के लिए पर्याप्त रूप से समझ में आने योग्य नहीं है। दुर्गा पुला उत्सव के साथ सरकारी कार्यक्रमों का समीकरण ज्यादा बेतुका है। यदि दुर्गा पूजा को अन्य सरकारी कार्यक्रमों के साथ समान स्तर पर कहा जा सकता है तो ऐसा कोई प्रशंसनीय कारण नहीं है कि गणेश पूजा या सार्वजनिक धार्मिक या उत्सव गतिविधि का कोई अन्य प्रदर्शन उसी के दायरे में नहीं आना चाहिए।

याचिकाकर्ता सिद्धि विनायक पूजा समिति ने तर्क दिया कि यह मैदान अपनी प्रकृति में सार्वजनिक है। इसका उपयोग दुर्गा पूजा के लिए किया गया था। फिर 2022 में ADDA ने विशेष रूप से इस मैदान का उपयोग केवल दुर्गा पूजा समारोह के लिए करने का निर्णय लिया।

यह प्रस्तुत किया गया कि जहां तक सार्वजनिक संपत्तियों का संबंध है, गणेश पूजा और दुर्गा पूजा या अन्य सरकारी कार्यक्रमों के बीच कोई उचित अंतर नहीं है।

ADDA के वकील ने संविधान के अनुच्छेद 25 की तर्ज पर तर्क दिया। उन्होंने कहा कि धर्म का पालन करने के अधिकार में किसी भी संपत्ति को रखने या पूजा करने के लिए किसी विशेष स्थान पर किसी भी अधिकार का दावा करने का अधिकार शामिल नहीं है। यह तर्क दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसलों के अनुसार, जब तक कि विचाराधीन ज़मीन किसी विशेष धार्मिक संप्रदाय के लिए पूजा का अभिन्न अंग न हो, याचिकाकर्ता उस पर अपने उत्सव की मेजबानी पर कोई दावा नहीं कर सकते।

वकील ने अदालत के पहले के फैसले पर भरोसा करते हुए कहा कि दुर्गा पूजा अर्ध-धर्मनिरपेक्ष त्योहार है। साथ ही तर्क दिया कि कम से कम पश्चिम बंगाल में गणेश पूजा इतनी महत्वपूर्ण, समावेशी या व्यापक नहीं है।

ADDA द्वारा अनुमति देने से इनकार करने पर अदालत ने कहा कि एकमात्र कारण यह है कि बोर्ड द्वारा मैदान को विशेष रूप से सरकारी कार्यक्रमों और दुर्गा पूजा के लिए वर्गीकृत किया गया है।

कोर्ट ने माना कि वर्तमान मामला संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत याचिकाकर्ताओं के अधिकारों से संबंधित नहीं है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत उनके समानता के अधिकार का प्रश्न है।

इसमें कहा गया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा जिस अधिकार का दावा किया जा रहा है वह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 सपठित संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत जीवन के अधिकार के समान है, जो भारत के प्रत्येक नागरिक में निहित है। इसमें सम्मान के साथ और उचित तरीके से जीने का अधिकार शामिल है, जिसमें मोटे तौर पर किसी व्यक्ति के अपने उत्सवों और समारोहों का अभ्यास करने का अधिकार भी शामिल है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो।

तदनुसार, खंडपीठ ने माना कि समान धार्मिक समारोह दुर्गा पूजा उत्सव के लिए उपयोग किए जाने वाले मैदान का याचिकाकर्ताओं के उपयोग करने से ADDA द्वारा बिना किसी स्पष्ट अंतर या उचित वर्गीकरण के इनकार करना कानून की दृष्टि से गलत है। इससे याचिकाकर्ता के समानता के अधिकार का उल्लंघन भी हुआ है।

निष्कर्ष में अदालत ने ADDA को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ताओं को 18-22 सितंबर के बीच विशेष सार्वजनिक भूमि पर गणेश पूजा समारोह आयोजित करने की अनुमति दे। साथ ही याचिकाकर्ताओं को कानून और व्यवस्था बनाए रखने और प्रतिवादी प्राधिकारी को ज़मीन का खाली कब्जा वापस सौंपने का निर्देश दिया।

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