डीवी एक्ट का मामला-घरेलू हिंसा के अर्थ के तहत पत्नी को भरण पोषण भत्ता देने से इनकार करना ''आर्थिक दुर्व्यवहार'' करने के समानः त्रिपुरा हाईकोर्ट
त्रिपुरा हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 3 के तहत एक पति द्वारा अपनी पत्नी को भरण पोषण भत्ता देने से इनकार करना उसके साथ आर्थिक दुर्व्यवहार करने के समान है।
याचिकाकर्ता पति ने 18 जुलाई 2020 के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित फैसले को चुनौती देते हुए एक क्रिमनल रिविजन पिटिशन दायर की थी। उक्त निर्णय में कहा गया था कि पति ने अपनी पत्नी के साथ घरेलू हिंसा की है और निर्देश दिया गया था कि वह अधिनियम का 20 (1) (डी) के तहत अपनी पत्नी को 15000 रुपये प्रतिमाह के भरण पोषण के रूप में मौद्रिक राहत दे।
याचिकाकर्ता पति ने मासिक भरण पोषण भत्ता के अनुदान को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि उसके कंधों पर उसकी बूढ़ी बीमार माँ का चिकित्सा खर्च और बेटे की शिक्षा का खर्च है,क्योंकि बेटे की कस्टडी उसको मिली हुई है।
दूसरी ओर, प्रतिवादी पत्नी का कहना था कि चूंकि याचिकाकर्ता एक सरकारी कर्मचारी है,इसलिए उसे 50000 रुपये प्रतिमाह मासिक वेतन मिलता है और वह अपनी पत्नी का खर्च उठाने के योग्य है। इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि अधिनियम की धारा 20 के तहत दी गई मौद्रिक राहत सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दिए गए भरण पोषण भत्ता से अलग है।
न्यायमूर्ति एस जी चट्टोपाध्याय ने एक्ट की धारा 20 (मौद्रिक राहत) रिड विद धारा 3 (घरेलू हिंसा की परिभाषा) की व्याख्या करते हुए कहा किः
''डीवी अधिनियम की धारा 3 के तहत (जो घरेलू हिंसा को परिभाषित करती है) 'आर्थिक दुर्व्यवहार' घरेलू हिंसा का एक रूप है। धारा 3 के स्पष्टीकरण I का खंड (iv) 'आर्थिक दुर्व्यवहार' से संबंधित है, जिसमें सभी या किसी भी ऐसे आर्थिक वित्तीय संसाधन का अभाव शामिल है,जिसके लिए पीड़ित व्यक्ति किसी कानून या रिवाज के तहत हकदार है, जो चाहे अदालत के आदेश के तहत देय हो या अन्यथा।''
वर्तमान मामले के तथ्यों पर आते हुए, न्यायालय ने पाया कि पत्नी कानूनी रूप से पति के सरकारी वेतनभोगी कर्मचारी होने के चलते भरण पोषण भत्ते की हकदार थी। न्यायालय ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि चूंकि महिला एक गृहिणी थी जो बिना किसी जीवन यापन के स्रोत के अब अलग रह रही है, इसलिए कोर्ट ने माना किः
''इन परिस्थितियों में, पत्नी को भरण पोषण भत्ते से वंचित करना स्पष्ट रूप से डीवी अधिनियम की धारा 3 के तहत घरेलू हिंसा की परिभाषा में उसके साथ 'आर्थिक दुर्व्यवहार ' का कारण बनेगा। इसलिए, निचली अदालत के फैसले में कोई कमी नहीं है।''
इसे देखते हुए, न्यायालय ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें पति को निर्देश दिया गया था कि वह अपनी पत्नी को 15000 रुपये प्रतिमाह भरण पोषण भत्ते के तौर पर दे।
केस का नामः रामेंद्र किशोर भट्टाचार्जी बनाम श्रीमती मधुरिमा भट्टाचार्जी Crl. Rev. P. No. 36 of 2020
फैसले की तारीखः 10.02.2021
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