दिल्ली दंगे| "शाहरुख पठान का आपराधिक मामलों का इतिहास, अवैध कृत्यों के लिए कोई पछतावा नहीं": दिल्ली हाईकोर्ट में अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिका का विरोध किया
दिल्ली हाईकोर्ट में उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान एक पुलिसकर्मी पर बंदूक तानने वाले शाहरुख पठान द्वारा दायर जमानत याचिका का विरोध करते हुए अभियोजन पक्ष ने कहा कि पठान का आपराधिक मामलों का इतिहास रहा है और उसे अपने अवैध कार्यों पर कोई पछतावा नहीं है।
यह मामला दंगा करने, पुलिस कर्मियों को घायल करने और एक सशस्त्र भीड़ द्वारा रोहित शुक्ला को गोली मारने से संबंधित है। (एफआईआर 49/2020 जाफराबाद पुलिस स्टेशन में दर्ज)
जमानत याचिका में दायर स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया कि पठान गवाहों को सक्रिय और निष्क्रिय तरीके से प्रभावित कर सकता है, क्योंकि उसका अपराधिक इतिहास रहा है।
जमानत याचिका का विरोध इस आधार पर किया गया कि पठान दंगों के एक अन्य मामले में शामिल रहा है। इसमें उसे पहले ही जमानत से वंचित कर दिया गया है।
स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया,
"याचिकाकर्ता अवैध हथियार और गोला-बारूद रखता रहा है। उसे अपने अवैध कृत्य के लिए कोई पछतावा नहीं है। एक पुलिसकर्मी और जनता पर गोली चलाने का उसका कार्य दिखाता है कि अगर जमानत पर रिहा होता है तो वह इस तरह के आपराधिक कृत्य को दोहरा सकता है।"
यह भी कहा गया कि पठान घटना के बाद से फरार हो गया था और पिछले दो साल से जेल में बंद है, जबकि उसकी कई जमानत याचिकाएं पहले ही खारिज हो चुकी हैं।
रिपोर्ट में कहा गया,
"इसे देखते हुए जमानत पर रिहा होने पर याचिकाकर्ता फिर से फरार हो सकता है।"
स्टेट्स रिपोर्ट में आगे कहा गया कि चश्मदीद गवाहों और बरामद सीसीटीवी फुटेज के बयान से साबित होता है कि पठान भीड़ का नेतृत्व कर रहा था और 24 फरवरी, 2020 को दंगा करने के कृत्य में शामिल था। इसी दौरान उसने शिकायतकर्ता और जनता पर अपनी पिस्तौल से गोलियां चलाईं।
रिपोर्ट में कहा गया,
"आवेदक के पिता साबिर अली @ बलदेव सिंह को पीएस कोतवाली, दिल्ली में रजिस्टर्ड एफआईआर नंबर 03/10 के मामले में विदेशी अधिनियम की धारा 14 सपठित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) धारा 489 बी, 489 सी, 120 बी और 20/61/85 एनडीपीएस अधिनियम के तहत आरोपों में एक लाख रुपये के जुर्माने के साथ 10 साल के लिए दोषी ठहराया गया था। उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार, आवेदक के पिता को भी अपराध शाखा द्वारा वर्ष 1994 में प्रतिबंधित 'चरस' रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और वर्ष 1995 में उसे चार सहयोगियों के साथ 60 किलोग्राम हेरोइन के साथ राजस्थान, बीकानेर में गिरफ्तार किया गया, इसलिए आवेदक का आपराधिक मामलों का इतिहास है।"
आगे कहा गया,
"पुलिस और सार्वजनिक गवाह हैं जिन्होंने आवेदक की पहचान की है। आपराधिक इतिहास और आवेदक की हताश प्रकृति से स्पष्ट रूप से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि गवाहों पर आवेदक द्वारा प्रतिकूल प्रभाव डाला जा सकता है।"
पठान की जमानत याचिका को शहर की एक सत्र अदालत ने पिछले साल दिसंबर में तब खारिज कर दिया था। अदालत ने कहा था कि संबंधित स्थान पर लगे नजदीकी सीसीटीवी कैमरे के फुटेज में दंगाइयों में उसकी मौजूदगी दिखाई दे रही है।
शाहरुख पठान के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 147, 148, 149, 186, 188, 153ए, 283, 353, 332, 323, 307, 505 और 120बी सपठित धारा 34 और आर्म्स एक्ट की धारा 27 के तहत मामला दर्ज किया गया।
घायल पुलिस अधिकारी रोहित शुक्ला ने बयान दिया कि पिछले साल 24 फरवरी को लोगों के दो समूह थे, जिनमें से एक "अल्लाहु अकबर" के नारे लगा रहा था और सीएए और एनआरसी का विरोध कर रहा था। उन्होंने यह भी कहा कि गैरकानूनी सभा हिंसक हो गई और पथराव शुरू कर दिया। इसी दौरान एक व्यक्ति ने उस पर पिस्तौल से गोली चला दी।
रोहित ने यह भी बयान दिया कि एक अन्य स्थान पर हिंसक भीड़ में से 24 से 25 साल का एक लड़का पिस्तौल लेकर बाहर आया और उसे मारने की कोशिश की। बयान के अनुसार, यह आरोप लगाया गया कि लड़के ने गवाह पर गोली चलाई, जो तब घायल हो गया।
केस शीर्षक: शाहरुख पठान बनाम राज्य