दिल्ली दंगाः दिल्ली की अदालत ने कहा, पुलिस का यह बयान कि मुस्लिम दंगाई ने हिंदू दंगाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मुस्लिम युवकों को मारा, भरोसे के काबिल नहीं है; आरोपी को जमानत दी
उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े दो अलग-अलग मामलों में एक व्यक्ति को जमानत देते हुए कड़कड़डूमा कोर्ट (दिल्ली) ने टिप्पणी की, "दिमाग के लिए यह भरोसा कर पाना कठिन है कि आवेदक, एक मुस्लिम होने के नाते, इस प्रकार के उत्तेजक माहौल में "गैरकानूनी रूप से इकट्ठा" हुए लोगों के साथ, जिसमें मुख्य रूप से हिंदू समुदाय के लोग शामिल थे, कंधे से कंधा मिलाएगा और एक मुस्लिम लड़के को पीट-पीट कर मार डालेगा।"
शुक्रवार (11 दिसंबर) को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने दो युवकों जाकिर और अशफाक हुसैन की मौत के मामले में एक ही व्यक्ति (आरिफ) की ओर से दायर दो जमानत आवेदनों (दो अलग-अलग मामलों से संबंधित) पर सुनवाई की।
आवेदक के खिलाफ आरोप है कि वह "गैरकानूनी से रूप से इकट्ठ हुई एक भीड़" का हिस्सा/ सदस्य था, जिसका सामान्य उद्देश्य दूसरे समुदाय के सदस्यों की संपत्ति, जीवन और अंगों को अधिकतम नुकसान पहुंचाना था।
तर्क
जमानत आवेदक के वकील द्वारा यह तर्क दिया गया कि मामले में एक मुस्लिम लड़के ने अपनी जान गंवाई है और इस मामले में फंसे सभी लोग हिंदू हैं और इसलिए, यह काफी भयावह है कि एक मुस्लिम लड़का (यानी आवेदनकर्ता) "दंगाई भीड़" का हिस्सा बन जाएगा, जिसमें मुख्य रूप से हिंदू समुदाय के लोग शामिल थे।
दूसरी ओर, राज्य के लिए विशेष पीपी ने दावा किया कि आवेदक गैरकानूनी भीड़/ दंगाई भीड़ का हिस्सा था, जिसने मृतक जाकिर और अशफाक हुसैन को गंभीर चोटें पहुंचाई थीं, जो अंततः उनकी मृत्यु का कारण बना।
आगे यह तर्क दिया गया कि अजय @ मोनू, अशोक कुमार, शुभम और जितेन्द्र जैसे कई सह-अभियुक्तों की नियमित जमानत अर्जी न्यायालय ने पहले ही खारिज कर दी है और इसलिए, मौजूदा जमानत आवेदनों को भी खारिज कर दिया जाना चाहिए।
कोर्ट का अवलोकन
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "यह बहुत ही उलझन भरा है कि एक मुस्लिम लड़का एक "गैरकानूनी भीड़" का हिस्सा बन जाएगा, जिसमें ज्यादातर हिंदू समुदाय के सदस्य शामिल थे, जिनका आम उद्देश्य दूसरे समुदाय की संपत्ति, जीवन और अंगों को अधिकतम नुकसान पहुंचाना था।"
इस पृष्ठभूमि में, कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया, यह नहीं कहा जा सकता कि आवेदक को "गैरकानूनी भीड़" का हिस्सा था या घटना की तारीख को उसने भीड़ साथ "सामान्य उद्देश्य" साझा किए थे। कोर्ट ने कहा, "जैसा कि, आवेदक के मामले में धारा 141 आईपीसी के प्रावधानों को आकर्षित नहीं होती है, तो वह धारा 149 आईपीसी के दायरे से बाहर हो जाएगा।"
इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि एक बार आवेदक धारा 149 आईपीसी के दायरे से बाहर हो जाता है, तो उसे धारा 302 आईपीसी के तहत आरोपी नहीं माना जा सकता है।
यह देखते हुए कि आवेदक किसी भी सीसीटीवी / वीडियो फुटेज में दिखाई नहीं दिया था, अदालत ने कहा चश्मदीदों ने "मामले में आवेदक की भूमिका विशेष रूप से स्पष्ट नहीं की है और उनके बयान प्रथम दृष्टया सामान्य प्रतीत होते हैं।"
समग्र रूप से मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, आवेदक आरिफ की जमानत अर्जी स्वीकार कर ली गई।
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