सिर्फ सीसीटीवी फुटेज में नहीं दिखाई देना गैर कानूनी सभा में शामिल नहीं होने का आधार नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्ट ने जमानत याचिका पर सुनवाई की
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि दिल्ली दंगा मामले के एक आरोपी को सीसीटीवी फुटेज में नहीं देखा जाना मामले में बेगुनाही का दावा करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकता।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने मामले से संबंधित जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा,
"यह हजारों लोगों के साथ सिर्फ दो मिनट का वीडियो है। केवल इसलिए कि आप इसमें दिखाई नहीं दिए, यह कहने का कोई आधार नहीं है कि आप वहां नहीं थे।"
यह टिप्पणी तब की गई जब एक वकील ने तर्क दिया कि संबंधित आरोपी को कथित भीड़ के फुटेज में नहीं देखा गया था। इस वीडियो को अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
यह तर्क दिया गया कि आरोपी कथित गैरकानूनी सभा (विधि विरुद्ध जमाव) का हिस्सा नहीं था, क्योंकि उन्हें सीसीटीवी कैमरों में नहीं देखा गया।
इस तर्क को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा,
"कैमरे को इस प्रक्रिया में व्यवस्थित रूप से कवर/डिस्लोड किया गया था। स्पॉट नहीं किया जाना इस बिंदु पर आधारित नहीं है।"
पीठ ने कहा कि आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 149 के तहत गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने का आरोप लगाया जाना चाहिए या नहीं, यह मुकदमे में निर्धारण का मामला है और जमानत अदालत के लिए चिंता का विषय़ नहीं है।
अपने सबमिशन में एएसजी एसवी राजू ने वीडियोग्राफी के माध्यम से आरोपी व्यक्तियों की पहचान करने के कार्य को "जटिल" कार्य करार दिया।
उन्होंने तर्क दिया,
"अगर किसी व्यक्ति की पहचान की जाती है तो यह एक बोनस है, लेकिन अगर वह नहीं है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह भीड़ का हिस्सा नहीं था।"
रक्षा की प्रस्तुतियाँ
अधिवक्ता सलीम मलिक ने अदालत से आरोपी इरशाद अली की ओर से पेशे होते हुए एक दर्जी और एक नाबालिग सहित तीन बेटियों के पिता को रिहा करने के लिए राजी किया।
उन्होंने जोर देकर कहा कि मामले में 400 से अधिक गवाह हैं और मुकदमा जल्द शुरू होने की संभावना नहीं है।
आरोपी फुरकान, सादिक और सुवलीन की ओर से अधिवक्ता दिनेश तिवारी पेश हुए।
उन्होंने कहा कि फुरकान को पुलिस द्वारा पेश की गई किसी भी वीडियो क्लिपिंग में नहीं देखा गया, क्योंकि वह कथित गैरकानूनी सभा का हिस्सा नहीं था।
तिवारी ने कहा,
"वह केवल एक फुटेज में दिखाई दे रहा है, जो उसकी अपनी गली का है।"
सीसीटीवी फुटेज से सादिक की पहचान पीले रंग की टी-शर्ट में उस व्यक्ति के रूप में हुई है, जो अपराध स्थल की ओर बढ़ रहा था, जहां पुलिसकर्मियों के साथ मारपीट की गई थी।
कोर्ट ने पूछा,
"वह पीली टी-शर्ट में आदमी है?"
तिवारी ने जवाब दिया,
"हाँ, लेकिन उसका चेहरा नहीं दिख रहा है। तो वे कैसे कह सकते हैं कि यह मैं हूँ?"
अदालत ने कहा,
"यह ट्रायल में निर्धारित किया जाएगा।"
तिवारी ने यह भी तर्क दिया कि दंगों के दौरान मारे गए हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या में सादिक की कोई संलिप्तता नहीं थी।
तिवारी ने तर्क दिया,
"उनके पास बंदूक नहीं थी।"
इस तर्क को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा,
"सिर्फ इसलिए कि आपको बंदूक के साथ नहीं देखा गया इसका मतलब यह नहीं है कि आपके पास बंदूक नहीं थी।"
जहां तक आरोपी सुवलीन का सवाल है, तिवारी ने तर्क दिया कि वह कथित साजिश में शामिल नहीं था।
तिवारी ने कहा,
"उसके खिलाफ कोई गवाह नहीं है, कोई सीसीटीवी फुटेज नहीं है। अभियोजन का दावा है कि हिंसा पूर्व नियोजित है। लेकिन रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि मेरे मुवक्किल सभा में मौजूद था। वह किसी पूर्व योजना का हिस्सा नहीं हैं।"
अदालत ने हालांकि वकील से कहा कि वह अपनी दलीलें जमानत के सवाल तक सीमित रखें, न कि आरोप तय करने तक।
कोर्ट ने आरोपी मोहम्मद के वकील शाहिद अली को भी सुना।
एक तलवार ले जाते हुए देखे गए इब्राहिम को अदालत ने, "सबसे घातक हथियार" कहा था।
कोर्ट ने पूछा,
"वह तलवार से क्या कर रहा था।"
बचाव पक्ष ने दावा किया कि वह अपने इलाके की रक्षा के लिए तलवार लिए हुए था और वह अपने इलाके के पास स्थित किसी भी सीसीटीवी फुटेज में नहीं दिख रहा है।
मामले की सुनवाई अब 16 अगस्त को शाम 4.30 बजे होनी है, जहां लोक अभियोजक प्राथमिकी दर्ज करने में देरी आदि से संबंधित मुद्दों पर अदालत को संबोधित करेंगे।
केस शीर्षक: मोहम्मद आरिफ बनाम राज्य और अन्य जुड़े मामले