"दिल्ली दंगों और किसानों के विरोध ने सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा की, ये राष्ट्रीय महत्व के मामले": केंद्र ने एलजी की ओर से नियुक्त अभियोजकों का बचाव किया

Update: 2022-01-28 07:19 GMT

किसान विरोध और दिल्ली दंगों संबंधित मामलों पर बहस करने के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल की ओर से नियुक्त विशेष लोक अभियोजकों के बचाव में केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट से कहा है कि अत्यधिक संवेदनशील प्रकृति के होने के कारण मामले राष्ट्रीय महत्व के हैं।

केंद्र और दिल्ली एलजी की ओर से प्रस्तुत कॉमन काउंटर हलफनामे में कहा गया है कि दिल्ली दंगों और किसान आंदोलन, दोनों मामलों ने सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा की, जिससे देश की कानून और व्यवस्था में भरोसे का दोबारा स्‍थापित करने के लिए एफआईआर के कुशल, निष्पक्ष और न्यायसंगत अभियोजन की जरूरत है।

हलफनामे में कहा गया है, "केवल इसलिए कि घटनाएं केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के भौगोलिक अधिकार क्षेत्र में हुईं, उन मामलों को याचिकाकर्ता के सीधे नियंत्रण में आने के रूप में मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।"

किसानों के विरोध और दिल्ली दंगों से संबंधित मामलों पर बहस करने के लिए अपनी पसंद के अभियोजकों का एक पैनल नियुक्त करने के कैबिनेट के फैसले को पलटने के उपराज्यपाल के एक आदेश के खिलाफ दिल्ली सरकार की ओर से दायर एक याचिका में मौजूदा जवाबी हलफनामा दायर किया गया है।

मामले में दिल्ली सरकार ने दिल्ली पुलिस की सिफारिशों को खारिज कर दिया था और अपनी पसंद का पैनल नियुक्त किया था। बाद में, एलजी ने संविधान के अनुच्छेद 239-एए(4) के प्रावधान के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल किया और दिल्ली पुलिस की ओर से चुने गए अधिवक्ताओं को उन मामलों के संचालन के लिए एसपीपी के रूप में नियुक्त किया...।

हलफनामे में कहा गया है,

"अनुच्छेद 239AA के माध्यम से संविधान ने दिल्ली को हाइब्रिड किस्म का अनोखा दर्जा प्रदान करने का प्रयास किया है। बालकृष्ण समिति ने केंद्र शासित प्रदेश दिल्‍ली के लिए विधानसभा की सिफारिश करते हुए कहा कि दिल्ली संघ की राजधानी के रूप में समग्र राष्ट्र के लिए अद्वितीय स्थिति रखती है और इसलिए यह राष्ट्रीय हित में है कि केंद्र सरकार उच्च स्तर की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राजधानी के मामलों पर व्यापक नियंत्रण रखे।"

यह प्रस्तुत किया गया है कि दिल्ली दंगों और किसानों के विरोध के मामलों ने संवेदनशील होने के साथ-साथ, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत ध्यान आकर्षित किया है।

हलफनामे में कहा गया "उपराज्यपाल केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के प्रशासक के रूप में कार्य करते हुए राष्ट्रपति के प्रतिनिधि होते हैं। इसलिए, ऐसे मामलों में, जहां संसद के बनाए कानूनों से मुद्दे उत्पन्न हुए हैं, लेफ्टिनेंट गवर्नर यानी प्रतिवादी नंबर एक पर उन मामलों में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की जिम्मेदारी है।"

याचिका में दिए गए इस तर्क का खंडन करते हुए कि 'एसपीपी की नियुक्ति' एक नियमित मामला था न कि एक असाधारण मामला जिसके लिए राष्ट्रपति का संदर्भ दिया जा सकता है।

इसे इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है, "मामलों के दो सेटों में गंभीर राष्ट्रीय चिंता के मामले शामिल हैं। उपराज्यपाल दिल्ली के केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक के रूप में कार्य करते हुए राष्ट्रपति के एक प्रतिनिधि की स्थिति में हैं। इसलिए, ऐसे मामलों में, जहां मुद्दे संसद के बनाए कानूनों से पैदा होते हैं, लेफ्टिनेंट गवर्नर यानि प्रतिवादी नंबर एक की उन मामलों में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की जिम्मेदारी है।"

आगे प्रस्तुत किया गया कि एलजी ने अत्यधिक संवेदनशील प्रकृति के मामलों के कुशल, त्वरित और न्यायपूर्ण अभियोजन के लिए अतिरिक्त एसपीपी की नियुक्ति की सिफारिश की थी और इसका अभियोजक की क्षमता या स्वतंत्रता पर कोई असर नहीं पड़ता है।

याचिका में कहा गया है कि जांच एजेंसी यानी दिल्ली पुलिस द्वारा एसपीपी की नियुक्ति एसपीपी की स्वतंत्रता पर आक्षेप करती है और निष्पक्ष सुनवाई की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन करती है।

केस शीर्षक: जीएनसीटीडी बनाम एलजी

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