दिल्ली दंगा: एक ऐसे सांप्रदायिक दंगे पर विश्वास करना मुश्किल है, जिसमें अपने ही समुदाय के व्यक्ति की हत्या की गई हो: दिल्ली हाईकोर्ट ने शाहिद मर्डर केस में गिरफ्तार 3 व्यक्तियों को जमानत दी
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को 24 फरवरी 2020 को हुए दंगों में शाहिद नामक व्यक्ति को मारने के आरोप में गिरफ्तार किए गए जुनैद, चांद मोहम्मद और इरशाद नाम के तीन अभियुक्तों को जमानत दे दी। इन आरोपियों को दयालपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर नंबर 84/2020 के तहत दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तारी किया था।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने तीनों अभियुक्तों को एक सामान्य आदेश के तहत जमानत दी।
कोर्ट ने कहा,
"न तो हत्या का उनका कोई उद्देश्य (मोटिव) था, न ही उनमें से कोई व्यक्ति कथित रूप से सप्तऋषि बिल्डिंग पर अपराध की नियत से मौजूद था। न ही अभियोजन पक्ष ने पूरे केस में अपराध करने के मकसद का उल्लेख किया। इस प्रकार, यह मानना मुश्किल है कि सांप्रदायिक दंगा याचिकाकर्ताओं द्वारा अपने ही समुदाय के व्यक्ति की मौत का कारण बन सकता है।"
24 फरवरी 2020 के दिन उत्तर पूर्वी दिल्ली के इलाकों में लगभग 3 बजे पथराव की घटनाएँ हुई थीं।
पुलिस द्वारा यह आरोप लगाया गया था कि सीएए की समर्थक एक हिंदू भीड़ ने मुस्लिम समुदाय पर पथराव करना शुरू कर दिया, जिससे वे पीछे हटने को मजबूर हो गए। इसके बाद, मुस्लिम दंगाई मुस्लिम बहुल चंद्रबाग क्षेत्र की ओर चले गये थे, जबकि हिंदू दंगाई यमुना विहार क्षेत्र की ओर मौजूद थे।
इस तरह की एक घटना में क्षेत्र की विभिन्न इमारतों की छतों पर भीड़ ने कब्जा करना शुरू कर दिया। मोहन नर्सिंग होम में कुछ दंगाइयों ने कब्जा कर लिया था, जबकि मुस्लिम भीड़ ने सप्तऋषि, इस्पात और एलॉए प्राइवेट लिमिटेड इमारतों की छतों पर कब्जा कर लिया था।
इन याचिकाकर्ताओं का मामला यह था कि पुलिस ने उन्हें केवल चश्मदीद गवाहों के बयानों के आधार पर गिरफ्तार किया था, जिन्होंने आरोप लगाया था कि वे गैरकानूनी रूप से इक्ट्ठा हुई भीड़ का हिस्सा थे, जिन्होंने वास्तविक निवासियों से जबरदस्ती सपऋषि इमारत खाली करवाने के बाद उस पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया था और सीसीटीवी कैमरा भी तोड़ दिया था।
तदनुसार, याचिकाकर्ताओं को उनके सीएएफ, कॉल डेटा रिकॉर्ड्स और मोबाइल फोन के बाद अपराध स्थल पर सक्रिय पाया गया था।
कोर्ट ने मामले के तथ्यों को मद्देनजर रखते हुए रईस खान बनाम एनपीटी दिल्ली राज्य मामले में हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कोर्ट ने मामले के एक अन्य सह आरोपी को जमानत दे दी थी। उक्त निर्णय में एफआईआर दर्ज करने में देरी, अभियुक्तों के झूठे आरोप और टीआईपी अभ्यास करने में विफलता के मुद्दे के समान प्रश्न भी उठाए गए थे।
जबकि अदालत का विचार था कि मामले के तथ्य पूर्वोक्त निर्णय के साथ समान रूप से परिस्थितिजन्य थे, न्यायालय ने मृतक शाहिद की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का विश्लेषण भी किया।
ऐसा करते समय न्यायालय ने पाया कि जख्मों के चारों ओर कोई कालापन, सिंगिंग या टैटू नहीं देखा गया था, जिसने इस तथ्य को स्थापित किया कि न तो यह एक दूर से लगा जख्म था, न ही कम दूरी का जख्म। न्यायालय ने यह भी कहा कि पुलिस ने चार्जशीट में "संभावना" शब्द का इस्तेमाल किया था, जो उक्त इमारत से दागी गई बंदूक की गोली की संभावना को दर्शाता है।
कोर्ट ने अवलोकन किया,
"क्योंकि उन्हें यकीन नहीं है कि जहां से यह बंदूक की गोली आई है, तो वे कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि यह एक करीबी रेंज शॉट है जब वे पहले से ही उल्लेख कर रहे हैं कि यह एक" संभावना है", लेकिन एक निश्चितता नहीं है।"
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा,
"क्लोज-रेंज शॉट का सिद्धांत सिर्फ जांच एजेंसी का अनुमान है और यह वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित नहीं है। बस इसलिए कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार शरीर के बाहर लगे हुए के पास तांबे के टुकड़े पाए गए, ऐसा हुआ होगा। इस एक क्लोज-रेंज शॉट मान लिया जाए। लेकिन यह केवल इस आधार पर था कि जांच एजेंसी ने निष्कर्ष निकाला कि "फायरिंग संभवतः नजदीक से की गई थी, जो वैज्ञानिक रूप से संभव नहीं है।"
न्यायालय ने इस निष्कर्ष के बाद कि आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष, परिस्थितिजन्य या फोरेंसिक सबूत नहीं है, उन्हें जमानत दी। इसके अलावा न्यायालय ने यह भी देखा कि याचिकाकर्ताओं से फायर आर्म या किसी अन्य हथियार की कोई वसूली नहीं हुई थी।