दिल्ली दंगा मामला-''एक निर्दोष व्यक्ति को सिर्फ इसलिए बेरहमी से मार दिया गया क्योंकि वह दूसरे समुदाय से जुड़ा था'': अदालत ने सुलेमान मर्डर केस में आरोपी को जमानत देने से इनकार किया
यह देखते हुए कि एक निर्दोष व्यक्ति की बेरहमी से हत्या की गई थी, वो भी सिर्फ इस तथ्य के कारण कि वह दूसरे समुदाय से संबंध रखता था, कड़कड़डूमा कोर्ट (दिल्ली) ने सोमवार (08 फरवरी) को मर्डर केस के आरोपी आशीष कुमार को जमानत देने से इनकार कर दिया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा कि आवेदक के खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति बहुत गंभीर है और इस चरण में जमानत पर रिहा होने पर आवेदक द्वारा गवाहों को धमकाने या डराने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
न्यायालय के समक्ष मामला
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, जमानत आवेदक (आशीष कुमार) के खिलाफ मामला सुलेमान नाम के एक व्यक्ति की हत्या से संबंधित है, जिसकी हत्या प्रेम विहार पुलिया के पास ''दंगाई भीड़'' द्वारा की गई थी और उसके शव को गंदे नाले में फेंक दिया गया था। यह घटना फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान हुई थी।
यह तर्क दिया गया था कि जांच से पता चला है कि 30-40 व्यक्तियों की भीड़ ने 26 फरवरी 2020 को सुबह लगभग 8.30-8.40 बजे पीड़ित सनोबेर, सुनील कुमार और सुलेमान को पकड़ा था, उस समय इस भीड़ में शामिल लोगों के हाथों में डंडे और रॉड थे।
कथित तौर पर, भीड़ ने उनके आईडी कार्ड पूछे तो उन्होंने अपने आईडी कार्ड दिखा दिए। इसके बाद भीड़ के कुछ लोगों ने सुनील को मौके से जाने के लिए कहा।
इसके बाद, उन्होंने सनोबेर और सुलेमान की निर्दयता से पिटाई शुरू कर दी। भीड़ में से किसी ने सनोबेर के सिर पर लोहे की रॉड मार दी, जिससे वह बेहोश हो गया।
जैसा कि आरोप है, भीड़ ने सुलेमान को पीटना जारी रखा। सनोबेर होश में आया और मौके से भागने में सफल हो गया जबकि भीड़ सुलेमान पर हमला करने में व्यस्त थी।
कथित तौर पर भीड़ ने सुलेमान के चेहरे, सिर, छाती, पेट और शरीर के अन्य हिस्सों पर डंडे,राॅड, लातों और मुट्ठी से हमला किया। जब वह बेहोश हो गया तो भीड़ ने उसे नाले की दीवार और शौचालय की दीवार के पास गंदे नाले में कॉलोनी के सीवर जंक्शन बिंदु पर फेंक दिया, जहां से उसे जीटीबी अस्पताल ले जाया गया।
एएसआई कुलबीर ने उसे जीटीबी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां इलाज के दौरान पीड़ित की मौत हो गई।
कोर्ट का अवलोकन
शुरुआत में, अदालत ने कहा कि,
''मामले में दर्ज किए गए कई गवाहों के साक्ष्य से, यह स्पष्ट है कि 'दंगाई भीड़' ने 'हथियारों' से लैस होकर मृतक सुलेमान का अपहरण कर लिया था ताकि उसकी हत्या केवल इस तथ्य के आधार पर की जा सके कि वह एक अलग समुदाय से संबंध रखता था।''
इसलिए, न्यायालय ने कहा कि यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि आवेदक का इरादा भी गैरकानूनी रूप से एकत्रित भीड़ के अन्य व्यक्तियों जैसा नहीं था।
कोर्ट ने कहा कि,
''इस तरह की दंगाई भीड़ के 'इरादे' को सीसीटीवी फुटेज में देखे गए उनके आचरण से आसानी से समझा जा सकता है।''
वर्तमान मामले के जमानत आवेदक की भूमिका के बारे में कोर्ट ने कहा कि,
''हमारे पास नीरज कुमार नाम के सार्वजनिक/चश्मदीद गवाह के साक्ष्य के माध्यम से आवेदक की स्पष्ट पहचान है। वह सीसीटीवी फुटेज में भी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है और उस दंगाई भीड़ के पीछे चल रहा था जो मृतक सुलेमान को ''डंडों'' से मार रही थी।''
महत्वपूर्ण रूप से, न्यायालय ने उल्लेख किया कि,
''मृतक सुलेमान की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को देखने के बाद पता चला है कि उसे 11 चोटें आई थीं, जिनमें से 7 चोटें प्रकृति में इतनी गंभीर थीं कि वे खुद स्वतंत्र और सामूहिक रूप से किसी भी व्यक्ति की मौत का कारण बन सकती थी। यह चोट सांप्रदायिक दंगों के दौरान दंगाई भीड़ द्वारा किए गए नृशंस कृत्य की प्रबलता के बारे में साफ तौर पर बता रही हैं।''
अंत में, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता व अपराध की गंभीरता को देखते हुए अदालत ने आवेदक को जमानत देने के लिए एक उचित मामला नहीं माना और इसप्रकार जमानत अर्जी खारिज कर दी गई।
संबंधित समाचार में, कड़कड़डूमा कोर्ट (दिल्ली) ने पिछले हफ्ते एक ऐसे शख्स (जिसका नाम शोएब है) को जमानत देने से इनकार कर दिया था, जिसे फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान 'पलटा' (स्पैटुला) पकड़े हुए देखा गया था। हालांकि उसने अदालत के सामने दलील दी थी कि वह पलटे का इस्तेमाल बिरयानी तैयार करने के लिए कर रहा था।
वहीं कड़कड़डूमा कोर्ट (दिल्ली) ने हाल ही में शाहरुख पठान को नियमित जमानत देने से इनकार कर दिया था, जिसकी एक वायरल तस्वीर में उसे एक पुलिसकर्मी पर बंदूक से इशारा करते हुए दिखाया गया था। फरवरी 2020 के दिल्ली दंगे के दौरान यह तस्वीर सोशल मीडिया/ इंटरनेट पर वायरल हो गई थी।
उसे जमानत देने से इनकार करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने कहा था कि,
''अभियुक्त के खिलाफ लगाए गए आरोप काफी गंभीर हैं। साथ ही आरोपी का आचरण दिखा रहा है कि वह जमानत देने के लिए ट्रिपल टेस्ट को संतुष्ट नहीं करता है।''
महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने यह भी कहा था कि ''अभियुक्त पर आरोप है कि उसने दंगों में भाग लिया था और उसकी विधिवत पहचान की गई थी। उसकी तस्वीर उस दिन दंगों में आरोपी की संलिप्तता और उसके आचरण के बारे में साफ बता रही है।''
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