दिल्ली हाईकोर्ट ने पीएमएलए के तहत 'रिपोर्टिंग संस्थाओं' में सीए को शामिल करने के खिलाफ याचिका पर केंद्र का जवाब मांगा
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत चार्टर्ड अकाउंटेंट, कंपनी सेक्रेटरी या कॉस्ट अकाउंटेट को "रिपोर्टिंग संस्थाओं" की परिभाषा में शामिल करने और उन पर अन्य दायित्व डालने को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से रुख मांगा।
चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संजीव नरूला की खंडपीठ ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा को मामले में उचित निर्देश प्राप्त करने के लिए समय दिया और इसे 04 अक्टूबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
यह याचिका पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट रजत मोहन द्वारा दायर की गई, जिसमें 05 मई को प्रकाशित गजट अधिसूचना को चुनौती दी गई, जिसमें पीएमएलए की धारा 2(1)(एसए)(vi) में प्रयुक्त "व्यक्ति" शब्द की परिभाषा के साथ-साथ परिभाषा का विस्तार किया गया।
याचिका में कहा गया,
"विशेष रूप से पेशेवरों के वर्ग यानी चार्टर्ड अकाउंटेंट/कंपनी सेक्रेटरी/कॉस्ट अकाउंटेट को 'रिपोर्टिंग संस्थाओं' की परिभाषा में शामिल किया गया और उन पर पीएमएलए के तहत कठिन दायित्व डाल दिए गए हैं, जिनका अनुपालन न करने पर आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है।"
मोहन का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट त्रिदीप पियास ने किया। याचिका वकील श्वेता कपूर ने दायर की।
यह मोहन का मामला है कि इस तरह के समावेशन का प्रभाव यह है कि वे वस्तुतः उसे और अन्य लोगों को आक्षेपित अधिसूचना के तहत अधिसूचित करते हैं, जो अपने स्वयं के ग्राहकों को नियंत्रित करने में "वस्तुतः संलग्न" होते हैं, जो उनके साथ प्रत्ययी क्षमता में बातचीत करते हैं "भले ही पीएमएलए के तहत कोई मामला भी न हो शुरू किया।"
याचिका में कहा गया कि विवादित अधिसूचना में "वस्तुतः गाड़ी को घोड़े के आगे रख दिया गया" और पीएमएलए का उद्देश्य किसी विशेष अपराध के अस्तित्व में आने से पहले लोगों को परेशान करना नहीं है।
याचिका में कहा गया,
“आक्षेपित अधिसूचना पीएमएलए के उद्देश्य से और भी अधिक अधिकारहीन है, क्योंकि यह देश के प्रत्येक व्यक्ति/नागरिक के प्रत्येक वित्तीय लेनदेन की मछली पकड़ने और घूमने की जांच के लिए रूपरेखा तैयार करती है, जो ऐसे किसी भी नागरिक/व्यक्ति या न्यायिक इकाई के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग की कार्यवाही शुरू होने से पहले याचिकाकर्ता के कार्यालय में बिना किसी अपवाद के अपनी सेवाएं लेने के लिए उपस्थित होता है।
इसमें कहा गया,
“पीएमएलए का दायरा और अनुप्रयोग बेहद कठोर है। यहां तक कि वास्तविक निरीक्षण भी रिपोर्टिंग संस्थाओं के जीवन, स्वतंत्रता करियर को खतरे में डाल देगा। याचिकाकर्ता के सिर पर डैमोकल्स की तलवार हमेशा लटकी रहेगी।”
केस टाइटल: रजत मोहन बनाम भारत संघ और अन्य।