6 साल के बच्चे पर यौन हमले की आरोपी महिला को अग्रिम जमानत, धारा 377, IPC, POCSO एक्ट के तहत दर्ज है मामला
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक 6 साल के लड़के पर यौन हमले की आरोपी एक महिला को अग्रिम जमानत देदी। महिला के खिलाफ धारा 377 IPC और POCSO एक्ट की धारा 6 के तहत मामला दर्ज किय गया है। जस्टिस रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने उसे यह कहते हुए जमानत दी कि वह पहले ही जांच में शामिल हो चुकी है और उससे कुछ भी बरामद नहीं होना है, इसलिए हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है।
तथ्य
पीड़ित लड़के की मां की शिकायत पर जमानत आवेदक के खिलाफ पूर्वोक्त अपराधों के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वह उसके घर आती थी और हमेशा उसके बेटे के करीब आने की कोशिश करती थी और उसने उस पर यौन हमला किया था।
शिकायतकर्ता-मां ने आगे आरोप लगाया था कि याचिकाकर्ता ने बच्चे के साथ यह सब तब किया जब वह अपने पिता की कस्टडी में था (शिकायतकर्ता का पति, जो उससे अलग रहता है), जिसके साथ उस महिला के यौन संबंध हैं और कथित तौर पर बच्चे के पिता की मदद और अनुमति के साथ, याचिकाकर्ता बच्चे का यौन शोषण करती थी।
राज्य की ओर से पेश एपीपी ने कहा कि याचिकाकर्ता मुख्य आरोपी है और अपराध गंभीर प्रकृति का है।
न्यायालय की टिप्पणियां
शुरुआत में, अदालत ने कहा कि जांच प्रक्रिया के दौरान बच्चे की चिकित्सकीय जांच की गई थी और एक बयान दर्ज किया गया था, जहां उसने शिकायत की सामग्री की पुष्टि की थी और कहा था कि यह सब उसके साथ तब से हो रहा था जब वह 3 साल का था (अब वह 6 साल का है)।
न्यायालय ने यह भी नोट किया कि शिकायतकर्ता की कस्टडी से आए दस्तावेज याचिकाकर्ता द्वारा बच्चे को कथित रूप से दी गई चोट के संबंध में वास्तविक दस्तावेज नहीं थे। कोर्ट ने मेडिकल जांच के उस बयान को भी ध्यान में रखा, जिसमें कहा गया था कि बच्चे के मेडिकल में कुछ भी असामान्य नहीं पाया गया।
इस पर कोर्ट ने कहा, " शिकायतकर्ता को भविष्य में और इस स्तर पर, इस प्रकार के कृत्यों में लिप्त ना रहने की सलाह दी जाती है, मैं इस तरह के मेडिकल रिकॉर्ड तैयार करने के लिए शिकायतकर्ता के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठा रहा हूं, इसलिए शिकायतकर्ता की ओर से रिकॉर्ड पर पेश सभी चिकित्सा दस्तावेज शिकायतकर्ता के सिद्धांत की पुष्टि नहीं करते हैं। "
अदालत ने यह भी नोट किया कि सह-आरोपी (शिकायतकर्ता का अलग रह रहा पति और पीड़ित का पिता) पहले ही अग्रिम जमानत पा चुका है।
नतीजतन, अदालत ने आरोपी को अग्रिम जमानत का लाभ देते हुए निर्देश दिया कि वह बच्चे का बयान दर्ज होने तक बच्चे से न मिले और शिकायतकर्ता के निवास पर ना जाए और खुद को शिकायतकर्ता के आवास से 3 किमी दूर रखे। .
कोर्ट ने यह आदेश दिया कि गिरफ्तारी की स्थिति में आवेदक/याचिकाकर्ता को 50,000 रुपये के निजी मुचलके साथ ही संबंधित थानेदार की संतुष्टि के लिए इतनी ही राशि की जमानत पर रिहा किया जाए।