यूट्यूबर हर्ष बेनीवाल के परिवार पर अश्लील टिप्पणी करने के आरोपी एक्टर एजाज खान को मिली अग्रिम ज़मानत
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक्टर एजाज खान को अग्रिम ज़मानत दी, जिन पर यूट्यूबर हर्ष बेनीवाल की माँ और बहन के खिलाफ सोशल मीडिया पर अश्लील टिप्पणी करने का आरोप है।
हालांकि, जस्टिस रविंदर डुडेजा ने सोशल मीडिया की बुराइयों के प्रति आगाह किया।
जज ने कहा,
"इंटरनेट पर कोई भी सामग्री छिद्रपूर्ण होती है और बड़े दर्शकों के लिए सुलभ होती है। इंटरनेट पर हर सामग्री को बहुत सावधानी से अपलोड किया जाना चाहिए, खासकर जब अपलोड करने वाले के पास एक बड़ा दर्शक वर्ग हो और समाज में उसका प्रभाव हो।"
एक्टर पर एक सोशल मीडिया वीडियो में शिकायतकर्ताओं पर लैंगिक आधार पर दुर्व्यवहार, अश्लीलता और डिजिटल मानहानि का आरोप है। उन पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 79 (किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने के इरादे से शब्द, हावभाव या कृत्य) और IT Act की धारा 67 के तहत मामला दर्ज किया गया।
दूसरी ओर, खान ने दावा किया कि उनका वीडियो बेनीवाल द्वारा अपलोड किए गए वीडियो के प्रतिशोध में है, जिसमें उन्हें ड्रग तस्कर, छेड़छाड़ करने वाला आदि कहकर अपमानजनक शब्दों, गालियों और अश्लील इशारों का इस्तेमाल किया गया।
खान ने आगे दलील दी कि उन्होंने वीडियो हटा लिया।
हाईकोर्ट ने कहा कि मामला एक्टर के फ़ोन से रिकॉर्ड किए गए वीडियो पर आधारित है, जो पहले से ही बॉम्बे पुलिस के पास है।
कोर्ट ने कहा,
"ऐसी परिस्थितियों में याचिकाकर्ता से हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है, खासकर जब संबंधित दस्तावेज़ अब उसके नियंत्रण में नहीं हैं।"
अदालत ने आगे कहा कि रिकॉर्ड में ऐसी कोई सामग्री पेश नहीं की गई, जिससे यह संकेत मिले कि खान के भागने का खतरा है।
अदालत ने कहा,
"उन्हें किसी भी हिरासत में जांच की आवश्यकता नहीं है। गिरफ्तारी यांत्रिक/स्वचालित नहीं होनी चाहिए, खासकर जब हिरासत में पूछताछ की कोई आवश्यकता साबित न हो। राज्य द्वारा असहयोग की आशंका "जेल नहीं ज़मानत" के सिद्धांत को रद्द नहीं कर सकती।"
विदा लेने से पहले अदालत ने यह भी कहा कि खान और बेनीवाल दोनों ही सोशल मीडिया पर प्रभावशाली व्यक्ति हैं। उनके पास दर्शकों का एक बड़ा समूह है, जो उनके द्वारा पोस्ट की गई सामग्री से प्रभावित हो सकता है।
अदालत ने आगे कहा,
“इसलिए भले ही उनके द्वारा पोस्ट करने के बाद सामग्री हटा दी जाए। फिर भी यह दर्शकों के एक बड़े समूह तक पहुंच जाएगी, जिससे उसी सामग्री को पुनः प्रकाशित किया जाएगा/उनके अनुयायियों के बीच उस सामग्री पर बहस छिड़ जाएगी, जिसका अंततः पीड़ित पर प्रभाव पड़ेगा। इसलिए किसी भी सामग्री को पोस्ट करने से पहले सोशल मीडिया का उपयोग सावधानी से करना चाहिए, क्योंकि यह न केवल उस व्यक्ति विशेष पर, बल्कि उसके संबंधित प्रशंसकों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।”
Case title: Ajaz Khan v. State