दिल्ली हाईकोर्ट ने वृद्ध, विकलांग कैदियों की समय से पहले रिहाई पर विचार करने की मांग वाली जनहित याचिका पर सू मोटो रजिस्टर किया
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने वृद्ध, विकलांग कैदियों की समय से पहले रिहाई पर विचार करने की मांग वाली जनहित याचिका पर सू मोटो रजिस्टर किया।
चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने मामले को 13 फरवरी, 2023 को सुनवाई के लिए पोस्ट करते हुए केंद्र, दिल्ली सरकार और महानिदेशक (जेल) से जवाब मांगा।
एक वकील ने 60 वर्ष की आयु पूरी कर चुकी महिला कैदियों और ट्रांसजेंडर कैदियों, 65 वर्ष से अधिक आयु के पुरुष कैदी, और विकलांग कैदियों (आजीवन दोषियों को छोड़कर) की समयपूर्व रिहाई के मुद्दे पर विचार करने के लिए उच्च न्यायालय को एक पत्र लिखा।
वकील ने सुझाव दिया कि छूट सहित उनकी वास्तविक सजा का एक तिहाई भाग लेने के बाद उन्हें रिहा किया जा सकता है।
पत्र में आगे कहा गया है कि मुल्ला समिति और मॉडल जेल मैनुअल, 2003 की सिफारिशों के बावजूद, शहर की जेलों में उनका पालन नहीं किया जा रहा है, जिससे समाज की रक्षा के उद्देश्य और महिलाओं, वृद्धों और विकलांग कैदियों के विशेष उपचार की सिफारिशों को नकारा जा रहा है।
पत्र में लिखा है,
"आवेदक आपके ध्यान में इस तथ्य की ओर भी ध्यान दिलाना चाहता है कि देश की जेलों और विशेष रूप से दिल्ली की जेलों में भीड़भाड़ है और इस प्रकार यह सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि दिल्ली की जेलों में 10026 कैदियों को रखने की क्षमता है, लेकिन इसके क्षमता से 80% अधिक कैदी रखे गए हैं।"
याचिका में कहा गया है,
"डेटा यह स्पष्ट करता है कि सामाजिक दूरी को बनाए नहीं रखा जा सकता है क्योंकि तिहाड़ जेलों में अत्यधिक भीड़ होती है और यदि 4000 कैदी [जो जमानत पर बाहर हैं] सरेंडर करते हैं, तो तिहाड़ जेलों में स्थिति और खराब हो सकती है। और कैदियों और जेल प्रशासन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।"
केस: कोर्ट का स्वत: संज्ञान बनाम राज्य एंड अन्य।