दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों को बढ़ा हुआ महंगाई भत्ता न देने के मामले में केंद्र सरकार के निर्णय के खिलाफ याचिका खारिज की

Update: 2020-06-02 09:43 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों को बढ़ा हुआ महंगाई भत्ता न देने के मामले में केंद्र सरकार के निर्णय के खिलाफ याचिका खारिज की

दिल्ली हाईकोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया है जो केंद्र सरकार व दिल्ली सरकार के निर्णय के खिलाफ दायर की गई थी। इस याचिका में केंद्र सरकार के साथ-साथ दिल्ली सरकार के भी उस निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसमें सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को बढ़ा हुआ महंगाई भत्ता न देने की बात कही गई थी।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने कहा कि कानून में सरकार पर यह दायित्व ड़ाला गया है कि महंगाई भत्ते /महंगाई राहत में की गई वृद्धि का संवितरण समयबद्ध तरीके से करना होगा।

अदालत ने यह भी कहा कि ऊपर बताए गए ऑल इंडिया सर्विसेज (महंगाई भत्ता) रूल्स के नियम 3 के तहत ही केंद्र सरकार को यह अधिकार भी मिला हुआ है कि वह उन शर्तों को तय कर सकती है, जिनके अधीन ही सरकारी अधिकारी इस महंगाई भत्ते को प्राप्त्त कर सकते हैं।

अदालत ने यह आदेश एक जनहित याचिका में दिया है, जिसमें मांग की गई थी कि केंद्र और दिल्ली सरकार, दोनों के वित्त मंत्रालय को निर्देश जारी किया जाए ताकि सरकारी कर्मचारियों के बढ़े हुए महंगाई भत्ते को फ्रीज करने के संबंध में जारी अधिसूचना को वापस ले लिया जाए और मानदंडों के अनुसार इसे जारी कर दिया जाए।

केंद्र सरकार के इस विवादित कार्यालय ज्ञापन में सूचित किया था कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों को दिया जाने वाला मंहगाई भत्ता और केंद्र सरकार के पेंशनभोगियों को दी जाने वाली महंगाई राहत का भुगतान नहीं किया जाएगा। यह महंगाई भत्ता/ मंहगाई राहत 1 जनवरी 2020 से देय था।

यह भी कहा गया था कि 01 जुलाई 2020 और 01 जनवरी 2021 से देय महंगाई भत्ते और महंगाई राहत की अतिरिक्त किस्त का भी भुगतान नहीं किया जाएगा। हालांकि मौजूदा दरों पर महंगाई भत्ता और महंगाई राहत का भुगतान जारी रखा जाएगा।

वहीं उक्त ओएम में यह भी कहा गया है कि 1 जुलाई 2021 से महंगाई भत्ता और महंगाई राहत की भविष्य की किश्त जारी करने का निर्णय जब भी सरकार द्वारा लिया जाएगा, उस समय महंगाई भत्ता और महंगाई राहत की दरें 1 जनवरी 2020 से प्रभावी होंगी, जिसके बाद 1 जुलाई 2020 और 1 जुलाई 2021 को देय भत्ते को भी उसी अनुसार बहाल कर दिया जाएगा।

याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष निम्नलिखित तर्क दिए थे-

ए-केंद्र सरकार के कर्मचारियों और केंद्र सरकार के पेंशनरों को ऑल इंडिया सर्विसेज (डीए) रूल्स 1972 के तहत बढ़ाया गया महंगाई भत्ता/महंगाई राहत प्राप्त करने का एक निहित अधिकार है।

बी- COVID19 महामारी को डीए को रोकने का एक कारण बताया गया है, परंतु उसके बावजूद भी यह आदेश आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित नहीं किया गया है।

सी-सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत राष्ट्रपति द्वारा घोषित वित्तीय आपातकाल के दौरान ही उप-अनुच्छेद 4 (ए) (i) के आधार पर - राज्य के मामलों के संबंध में काम करने वाले सभी या किसी भी वर्ग के व्यक्तियों के वेतन और भत्ते में कमी का प्रावधान किया जा सकता है। चूंकि इस समय कोई वित्तीय आपातकाल घोषित नहीं किया गया है, इसलिए यह कार्यालय ज्ञापन जारी नहीं किया जा सकता था।

न्यायालय की टिप्पणियां

अदालत ने कहा कि 1972 के डीए नियम बताते हैं कि महंगाई भत्ता और महंगाई राहत पाने का अधिकार केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है। इसे केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर निर्दिष्ट भी किया जा सकता है और सरकार वह शर्ते लगा सकती है, जिनको वह उपयुक्त समझती है।

अदालत ने आगे कहा कि इस संबंध में कोई वैधानिक नियम नहीं है जो केंद्र सरकार को नियमित अंतराल पर महंगाई भत्ता या महंगाई राहत को बढ़ाने के लिए बाध्य करता हो। इसके अलावा केंद्र सरकार के कर्मचारियों या केंद्र सरकार के पेंशनरों को भी कोई ऐसा निहित अधिकार नहीं मिला हुआ है,जिसके तहत वह नियमित अंतराल पर बढ़ा हुआ महंगाई भत्ता या महंगाई राहत प्राप्त कर सके या मांग सके।

अदालत ने यह भी कहा कि-

'जहां तक 1 जनवरी 2020 से प्रभावी 4 प्रतिशत महंगाई भत्ता या महंगाई राहत प्राप्त करने का संबंध है तो इस मामले में जारी किए गए कार्यालय ज्ञापन में इसे हटाने या खत्म करने की बात नहीं कही गई है। सिर्फ इतना कहा गया है कि इसे फिलहाल स्थगित किया जा रहा है और इसका भुगतान एक जुलाई 2021 के बाद किया जाएगा।'

उक्त ओएम को जारी करने के अधिकार के मुद्दे पर अदालत ने कहा कि इस विवादित ओएम में COVID19 महामारी का संदर्भ दिया गया है। इसका मतलब यह नहीं है कि प्रतिवादी ने सिर्फ उन्हीं प्रावधानों को लागू किया है जो आपदा प्रबंध अधिनियम में निहित हैं।

संविधान के अनुच्छेद 360 के संबंध में याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए तर्क को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि ओम में राज्य के मामलों के संबंध में सेवा करने वाले किसी भी व्यक्ति के वेतन या भत्ते को काटने या कम करने की बात नहीं कही गई है।

अदालत ने कहा कि-

'हमने ऑल इंडिया सर्विसेज (डीए) रूल्स 1972 के नियम 3 पर गौर किया है। उक्त नियम में कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया है कि केंद्र सरकार महंगाई भत्ता दिया जाने की पात्रता के संबंध में अपना निर्णय कुछ शर्तो के तहत ही ले सकती है। यानि ऐसा करने के लिए सरकार को पहले एक नया नियम बनाना होगा या एक राजपत्र अधिसूचना जारी करनी होगी। कानून में ऐसी किसी आवश्यकता का उल्लेख नहीं किया गया है।'

इस मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व डॉ प्रदीप शर्मा और श्री हर्ष ने किया था।

आदेश की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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