दिल्ली कोर्ट ने कोयला ब्लॉक आवंटन मामले में पूर्व कोयला सचिव को बरी किया, कहा- उनके कृत्य जनहित के विरुद्ध नहीं थे
दिल्ली कोर्ट ने फतेहपुर ईस्ट कोल ब्लॉक के आवंटन से संबंधित मामले में पूर्व कोयला सचिव और कई अन्य व्यक्तियों को बरी कर दिया।
राउज़ एवेन्यू कोर्ट के स्पेशल जज धीरज मोर ने केंद्रीय कोयला मंत्रालय के तत्कालीन सचिव हरीश चंद्र गुप्ता और चार अन्य आरोपियों को बरी कर दिया।
CBI द्वारा प्रारंभिक जांच के बाद मेसर्स आर.के.एम. पावरजेन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी (RKMPPL), उसके निदेशकों और केंद्रीय कोयला मंत्रालय के अधिकारियों से जुड़े आपराधिक षडयंत्र, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के आरोपों पर मामला दर्ज किया गया।
FIR के अनुसार, स्क्रीनिंग कमेटी और कोयला मंत्रालय के अधिकारियों ने पात्रता मानदंडों को दरकिनार कर RKMPPL और अन्य को आवंटन के लिए अनुशंसित किया।
इसमें आगे आरोप लगाया गया कि कोयला ब्लॉक आवंटन के बाद RKMPPL ने अपने भारतीय प्रमोटर को लाभ पहुंचाने के लिए उच्च प्रीमियम पर शेयर जारी किए। जांच में पता चला कि RKMPPL द्वारा भूमि अधिग्रहण के लिए जाली सहमति पत्र प्रस्तुत किए गए।
RKMPPL के आवेदन के साथ संलग्न विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) असंगत पाई गई और इसमें विद्युत परियोजना की क्षमता और तैयारी की स्थिति को गलत तरीके से दर्शाया गया।
CBI द्वारा प्रारंभिक निष्कर्ष में कोई ठोस आरोप न होने का हवाला दिए जाने के बावजूद, आगे की जांच में RKMPPL, उसके निदेशकों और मंत्रालय के अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक कदाचार का हवाला देते हुए आरोपपत्र दायर किया गया।
102 पृष्ठों के एक विस्तृत आदेश में जज ने गुप्ता, कुलजीत सिंह क्रोफा- तत्कालीन कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिव, RKMPPL और कंपनी के निदेशक एवं प्रबंध निदेशक को बरी कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि फतेहपुर ईस्ट कोल ब्लॉक को सबसे योग्य और योग्य कंपनी-पीपीएल को आवंटित करने की स्क्रीनिंग कमेटी की सिफारिश जनहित में की गई।
अदालत ने कहा,
"इसलिए अभिलेखों में ऐसी कोई भी सामग्री उपलब्ध नहीं है, जो यह सिद्ध करे कि आरोपी लोक सेवकों का कृत्य जनहित के बिना था। इसलिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(डी)(iii) के तहत दंडनीय अपराध का आवश्यक तत्व स्पष्ट रूप से अनुपस्थित है।"
इसमें यह भी कहा गया कि प्रथम दृष्टया यह मानने का कोई कारण नहीं है कि RKMPPL और उसके निदेशकों ने फतेहपुर ईस्ट कोल ब्लॉक के आवंटन के लिए कोयला मंत्रालय, विद्युत मंत्रालय और छत्तीसगढ़ राज्य सरकार सहित सरकारी विभागों को भेजे गए आवेदन पत्रों और फीडबैक फॉर्म सहित अपने किसी भी पत्र-व्यवहार में भूमि के संबंध में कोई झूठा दावा किया हो।
जज ने आगे कहा कि यह मानने का कोई कारण नहीं है कि आरोपी कंपनी ने कोयला मंत्रालय या किसी अन्य संबंधित मंत्रालय या राज्य सरकार को विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के संबंध में कोई झूठा दावा किया हो।
अदालत ने कहा,
"अभियोजन पक्ष के ये आरोप कि अभियुक्त नंबर 1 की कंपनी ने वित्तीय पहलू के संबंध में भ्रामक जानकारी दी या झूठे तथ्य प्रस्तुत किए, निराधार हैं। बल्कि यह दावा वास्तविक और सही साबित होता है, जिसकी पुष्टि अभियुक्त नंबर 1 की कंपनी के पूर्वोक्त वर्णित अनुवर्ती आचरण से होती है।"
Case title: CBI v/s M/s R.K.M. Powergen Pvt. Ltd and others