इंटरसेक्स शिशुओं, बच्चों पर चिकित्सकीय रूप से अनावश्यक सेक्स-चयनात्मक सर्जरी पर प्रतिबंध लगाने के लिए डीसीपीसीआर की सिफारिश पर निर्णय लें: दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) की ओर से इंटरसेक्स शिशुओं और बच्चों पर, खतरानाक जीवन स्थितियों को छोड़कर चिकित्सकीय रूप से अनावश्यक, लिंग-चयनात्मक सर्जरी पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा करने के लिए दी गई सिफारिश पर उचित निर्णय लेने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया है।
चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद की खंडपीठ ने सृष्टि मदुरै एजुकेशनल रिसर्च फाउंडेशन नामक एक ट्रस्ट की ओर से दायर जनहित याचिका का निस्तारण किया, जिसमें उन शर्तों को निर्दिष्ट करने वालो दिशानिर्देशों की मांग की गई थी, जब इंटरसेक्स शिशुओं और बच्चों पर चिकित्सा सर्जरी की जा सकती है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील रॉबिन राजू ने कोर्ट को बताया कि डीसीपीसीआर ने इंटरसेक्स शिशुओं और बच्चों पर सेक्स-सेलेक्टिव सर्जरी के मुद्दे पर दिल्ली सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी है।
दूसरी ओर, दिल्ली सरकार ने उक्त सिफारिशों पर उचित निर्णय लेने के लिए समय मांगा, जिस पर कोर्ट ने उचित निर्णय लेने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने आदेश दिया,
"पूर्वोक्त के आलोक में, मौजूदा याचिका में किसी और आदेश को पारित करने की आवश्यकता नहीं है। याचिकाकर्ता, यदि जीएनसीटीडी के फैसले से व्यथित है तो वह नई याचिका दायर करने के लिए स्वतंत्र होगा।"
एडवोकेट रॉबिन राजू, यश प्रकाश और दीपा जोसेफ के माध्यम से दायर याचिका में शिशुओं और बच्चों पर सेक्स चयनात्मक सर्जरी पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएलएसए) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में दिए निर्णय पर भरोसा करते हुए, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी को भी उनकी लिंग पहचान की कानूनी मान्यता के लिए एक आवश्यकता के रूप में चिकित्सा प्रक्रियाओं से गुजरने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा, याचिका में कहा गया है कि मौजूदा मुद्दा अत्यधिक महत्व का है क्योंकि यह "मानव अधिकारों और मानव की शारीरिक अखंडता" से संबंधित है।
इस पृष्ठभूमि में याचिका में कहा गया,
".. सेक्स-चयनात्मक सर्जरी या चिकित्सकीय रूप से अनावश्यक सामान्य सर्जरी के मुद्दे का इंटरसेक्स लोगों के दिमाग पर लंबे समय तक चलने वाला भारी मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है और उन्हें भविष्य में चिकित्सा कराने से भी रोकता है। यह पहलू हाल की समाचार रिपोर्टों से साबित होता है जो यह बताते हैं कि बड़ी संख्या में इंटरसेक्स लोगों में COVID-19 लक्षण होने के बावजूद चिकित्सा सहायता लेने में अनिच्छा दिखाई।"
याचिका में सरकार को निर्देश देने वाले मद्रास हाईकोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया गया, जिसमें तमिलनाडु सरकार को इंटरसेक्स शिशुओं और बच्चों पर सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी पर प्रभावी रूप से प्रतिबंध लगाने के लिए निर्देश दिए गए थे।
डीसीपीसीआर ने 13 जनवरी 2021 को एक राय जारी करते हुए कहा कि दिल्ली सरकार को इन सेक्स सेलेक्टिव सर्जरी पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा करनी चाहिए। यह राय दिल्ली मेडिकल काउंसिल, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, दिल्ली सरकार और समाज कल्याण विभाग, दिल्ली सरकार की प्रतिक्रिया पर आधारित थी।
यह डीसीपीसीआर द्वारा प्रदान की गई इस राय का कार्यान्वयन था, जिसे याचिकाकर्ता द्वारा मांगा जा रहा था।
केस टाइटल: सृष्टि मदुरै एजुकेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाम दिल्ली सरकार दिल्ली और अन्य।