'हिरासत में मौत सभ्य राज्य पर कलंक': मेघालय हाईकार्ट ने राज्य में हिरासत में होने वाली मौतों के लिए दंडात्मक मुआवजे की मात्रा 10 से 15 लाख रुपये तक तय की

Update: 2023-09-02 11:33 GMT

मेघालय हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह पुलिस हिरासत में 'अप्राकृतिक' मौत के मामले में लिए मुआवजे की मात्रा तय की। मुआवजे की मात्रा पीड़ितों की उम्र के आधार पर तय की गई है, जो उसके निकटतम रिश्तेदार को दी जाएगी। कोर्ट ने आदेश में कहा, हिरासत में मौत सभ्य राज्य के लिए "कलंक" है और यह "पूरी तरह से अस्वीकार्य" है।

चीफ ज‌स्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस एचएस थांगख्यू की पीठ ने मेघालय सरकार को आदेश दिया कि यदि मृत्यु की तारीख पर पीड़ित की उम्र 30 वर्ष से कम होगी तो उसके निकटतम रिश्तेदार को 15 लाख रुपये का भुगतान करना होगा। मृत्यु की तारीख पर यदि पीड़ित 45 वर्ष से कम आयु का होगा तो उसके निकटतम रिश्तेदारों को 12 लाख रुपये का भुगतान करना होगा। यदि पीड़ित 45 वर्ष से अधिक आयु का होगा तो 10 लाख रुपये की राशि दी जाएगी।

अदालत ने स्पष्ट किया कि मुअवाजे की तीन श्रेणियां (15 लाख रुपये, 12 लाख रुपये और 10 लाख रुपये) 2024 के अंत तक वैध रहेंगी। जिसके बाद अगले तीन साल तक उच्‍चतम श्रेणी में 1.5 लाख रुपये और बाकी दो श्रेणियों में एक-एक लाख रुपये की बढ़ोतरी होगी।

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि मुआवजे की मात्रा हर तीन साल में बढ़ाई जानी चाहिए ताकि यह परिजनों के लिए क्षतिपूर्ति का साधन हो। साथ ही पुलिस के लिए निवारक कारक भी हो। इसके साथ ही अदालत ने राज्य में हिरासत में होने वाली मौतों के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान जनहित याचिका को बंद कर दिया।

उल्लेखनीय है कि इन कार्यवाहियों के दौरान यह बात सामने आई थी कि 2012 से अब तक राज्य में हिरासत में 53 मौतें हुई हैं, जिनमें से कुल 25 मामले प्राकृतिक कारणों से पाए गए और शेष 28 मामले आप्राकृतिक कारणों से पाए गए। कोर्ट 2017 से जनहित याचिका की निगरानी कर रहा है।

28 अगस्त के अपने आदेश में, न्यायालय ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति की राज्य की हिरासत में मृत्यु हो जाती है, जब तक कि राज्य सकारात्मक रूप से यह स्थापित करने में सक्षम न हो कि मृत्यु का कारण प्राकृतिक था, यह अनुमान लगाया जाएगा कि उस व्यक्ति की मृत्यु अप्राकृतिक है।

मामले में पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार से हिरासत में अप्राकृतिक मौतों के लिए मुआवजे की दंडात्मक दर तय करने वाली नीति लाने को कहा था। इसके जवाब में राज्य सरकार ने एक अधिसूचना प्रकाशित कर हिरासत के दौरान अप्राकृतिक मौत पर मुआवजा राशि 7.5 लाख रुपये तय की थी। 

हालांकि, न्यायालय मुआवजे की मात्रा से संतुष्ट नहीं था क्योंकि वर्ष 2018 में हिरासत में यातना के कारण हुई मृत्यु से जुड़े एक मामले में 15 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया था और राज्य ने इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी। इसलिए, न्यायालय ने सरकार की अधिसूचना को रद्द कर दिया और उपरोक्त मात्रा निर्धारित की।

इसके अलावा, कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि एक बार राज्य में ऐसा मानक पहले ही स्थापित किया जा चुका है, जिसमें हिरासत में पुलिस की बर्बरता के कारण मरने वाले 18 वर्षीय लड़के को 15 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया था। अगले पाँच वर्षों में मात्रा कम करने का "कोई अच्छा कारण नहीं" था।

दिलचस्प बात यह है कि न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि राज्य एक राशि (वर्तमान मामले में 7.5 लाख रुपये) का भुगतान करने में सहज है तो यह राज्य के लिए "अपने गलत कामों का समर्थन करने और उसे कायम रखने" जैसा होगा, बजाय इसके कि इस बात का प्रयास किया जाए की हिरासत में एक भी अप्राकृतिक मौत न हो।

इस पृष्ठभूमि में, यह रेखांकित करते हुए कि यदि पुलिस की बर्बरता और हिरासत में व्यक्तियों के साथ अमानवीय व्यवहार को रोकना है तो हिरासत में मौत के लिए मुआवजे को उस स्तर पर तय किया जाना चाहिए जहां राज्य को "भुगतान करने में कठिनाई हो, न कि राज्य भुगतान करने में प्रसन्न बना रहे।"

नतीजतन, मुआवजे की मात्रा तय करते हुए कोर्ट ने कहा कि 2012 के बाद से जिन लोगों की अप्राकृतिक मौत हुई है, उनके सभी परिजन उपरोक्त दरों पर मुआवजे के हकदार होने चाहिए।

केस टाइटलः In Re सुओ मोटो बनाम मेघालय राज्य और अन्य हिंसा और जेल के हालात संबंधित अन्य मामले

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