यदि महिला को अपने पति से कुछ संपत्ति विरासत में मिली है तो वह अपने ससुर पर भरण-पोषण का दावा कर सकती है : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि बहू अपने ससुर पर भरण-पोषण का दावा कर सकती है बशर्ते उसे अपने पति से कुछ संपत्ति विरासत में मिली हो।
जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने एक विधवा बहू और पोती द्वारा फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 की धारा 19 के तहत दायर एक याचिका खारिज कर दी है,जिसमें निचली अदालत के 3 मई, 2019 के आदेश को चुनौती दी गई थी। निचली अदालत ने हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 19 के तहत एक याचिका दायर कर अंतरिम भरण-पोषण मांगने के उनके दावे को खारिज कर दिया था।
अपीलकर्ता नंबर-1 का 3 दिसंबर, 2011 को प्रतिवादियों के बेटे से विवाह हुआ था और 1 अक्टूबर, 2012 को उनके विवाह से एक बेटी अपीलकर्ता नंबर- 2 का जन्म हुआ। दुर्भाग्य से, पति की मृत्यु 14 दिसंबर, 2013 को हो गई और अगले दिन ही, अपीलकर्ता नंबर-1/पत्नी अपनी बेटी के साथ अपने पैतृक घर चली गई।
प्रतिवादियों के अनुसार, वह न तो वापस लौटी और न ही प्रतिवादियों के संपर्क में रही,परंतु चार साल बाद यानी 23 फरवरी, 2018 को उसने भरण-पोषण के लिए एक याचिका दायर कर दी।
अपीलकर्ता ने अंतरिम भरण-पोषण के लिए दायर अपने आवेदन में कहा था कि वह बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है और उसके पास खुद या बेटी के भरण-पोषण के लिए आय का कोई स्रोत भी नहीं है। यह भी कहा गया कि वह अपनी दिन-प्रतिदिन की जरूरतों के लिए पूरी तरह से अपने बुजुर्ग व बीमार माता-पिता पर निर्भर है।
उन्होंने कहा कि प्रतिवादी नंबर-1/ससुर एमटीएनएल विभाग में कार्यरत एक शिक्षित व्यक्ति थे और उनकी देखभाल करना उनका कर्तव्य था। हालांकि, यह आरोप लगाया गया कि प्रतिवादियों ने उनके भरण-पोषण के लिए कुछ भी भुगतान ना करके जानबूझकर उनकी उपेक्षा की है।
यह दावा किया गया कि न केवल ससुर को उनका नियमित वेतन मिल रहा था, बल्कि किराए से लगभग 20,000 प्रति माह की कमाई भी हो रही थी और उनकी कुल मासिक आय लगभग 55000 से 65000 थी। तदनुसार, उसने मुख्य याचिका के निपटारे तक 30,000 रुपये प्रति माह की राशि अंतरिम भरण-पोषण के तौर पर मांगी थी।
दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने दावा किया कि अपीलकर्ता एक्ट की धारा 19 के तहत किसी भी तरह के भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं है क्योंकि मृतक द्वारा कोई संपत्ति नहीं छोड़ी गई है।
फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि अपीलकर्ता अपने पति द्वारा प्रतिवादियों के पास छोड़ी गई किसी भी ऐसी संपत्ति के बारे में खुलासा करने में विफल रही है, जिससे अपीलकर्ता भरण-पोषण का दावा कर सकती है। तद्नुसार आवेदन खारिज कर दिया गया।
हाईकोर्ट के समक्ष इस आदेश को चुनौती देने का मुख्य आधार यह था कि विधवा बहू और पोती ससुर पर भरण-पोषण का दावा करने की हकदार हैं, भले ही संपत्ति सास-ससुर या दादा-दादी द्वारा स्वयं अर्जित की गई हो। यह दावा किया गया कि तथ्यों की सही परिप्रेक्ष्य में सराहना नहीं की गई और अपीलकर्ताओं के भरण-पोषण के दावे को गलत तरीके से अस्वीकार कर दिया गया।
कोर्ट ने कहा कि,''अपीलकर्ता अपने पति की किसी भी ऐसी संपत्ति का खुलासा करने में विफल रही है, जो प्रतिवादियों को दी गई है। इतना ही नहीं, प्रतिवादी नंबर-1/ ससुर की अब मृत्यु हो चुकी है। अब केवल प्रतिवादी नंबर-2 सास बची है और अपीलकर्ता अधिकार के रूप में उससे किसी भी प्रकार के भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती हैं।''
कोर्ट ने माना कि एक्ट की 22 में मृतक के उत्तराधिकारियों द्वारा मृतक के आश्रितों को भरण-पोषण देने का प्रावधान किया गया है, हालांकि यह इस शर्त के अधीन है कि उन्हें मृतक से संपत्ति विरासत में मिली हो।
कोर्ट ने कहा,
''जैसा कि पहले ही ऊपर उल्लेख किया गया है, अपीलकर्ता नंबर-1 के मृत पति की मां या बहन को कोई संपत्ति विरासत में नहीं मिली है, जिसमें से अपीलकर्ता द्वारा किसी भी तरह के भरण-पोषण का दावा किया जा सके। फैमिली जज के उपरोक्त आदेश में कोई दुर्बलता/अशक्तता नहीं है।''
तद्नुसार अपील खारिज कर दी गई।
केस का शीर्षक-लक्ष्मी व अन्य बनाम श्याम प्रताप व अन्य
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 432
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