26 वर्षीय व्यक्ति की हिरासत में मौत: दिल्ली हाईकोर्ट ने 2006 के मामले में उत्तर प्रदेश पुलिसकर्मियों की दोषसिद्धि, 10 साल की सजा को बरकरार रखा

Update: 2023-06-27 05:48 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने 2006 में 26 वर्षीय युवा व्यक्ति की हिरासत में यातना के कारण मौत के मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस के छह पुलिसकर्मियों की दोषसिद्धि और 10 साल की सजा बरकरार रखी। उन्हें दोषी ठहराया गया और वर्ष 2019 में सजा सुनाई गई।

जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस अनीश दयाल की खंडपीठ ने छह पुलिस अधिकारियों द्वारा दायर की गई अपील खारिज कर दी और निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें उन्हें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304, 220, 365, 167 और धारा 34 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया।

हालांकि, अदालत ने सब-इंस्पेक्टर विनोद कुमार पांडे को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा। अदालत ने यह देखते हुए उक्त फैसला बरकरार रखा कि मृतक के अपहरण स्थल और सेक्टर -20 नोएडा पुलिस स्टेशन में उनकी उपस्थिति से संबंधित कोई सबूत नहीं है। साथ यह देखते हुए कि ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के अभाव में उसे बरी कर दिया, यह सही है। इसके साथ ही पीठ ने मृतक के पिता शिकायतकर्ता द्वारा दायर अपील खारिज कर दी।

शिकायतकर्ता ने दो अन्य अपीलें भी दायर की है; पहला, एक दोषी कुंवर पाल सिंह को हत्या के अपराध में दोषी ठहराने की मांग करना और दूसरा, पांचों पुलिस अधिकारियों की दोषसिद्धि को आईपीसी की धारा 304 से आईपीसी की धारा 302 में बदलने की मांग करना। उन्होंने उनकी सजा को आनुपातिक रूप से बढ़ाने की भी मांग की।

शिकायतकर्ता पिता द्वारा पुलिस अधिकारियों की सजा को हत्या के आरोप में बदलने की मांग करने वाली अपील को खारिज करते हुए पीठ ने कहा,

“इस बात पर विचार करते हुए कि यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है कि आरोपी पुलिस अधिकारियों ने इस इरादे से सोनू को चोटें पहुंचाईं कि पूरी संभावना है कि मौत सुनिश्चित हो जाएगी, जिससे मृतक की हत्या हो जाएगी। इस निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल होगा कि आरोपी पुलिस अधिकारी आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के दोषी होंगे।

इसमें कहा गया,

“घटनाओं के उक्त अनुक्रम और रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से पता चलता है कि मृतक को हिरासत में यातना दी गई थी, यह जानते हुए कि इससे मृतक की मृत्यु होने की संभावना है, लेकिन मृत्यु का कारण बनने का कोई इरादा नहीं है। इसलिए शारीरिक चोट पहुंचाने का कार्य, जिससे मृत्यु होने की संभावना है, आरोपी को आईपीसी की धारा 304 भाग I के तहत दंडनीय अपराध का दोषी बना देगा और आरआई 10 साल की सजा के लिए उत्तरदायी होगा।

पीड़ित के पिता की शिकायत पर नोएडा सेक्टर-20 पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि नोएडा पुलिस सिविल ड्रेस में उनके बेटे को गांव से ले गई। उन्हें गंभीर आशंका है कि उनके बेटे को पुलिस ने प्रताड़ित कर हत्या कर दी और उसकी मौत को आत्महत्या का रंग दे दिया गया।

मामले की सुनवाई साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा से दिल्ली ट्रांसफर कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से जांच की गई, उससे पता चलता है कि मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई उत्तर प्रदेश के भीतर संभव नहीं होगी, क्योंकि आरोपी उत्तर प्रदेश पुलिस के सदस्य हैं।

केस टाइटल: प्रदीप कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य जुड़े मामले

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