COVID-19 संक्रमित शवों का कुप्रबंधनः NHRC ने केंद्र और राज्यों से कहा, "मृत शरीर के अधिकारों का संरक्षण सरकारों का कर्तव्य"
COVID-19 संक्रमित शवों के कुप्रबंधन संबंधी मीडिया रिपोर्टों पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने केंद्र और राज्य सरकारों को मृतकों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा के लिए शुक्रवार को एक एडवाइजरी जारी किया।
आयोग ने केंद्र, बिहार और उत्तर प्रदेश सरकारों को गुरुवार को गंगा नदी में तैरते शवों के मामले पर गुरुवार को एक नोटिस जारी किया था। मौजूदा एडवाइजरी को उक्त नोटिस के संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
आयोग ने कहा है, "यह बखूबी स्वीकृत कानूनी स्थिति है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन, उचित व्यवहार और गरिमा का अधिकार न केवल जीवित व्यक्तियों के लिए है बल्कि शवों को भी दिया गया है।
यह गौरतलब है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों, अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदाओं, डब्ल्यूएचओ, एनडीएमए, भारत सरकार द्वारा मृतकों की गरिमा और COVID प्रोटोकॉल संबंधी दिशानिर्देशों के बावजूद, COVID संक्रमित मृतकों के शवों की गरिमा के हनन की मीडिया रिपोर्टें आ रही हैं।"
आयोग ने महासचिव श्री बिंबाधर प्रधान के माध्यम से केंद्रीय गृह सचिव, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण सचिव और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों / प्रशासकों को लिखे पत्र में एडवाइजरी में की गईं सिफारिशों को लागू करने के लिए कहा है। साथ ही मामले की कार्रवाई रिपोर्ट चार सप्ताह के भीतर देने को कहा गया है।
आयोग ने यह भी कहा है, "देश में मृतकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कोई कानून नहीं है, हालांकि, संवैधानिक तंत्र, विभिन्न अदालती निर्णयों, अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदाओं और सरकारी दिशानिर्देशों की व्याख्या से संदर्भ लेते हुए, यह कहा गया है कि यह सरकार का कर्तव्य है कि मृतकों के अधिकारों की रक्षा... और इस संबंध राज्य और सभी हितधारकों के साथ विमर्श से एक एसओपी तैयार करें, ताकि मृतकों की गरिमा कायम रहे।"
महत्वपूर्ण रूप से, आयोग ने विभिन्न हितधारकों को व्यापक एडवाइजरी दी हैं, जिनमें सरकारें, पुलिस, प्रशासन, स्थानीय निकाय, अस्पताल, चिकित्सक, जेल प्रशासन, नागरिक समाज, मीडिया और परिवार शामिल हैं। .
महत्वपूर्ण सिफारिशें इस प्रकार हैं-
-मृतकों के अधिकारों की रक्षा के लिए विशिष्ट कानून बनाया जाए;
-प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होना चाहिए कि वह मृत्यु की किसी भी घटना की सूचना निकटतम पुलिस स्टेशन और/या आपातकालीन एम्बुलेंस सेवाओं या प्रशासनिक/कानूनी प्राधिकारियों को, जो भी संभव हो, तत्काल दे;
-प्रत्येक राज्य को मौतों का जिला-वार डिजिटल डेटाबेस बनाना चाहिए;
-किसी व्यक्ति की मृत्यु को सभी दस्तावेजों जैसे बैंक खाता, आधार कार्ड, बीमा आदि में एक साथ अपडेट किया जाना चाहिए।
-पुलिस प्रशासन सुनिश्चित करे कि पोस्टमार्टम में अनावश्यक देरी न हो।
-अंतिम बिल भुगतान की गिनती तक किसी भी शव को जान-बूझकर रखने से अस्पताल प्रशासन को स्पष्ट रूप से रोका जाना चाहिए; लावारिस शवों को सुरक्षित परिस्थितियों में संग्रहित किया जाना चाहिए;
-स्थानीय अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि परिवार के सदस्यों के अनुरोध पर मृतक के शरीर को ले जाने के लिए परिवहन सुविधाएं उपलब्ध हों और एम्बुलेंस शुल्क में मनमानी वृद्धि पर अंकुश लगाया जाए;
-लावारिस शवों का सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार करने की जिम्मेदारी लेने के लिए सीएसओ/एनजीओ को आगे आना चाहिए;
-अस्थायी श्मशान घाटों की स्थापना की जाए; धार्मिक अनुष्ठान, जिनमें मेंमृत शरीर को छूने की आवश्यकता नहीं होती है, जैसे धार्मिक मंत्रसे पढ़ना, पवित्र जल छिड़कना आदि, की अनुमति दी जाए;
-ऐसे मामलों में जहां परिवार को शरीर सौंपना संभव ना हो, राज्य / स्थानीय प्रशासन धार्मिक / सांस्कृतिक विधान को ध्यान में रखते हुए, शरीर का अंतिम संस्कार कर सकता है;
-परिवहन के दरमियान या किसी अन्य स्थान पर शवों का ढेर नही लगने देना चाहिए। इलेक्ट्रिक श्मशान के उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए; सामूहिक दफन/ दाह संस्कार की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि यह मृतकों की गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है;
-शवदाहगृह/ कब्रगाहों पर शवों को संभालने वाले कर्मचारियों को प्राथमिकता के साथ टीकाकरण किया जाए, साथ ही उन्हें सुरक्षात्मक गियर प्रदान किए जाने चाहिए और उन्हें उचित भुगतान किया जाना चाहिए।