COVID19: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जेल के हालात, कैदियों और स्टाफ के लिए उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं पर रिपोर्ट मांगी

Update: 2021-05-04 11:00 GMT

Uttarakhand High Court

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सोमवार (3 मई) को कोरोना महामारी के बीच कैदियों की स्थिति पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है।

मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चैहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने राज्य सरकार से निम्नलिखित तथ्यों पर जानकारी मांगी हैः

-राज्य में जेलों की संख्या,

-विचाराधीन कैदियों और सजायाफ्ता कैदियों की दोनों श्रेणियों में प्रत्येक जेल में कितने कैदी हैं

-कोरोना के संक्रमण से कितने कैदी प्रभावित हुए हैं

-कोरोना पाॅजिटिव पाए गए कैदियों के इलाज के उपलब्ध चिकित्सा सुविधाएं

- कोरोना के संक्रमण से प्रभावित कर्मचारियों की संख्या

-प्रभावित व्यक्तियों को क्वारंटीन करने के लिए उपलब्ध सुविधाएं

-जेल के भीतर उपलब्ध चिकित्सा सुविधाएं

-जेल में ऑक्सीजन टैंक, ऑक्सीजन बेड और वेंटिलेटर, यदि कोई हो तो

-पीपीई किट, मास्क और दस्ताने जैसे सुरक्षात्मक गियर की उपलब्धता।

न्यायालय के समक्ष मामला

इस मामले में जनहित याचिका दायर कर मांग की गई थी कि हाई पाॅवर कमेटी को निर्देश दिया जाए कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर के मद्देनजर जीवन के लिए आसन्न खतरे को देखते हुए रिमांड होम्स में बंद किशोरों सहित अंडर ट्रायल कैदियों को पैरोल पर या अंतरिम जमानत पर रिहा करने का फैसला लिया जाए।

याचिका में कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य में कई ऐसे कैदी है,जिनके मामले में जांच चल रही है या वो विचाराधीन कैदी हैं, जो कोरोना महामारी की दूसरी लहर से बनी परिस्थितियों के कारण काफी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।

इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन में, उच्च स्तरीय कमेटी(जिसमें राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष, गृह/ कारागार के प्रमुख सचिव, जेल के महानिदेशक शामिल हैं) ने कोरोना महामारी की पहली लहर के समय कैदियों को अंतरिम जमानत/पेरोल पर रिहा करने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए थे।

हालाँकि, अब जब स्थिति ज्यादा गंभीर है, प्रतिवादियों ने 26 मार्च 2020 की अधिसूचना के मद्देनजर किसी भी कैदी को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा नहीं किया है।

''यह एक स्वीकार किया गया तथ्य है कि उत्तराखंड राज्य के अधिकांश जेल परिसर इस समय हाईकोर्ट और अधीनस्थ न्यायालयों के समक्ष लंबित जमानत आवेदनों की सुनवाई के अभाव में नियमित कैदियों की रिहाई न होने के कारण भरे हुए हैं।''

इसके अलावा, दलील में कहा गया है कि हाईकोर्ट और अधीनस्थ न्यायालयों के समक्ष भी कई जमानत याचिकाएँ लंबित हैं और कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कारण अंडरट्रायल कैदी अपूरणीय क्षति, चोट और उनके जीवन पर मंडरा रहे खतरे का सामना कर रहे हैं,जो भारत के संविधान के आर्टिकल 21 का उल्लंघन है।

इसलिए याचिका में मांग की गई है कि हाई पाॅवर कमेटी को निर्देश दिया जाए कि वह उत्तराखंड राज्य विधिक सेवा द्वारा 26 मार्च 2020 को जारी आदेश के मद्देनजर रिमांड होम्स में रहने वाले किशोरों सहित विचाराधीन कैदियों को उपयुक्त अवधि के लिए पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा करें।

अदालत ने राज्य के मुख्य स्थायी वकील सीएस रावत को निर्देश दिया है कि वह 6 मई तक उपरोक्त जानकारी का विवरण देते हुए एक रिपोर्ट दाखिल करें।

इसने जेल के आईजी को भी उक्त तिथि पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से न्यायालय के समक्ष उपस्थित रहने का निर्देश दिया है।

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