COVID-19: हाईकोर्ट ने अस्पतालों / नर्सिंग होम में ड्यूटी पर होने वाली मौत के लिए मुआवजे की नीति पर दिल्ली सरकार से अपना रुख स्पष्ट करने को कहा
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में निजी या सरकारी अस्पताल, नर्सिंग होम में काम कर रहे डॉक्टरों, नर्सों, सुरक्षा कर्मचारियों, सफाई कर्मचारियों, पैरामेडिकल स्टाफ और अन्य कर्मचारी, जिनकी COVID 19 लहर के दौरान मृत्यु हो गई थी, उन्हें देय मुआवजे के संबंध में दिल्ली सरकार द्वारा बनाई गई पॉलिसी के बारे में उसका स्टैंड मांगा है।
जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस पूनम ए. बंबा की खंडपीठ जून 2020 में कोविड -19 महामारी की पहली लहर के दौरान मरने वाले स्वर्गीय डॉ हरीश कुमार की विधवा द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी।
याचिकाकर्ता के पति थे न्यू लाइफ हॉस्पिटल, जीटीबी नगर में सेवारत थे और कोविड ड्यूटी पर थे।
बेंच ने इस मामले में 25 मई को या उससे पहले जवाब मांगा है।
मामला मूल रूप से याचिकाकर्ता द्वारा लिए गए लोन और उसकी वसूली से संबंधित है, जिसमें विफल होने पर रिसीवर गिरवी रखी गई संपत्ति पर कब्जा कर लेगा।
20 अप्रैल को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता ने पहले ही ऋण वसूली न्यायाधिकरण के पास 90 लाख रुपये जमा कर दिए हैं।
कोर्ट ने कहा कि बैंक के वकील सुनवाई की अगली तारीख को सूचित करेंगे कि याचिकाकर्ता द्वारा देय बकाया राशि, यदि कोई हो, तो कितनी है।
मामले की अब वह 25 मई को सुनवाई होगी।
इस साल जनवरी में मामले से निपटने वाली पूर्ववर्ती पीठ ने प्रथम दृष्टया देखा था कि दिल्ली सरकार द्वारा सरकारी या निजी अस्पतालों, नर्सिंग होम अजर अन्य नर्सिंग होम में काम करने वाले डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ के बीच राज्य द्वारा अपेक्षित अंतर किया है, जिसकी आवश्यकता नहीं थी।
न्यायालय ने यह भी देखा था कि केवल इसलिए कि कुछ नर्सिंग होम को उनकी कम क्षमता के कारण उनके स्टाफ को मुआवजे की श्रेणी में शामिल नहीं किया गया, इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकते कि ऐसे नर्सिंग होम में काम करने वाले डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ भी खुद को कोविड और पीड़ित होने के जोखिम में डालकर लोगों का इलाज कर रहे थे।
इससे पहले दिल्ली सरकार ने प्रस्तुत किया था कि उसके कैबिनेट के फैसले के अनुसार, अनुग्रह राशि केवल सरकारी अस्पतालों या अन्य अस्पतालों में सेवारत डॉक्टरों और अन्य पैरामेडिक कर्मचारियों को दी जाती है, जिन्हें कोविड रोगियों के इलाज के लिए जीएनसीटीडी द्वारा अपेक्षित किया गया था।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता का मामला कैबिनेट के फैसले में शामिल नहीं था क्योंकि याचिकाकर्ता के दिवंगत पति 50 से कम बिस्तरों की क्षमता वाला एक नर्सिंग होम चला रहे थे और दिल्ली सरकार द्वारा ऐसे नर्सिंग होम को पॉलिसी में शामिल नहीं किया गया था।
कोर्ट ने कहा था,
"प्रथम दृष्टया यह हमें प्रतीत होता है, कि जीएनसीटीडी द्वारा खींचे जाने वाले भेद को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जीएनसीटीडी द्वारा अपेक्षित निजी अस्पतालों में सेवारत डॉक्टर और अन्य पैरामेडिक कर्मचारी कैबिनेट के फैसले से अलग किये हैं।"
इसमें कहा गया था,
"यह एक सर्वविदित तथ्य है कि पहली और दूसरी लहर के दौरान महामारी के चरम पर छोटे नर्सिंग होम भी दिल्ली के हजारों निवासियों को कोविड का इलाज कर रहे थे और यदि उनकी संख्या को एक साथ रखा जाए तो वे अधिक हो सकते हैं।
केस शीर्षक: शकुंतला देवी बनाम पीएनबी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड और अन्य
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