अदालतों को सावधान रहना चाहिए कि शादी की आड़ में आरोपी द्वारा अपराधों से बचने के लिए पीड़िता का इस्तेमाल ढाल के रूप में न किया जाएः इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में अदालतों को यह देखने के लिए आगाह किया है कि विवाह की आड़ में आरोपी द्वारा अपराधों से बचने के लिए पीड़िता/लड़की को ढाल के रूप में इस्तेमाल न किया जाए।
हाईकोर्ट ने कहा कि,''अदालतों को यह देखने के लिए पर्याप्त सतर्क रहने की आवश्यकता है कि किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की आड़ में, पीड़ित की व्यक्तिगत स्वतंत्रता आहत न हो या उसके साथ विवाह की आड़ में, उसे अपराध से बचने के लिए ढाल के रूप में इस्तेमाल न किया जा सके।''
न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस मामले की सुनवाई के दौरान की,जिसमें याचिकाकर्ताओं ने पहले एक लड़की/ पीड़ित का अपहरण किया और उसके बाद जबरदस्ती और धमकी के तहत, उसके साथ विवाह किया और उसके बाद हाईकोर्ट से संरक्षण भी प्राप्त किया। इस तरह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया गया।
संक्षेप में मामला
याचिकाकर्ताओं ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन दायर कर उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 366, 376-डी, 323, 342 और एसी/एसटी एक्ट की धारा 3 (2) (वी) के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की थी। दिनांक 16.06.2021 को इस मामले में लड़की के अपहरण और बलात्कार के आरोप में यह प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
उक्त प्राथमिकी (पीड़िता द्वारा स्वयं दर्ज करवाई गई) में पीड़िता का बयान भी शामिल है, जिसमें उसने स्पष्ट रूप से कहा है कि फरवरी में जब वह ब्यूटी पार्लर जा रही थी तो याचिकाकर्ताओं ने उसका अपहरण कर लिया और उसके बाद, उन्होंने उसके साथ मारपीट की और उसका यौन शोषण किया। उसे एक अज्ञात स्थान पर रखा गया।
उसने यह भी बताया कि जब उसके भाई ने 6 फरवरी, 2021 को पुलिस के समक्ष गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई तो याचिकाकर्ताओं ने पुलिस से बचने के लिए उसकी शादी एक आर्य समाज मंदिर में एक याचिकाकर्ता (उमाशंकर मौर्य) से जबरन करा दी।
उसे अपने बहनोई से यह कहने के लिए भी मजबूर किया गया कि अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। अपने बयान में, उसने यह भी कहा कि उसका रिश्ता उनके समाज के एक लड़के से पहले ही हो चुका था और वह दोनों दिसंबर 2021 में एक-दूसरे से शादी करने वाले थे।
दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं के वकील ने प्रस्तुत किया कि उमाशंकर (याचिकाकर्ता नंबर 1) ने पहले ही पीड़िता से शादी कर ली थी और उन दोनों ने संयुक्त रूप से हाईकोर्ट के समक्ष एक सुरक्षा याचिका दायर की थी, जिसे अनुमति देते हुए हाईकोर्ट द्वारा दिनांक 12.03.2021 को दिए गए आदेश के तहत निपटाया गया था।
पीड़िता के वकील ने तर्क दिया कि पीड़िता का बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किया जा चुका है, जिसमें उसने प्रथम सूचना रिपोर्ट के बयान का समर्थन किया है।
न्यायालय की टिप्पणियां
प्राथमिकी को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने शुरूआत में कहा कि इसमें याचिकाकर्ताओं द्वारा किए गए एक संज्ञेय अपराध का खुलासा किया गया है।
अदालत ने कहा, ''प्राथमिकी का अवलोकन करने के बाद प्रथम दृष्टया, याचिकाकर्ता नंबर 1 द्वारा कोर्ट के साथ की गई धोखाधड़ी का संकेत मिल रहा है,जिसके तहत उसने कोर्ट से रिट सी नंबर 7852/2021 में 12 मार्च 2021 का आदेश प्राप्त किया है।''
अंत में, याचिकाकर्ताओं की याचिका को खारिज करते हुए, न्यायालय ने कहा कि,
''मौजूदा मामले के तथ्य, प्रथम दृष्टया यह खुलासा करते हैं कि याचिकाकर्ता नंबर 1 ने पहले शिकायतकर्ता/प्रतिवादी/पीड़िता का अपहरण किया और उसके बाद, जबरदस्ती और धमकी के तहत उसके साथ विवाह किया और रिट सी नंबर 7852/2021 दायर करके सुरक्षा भी प्राप्त की...यह प्रथम दृष्टया प्रक्रिया कानून का दुरूपयोग है जिसे रोकने की जरूरत है।''
केस का शीर्षक - उमाशंकर व अन्य बनाम यूपी राज्य व दो अन्य
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