अदालत ने तमिलनाडु के पूर्व स्पेशल डीजीपी को महिला आईपीएस अधिकारी के यौन उत्पीड़न के मामले में तीन साल कैद की सजा सुनाई

Update: 2023-06-16 07:49 GMT

तमिलनाडु के विल्लुपुरम में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट ने डीजीपी रैंक के अधिकारी राजेश दास को यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया। राज्य में स्पेशल डीजीपी रहे दास ने 2021 में ड्यूटी के दौरान महिला पुलिस अधीक्षक का यौन उत्पीड़न किया था।

विल्लुपराम मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पुष्परानी ने शुक्रवार को दास को तीन साल कैद और जुर्माने की सजा सुनाई। अदालत ने चेंगलपट्टू के तत्कालीन एसपी डी कन्नन पर 500 रुपये का जुर्माना भी लगाया, जिन्होंने महिला आईपीएस अधिकारी को शिकायत दर्ज कराने से रोकने की कोशिश की थी।

मामले की पृष्ठभूमि

महिला अधिकारी ने पुलिस डायरेक्टर जनरल, चेन्नई से शिकायत की थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि 21 फरवरी, 2021 को स्पेशल डीजीपी द्वारा उनकी आधिकारिक कार में उनका यौन उत्पीड़न किया गया, जब वे 21 फरवरी, 2021 को आधिकारिक ड्यूटी पर उलुंदुरपेट जिले में जा रहे थे।

इसके बाद एफआईआर दर्ज की गई। CBCID द्वारा स्पेशल DGP और पुलिस अधीक्षक, चेंगलपेट के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354A(2), 341, 506(1) और तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम, 1998 की धारा 4 के तहत अपराध दर्ज किया गया।

महिला अधिकारी द्वारा दी गई यौन उत्पीड़न की शिकायत की जांच के लिए समिति का भी गठन किया गया। उसने यह भी आरोप लगाया कि स्पेशल डीजीपी और अन्य ने उसे शिकायत दर्ज करने से रोका था।

मद्रास हाईकोर्ट ने 2021 में इस मुद्दे का स्वतः संज्ञान लिया था, इसे "चौंकाने वाला" और "राक्षसी" कहा था, जो तमिलनाडु पुलिस बल से संबंधित महिला अधिकारियों को प्रभावित करता था। अदालत ने भी इस घटना की कड़ी आलोचना की थी और कहा था कि यह असाधारण मामला है, जिसकी जांच की निगरानी की आवश्यकता है। अदालत के आदेश के बाद तमिलनाडु सरकार ने अधिकारी को निलंबित कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

जबकि हाईकोर्ट जांच की निगरानी करना जारी रखे हुए था, दास ने मुकदमे को तमिलनाडु से बाहर ट्रांसफर करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने तर्क दिया कि उनके खिलाफ हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों की श्रृंखला ने निष्पक्ष सुनवाई के लिए उनके अवसरों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला था। हाईकोर्ट द्वारा पिछले सभी आदेशों को रद्द करने की भी मांग की गई।

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि चूंकि हाईकोर्ट ने बिना किसी स्थगन के समयबद्ध तरीके से मुकदमे को पूरा करने का आदेश दिया था, इसलिए जांच सिस्टम पर कम से कम समय में चार्जशीट दाखिल करने का दबाव डाला गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने तब हाईकोर्ट द्वारा जांच की निगरानी के लिए दर्ज स्वत: संज्ञान मामले को बंद कर दिया और आदेश दिया कि हाईकोर्ट द्वारा पारित सभी पिछले आदेशों से किसी भी तरह से प्रभावित हुए बिना निचली अदालत इस मामले पर अपने गुण-दोष के आधार पर विचार करे।

निलंबन के खिलाफ चुनौती

दास ने 2021 में सेवा से अपने निलंबन को चुनौती देते हुए सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने दावा किया कि यौन उत्पीड़न का आरोप निराधार है और केवल उन्हें पदोन्नति पाने से रोकने के लिए लगाया गया है।

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