वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये अदालत की कार्यवाही 'न्यायसंगत परिस्थितियों' में आयोजित की जा सकती है: मद्रास हाईकोर्ट ने वीडियो कांफ्रेंसिंग नियमों को अधिसूचित किया
वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये अदालतों और न्यायाधिकरणों द्वारा अदालती कार्यवाही के संचालन के नियमन के लिए मद्रास हाईकोर्ट वीडियो कांफ्रेंसिंग कोर्ट रूल्स, 2020 को अधिसूचित किया गया है।
ये नियम कहते हैं कि यदि न्यायसंगत परिस्थितियां हों तो कोई कोर्ट स्वत: संज्ञान लेकर या किसी पार्टी अथवा गवाह की अर्जी पर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये न्यायिक कार्यवाही संचालित कर सकता है।
न्यायसंगत परिस्थितियों को उन परिस्थितियों के तौर पर परिभाषित किया गया है, जिनके तहत कोर्ट की राय में स्टैंडर्ड प्रैक्टिस (मानक परम्परा) के अनुसार कोर्ट की कार्यवाही संचालित करना व्यावहारिक न हो। उदाहरण के तौर पर- महामारी, प्राकृतिक आपदाएं, स्थानीय अशांति, कानून एवं व्यवस्था का मसला और स्वास्थ्य एवं सुरक्षा से संबंधित मामले। इसके अलावा कोई ऐसी परिस्थिति जिसके कारण कोर्ट की शरण में आने वाला या सुदूर क्षेत्र का आदमी अदालत में व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित नहीं हो सकता है तो उसे भी न्यायसंगत परिस्थितियों की संज्ञा दी जा सकती है।
अभियुक्तों की न्यायिक स्वीरोक्ति और इकरार (समझौते) की रिकॉर्डिंग तथा लोक अदालतों और जेल अदालतों में फैसलों की घोषणा वीडियो कांफ्रेंसिंग द्वारा नहीं की जाएंगी।
नियम 6 यह कहता है कि कोर्ट अपने विवेक का इस्तेमाल करके वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये अभियुक्त की पुलिस कस्टडी अथवा रिमांड अवधि बढ़ाने की अनुमति दे सकता है।
कोर्ट अपवाद की स्थिति में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत किसी गवाह या अभियुक्त की गवाही (न्यायिक स्वीकारोक्ति को छोड़कर) भी करा सकता है, बशर्ते इसके लिए लिखित में कारण दर्ज करना होगा। इतना ही नहीं, यह सुनिश्चित करने के लिए सभी सावधानियां बरतनी होंगी कि मामले के अनुरूप गवाह या अभियुक्त पर कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं की गयी हो, न ही उसे डराया धमकाया गया हो या न उसे बेवजह प्रभावित किया गया हो। नियम कहता है कि कोर्ट साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 27 के प्रावधानों पर अमल सुनिश्चित करेगा।
नियम 9 कहता है कि बंद कमरे में होने वाली सुनवाई को छोड़कर कोर्ट अन्य कार्यवाहियों को सार्वजनिक करने का प्रयास करेगा। हालांकि बंद कमरे में सुनवाई के लिए कोर्ट को लिखित तौर पर कारण बताना होगा।
इन नियमों में प्रैक्टिस से संबंधित दिशानिर्देश भी जारी किये गये हैं।