अदालत मोटर दुर्घटना के दावे में मुआवजे की राशि बढ़ा सकती है, चाहे कोई भी अपील दायर करेः बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत एक दुर्घटना पीड़ित को दिए गए मुआवजे की राशि के खिलाफ एक बीमा कंपनी द्वारा एक अपील पर विचार किया। दावेदार ने इस अपील के दौरान, उसको दिए गए मुआवजे की अपर्याप्तता का मुद्दा भी उठाया।
जस्टिस भारती डांगरे की एकल पीठ ने कहा कि हालांकि दावेदार ने मुआवजे में वृद्धि के लिए अपील दायर नहीं की थी,
''मोटर वाहन अधिनियम कानून का एक हितकारी पीस है और उस पीड़ित को कुछ सांत्वना प्रदान करता है, जो दुर्घटना का शिकार होता है या पीड़ित के परिवार को, जब रोटी कमाने वाला विकलांग हो जाता है या उक्त दुर्घटना में दम तोड़ देता है। पीड़ित या उसके परिवार को उनके जीवित रहने और उस कठिनाई को झेलने के लिए मुआवजा देने में न्यायालय का कर्तव्य 'न्यायसंगत' मुआवजा सुनिश्चित करना है, भले ही दावेदार द्वारा इस संबंध में कोई याचिका दायर न की गई हो।''
24 वर्षीय दावेदार मोटरसाइकिल पर जा रहा था, तभी विपरीत दिशा से आ रहे ट्रक ने उसे टक्कर मार दी। उसे गंभीर शारीरिक चोटें आई और कई फ्रैक्चर हुए। जिसके चलते उसे कई सर्जरी से गुजरना पड़ा, जिसमें हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी भी शामिल थी। डॉक्टर ने उसकी विकलांगता का आकलन 83 प्रतिशत के रूप में किया था।
दावेदार का यह मामला है कि आज भी, वह पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ है और उसकी कार्यात्मक क्षमता को 100 प्रतिशत प्रभावित करने वाली विकलांगता से ग्रस्त है, क्योंकि वह बिना किसी सहायता के अपनी दैनिक दिनचर्या और कामों को पूरा करने में असमर्थ है। वहीं दुर्घटना से पहले वह जो काम और व्यवसाय कर रहा था,उसको भी नहीं कर पा रहा है। उसने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के तहत उसकी विकलांगता के आधार पर कमाई की क्षमता का नुकसान और उसके द्वारा इलाज पर खर्च की गई राशि(जिसमें परिवहन, दवाओं, विशेष आहार और उसकी दिनचर्या में सहायता करने वाले परिचारक का खर्च शामिल था) की भरपाई के लिए मुआवजे के रूप में 1,50,00,000 रुपये की राशि का दावा किया था।
ट्रिब्यूनल ने आंशिक रूप से दावे की अनुमति दी और दावेदार को आवेदन की तिथि से इसकी प्राप्ति तक की अवधि के लिए छह प्रतिशत प्रति वर्ष के ब्याज के साथ 52,63,219 रुपये के मुआवजे का हकदार माना। बीमा कंपनी ने मुआवजे की राशि से व्यथित होकर अपील दायर की। दावेदार ने उसे प्रदान की गई मुआवजे की अपर्याप्त राशि के खिलाफ कोई अपील दायर नहीं की थी, फिर भी इस स्तर पर उसने मुआवजे की राशि को बढ़ाने की मांग की। इसका अपीलार्थी बीमा कंपनी ने विरोध किया।
एकल न्यायाधीश ने, स्थापित कानूनी स्थिति के मद्देनजर, दावेदार की इस दलील को स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं की है कि अदालत को स्वयं के मोशन पर भी मुआवजे को बढ़ाने का अधिकार है, अगर यह पाया जाता है कि दिया गया मुआवजा 'न्यायसंगत' मुआवजा नही है।
दावेदार ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड व अन्य बनाम कुंती बिनोद पांडे व अन्य, 2020(1) बीसीआर, 629 के निर्णय पर भरोसा किया, जहां एमएसीटी द्वारा दिए गए मुआवजे व निर्णय को चुनौती देते हुए बीमा कंपनी ने एक अपील दायर कर इसी तरह की आपत्ति उठाई थी। इस मामले में यह माना गया था कि यह ट्रिब्यूनल और न्यायालय का एक वैधानिक दायित्व है कि वह पूरी तरह से न्याय करें और 'न्यायसंगत' मुआवजा प्रदान करें। जस्टिस आरडी धानुका द्वारा यह भी माना गया है कि क्रॉस-अपील या क्रॉस-ऑब्जेक्शन के अभाव में भी उचित मामले में मुआवजे को बढ़ाने के लिए कोई प्रतिबंध नहीं हो सकता है।
कोर्ट ने रंजना प्रकाश व अन्य बनाम डिवीजनल मैनेजर व अन्य के मामले में दिए गए फैसले का भी उल्लेख किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मुआवजे में वृद्धि की मांग के लिए दावेदार द्वारा मूल अपील या क्रॉस-ऑब्जेक्शन दाखिल करना आवश्यक नहीं है।
इस आलोक में, हाईकोर्ट ने दावेदार को दो तरह की राहत प्रदान की हैः
पहली, कोर्ट ने कौशनुमा बेगम व अन्य बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी, 2001(1) एससीआर 8 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के आलोक में, आवेदन की तारीख से इसकी प्राप्ति तक ब्याज की दर को छह प्रतिशह प्रति वर्ष से बढ़ाकर 9 प्रतिशत प्रति वर्ष कर दिया।
दूसरा, कोर्ट ने दावे के अनुदान के लिए समग्र परिस्थितियों पर विचार किया यानी उसकी उम्र, आय और भविष्य की संभावनाएं, और निष्कर्ष निकाला कि वह (जो मुआवजा उसे ट्रिब्यूनल द्वारा दिया गया है,उसके अलावा) सुविधाओं के नुकसान के लिए 5 लाख रुपये और जीवन की उम्मीद के नुकसान के लिए पांच लाख रुपये की राशि पाने का हकदार है।
केस का शीर्षकः प्रबंधक, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम श्री नीलेश सुरेश भंडारी व अन्य
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