अदालत मुद्दों को तय करने के लिए की गई याचनाओं से आगे नहीं बढ़ सकती: सिक्किम हाईकोर्ट

Update: 2022-09-10 07:11 GMT

सिक्किम हाईकोर्ट ने माना कि निचली अदालतें केवल उन याचनाओं के संबंध में मुद्दों को तय कर सकती हैं, जो पक्षकार द्वारा दावा किया जाता है और दूसरे द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है। जस्टिस भास्कर राज प्रधान ने कहा कि मुकदमे की कार्यवाही पक्षकारों द्वारा रिकॉर्ड में रखी गई याचनाओं से आगे नहीं बढ़ सकती।

उक्त अवलोकन ऐसे मामले में आया, जिसमें निचली अदालत ने संपत्ति विवाद में मुद्दा तय किया था, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि वादी के संयुक्त परिवार की कानूनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए वाद की संपत्ति बेची गई थी।

इस पर वाद के प्रतिवादी ने इस मुद्दे के निर्धारण पर आपत्ति जताते हुए हाईकोर्ट का रुख किया।

हाईकोर्ट ने नोट किया कि विवादित मुद्दे को ट्रायल कोर्ट द्वारा इस बात पर ध्यान देने के बावजूद तैयार किया गया कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि संपत्ति को कानूनी दायरे से बाहर बेचा गया।

कोर्ट ने कहा,

"यह मौलिक है कि मुद्दों को तब तैयार किया जाता है जब तथ्य या कानून के भौतिक पूर्वसर्ग की पुष्टि एक पक्ष द्वारा की जाती है और दूसरे द्वारा अस्वीकार कर दी जाती है ... ट्रायल कोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना कि कानूनी आवश्यकता की कोई याचना या अस्वीकार नहीं है। यदि ऐसा है तो तब कानूनी आवश्यकता का मुद्दा आवश्यक नहीं है।"

मामले में पोन्नयाल उर्फ ​​लक्ष्मी बनाम करुप्पनन, (2019) 11 एससीसी 800 पर भरोसा किया गया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि दीवानी सूट का फैसला याचनाओं और मुद्दों के आधार पर किया जाता है। सूट के पक्षकारों को आगे याचनाओं से आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने मुद्दा तैयार किया जिसे उसने की गई याचनाओं को आवश्यक समझा और निचली अदालत को तदनुसार मुकदमे को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया।

केस टाइटल: खरका सिंह छेत्री बनाम मंगल चंद्र राय और संबंधित मामले

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