ट्रायल कोर्ट के फैसले को रीडर के हस्ताक्षर के तहत संशोधित करके दोषी की सजा में वृद्धि: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपीलीय अदालत से जांच करने को कहा

Update: 2022-05-31 10:57 GMT

Punjab & Haryana High Court

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष हाल ही में एक ऐसा मामला आया, जहां निचली अदालत की ओर से पारित दोषसिद्धि के मूल आदेश को अदालत के रीडर के हस्ताक्षर के जर‌िए संशोधित किया गया था। यह उक्त फैसले के खिलाफ दोषी द्वारा की गई अपील की पेंडेंसी के दरमियान किया गया था, जिससे दोषी की दो महीने की सजा बढ़कर दो साल हो गई थी।

जस्टिस अरविंद सिंह सांगवान की पीठ ने कहा कि सभी दोषियों को मूल रूप से धारा 323/326/120-बी आईपीसी के साथ धारा 149 आईपीसी के तहत दोषी ठहराया गया था।

हालांकि, टाइपोग्राफिक गलती के कारण, धारा 323 के तहत अपराध का दो बार उल्लेख किया गया था और धारा 326 आईपीसी के तहत अपराध का उल्लेख सजा के कॉलम में नहीं किया गया था। जिसके बाद ट्रायल कोर्ट ने धारा 362 सीआरपीसी के प्रावधानों का सहारा लिया, जिसके अनुसार, एक लिपिक या अंकगणितीय त्रुटि को ठीक किया जा सकता है।

हालांकि, यह अदालत के ध्यान में लाया गया था कि मूल आदेश में किए गए सुधारों में, जिस पर मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे, सजा को 2 साल के कठोर कारावास तक बढ़ा दिया गया था। यह कोर्ट के रीडर के हस्ताक्षर के तहत किया गया था न कि मजिस्ट्रेट के।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि एक बार न्यायिक मजिस्ट्रेट ने सजा पर आदेश पारित कर दिया है, मूल निर्णय में सुधार, यदि कोई हो, केवल न्यायिक मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर के तहत किया जा सकता है, हालांकि यह एक बहस का मुद्दा होगा कि क्या किसी निर्णय के पारित होने के बाद वही न्यायिक मजिस्ट्रेट सजा को दो महीने से बढ़ाकर दो वर्ष कर सकता है।

इसलिए, उस आदेश को रद्द करने के लिए मौजूदा याचिका दायर की गई थी जिसके तहत अपील के लंबित रहने के दरमियान, ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित निर्णय को संशोधित किया गया था।

इस मामले में अदालत ने कहा कि यह जानने के लिए एक जांच की आवश्यकता है कि संबंधित न्यायालय के रीडर के हस्ताक्षर के तहत सुधार कैसे किए गए, जिससे सजा में वृद्धि हुई, हालांकि मूल आदेश में टाइपोग्राफिक गलती को इसे केवल सही करने का निर्देश दिया गया था।

कोर्ट ने कहा, हालांकि इन सभी बिंदुओं को सत्र न्यायाधीश, तरनतारन द्वारा तय करने की आवश्यकता है, जो स्वयं सत्र प्रभाग, तरनतारन की प्रशासनिक प्रमुख हैं और इस बात की जांच की आवश्यकता है कि संबंधित न्यायालय के रीडर के हस्ताक्षर के तहत सुधार कैसे किए गए थे..।

कोर्ट ने आगे कहा,

"उपरोक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह निर्देश दिया जाता है कि निचली अपीलीय अदालत उक्त आदेश के विरुद्ध अपील के आधार में संशोधन की अनुमति देगी तथा प्रशासनिक पक्ष की जांच कर अपील पर कानून के अनुसार निर्णय करेगी।

कोर्ट ने अंततः निष्कर्ष निकाला कि अपील का फैसला करते समय, निचली अपीलीय अदालत यह भी निष्कर्ष दर्ज करेगी कि धारा 362 सीआरपीसी के संदर्भ में, कानून के तहत इस तरह के संशोधन की अनुमति थी या नहीं। इसलिए, इस याचिका में प्रार्थना को संशोधित किया गया है।

केस टाइटल: गुरमहबीर सिंह बनाम पंजाब राज्य

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