(बलात्कार) सिर्फ पुलिस को सीआरपीसी की धारा 154/161 के तहत दिए गए बयानों के आधार पर नहीं हो सकती सजा, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Update: 2019-10-24 07:54 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के एक आरोपी को बरी करते हुए कहा है कि एक अभियुक्त की सजा पूरी तरह से दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 161 या 154 के तहत पुलिस द्वारा दर्ज किए गए गवाहों के बयान पर आधारित नहीं हो सकती।

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने बलात्कार के मामले में एक आरोपी को बरी कर दिया, जिसे पंद्रह साल पहले वर्ष 2004 में इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने दोषी करार दिया था।

यह था मामला

नारा पेद्दि राजू बनाम ए.पी राज्य मामले में, लड़की ने खुद प्राथमिकी दर्ज कराई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपी ने उसके साथ बलात्कार किया था। ट्रायल के दौरान वह और उसके पति दोनों अपने बयान से मुकर गए थे।

शिकायतकर्ता लड़की ने पुलिस के सामने जो बयान दिया था, उसके विपरीत लड़की ने जिरह के दौरान कहा कि वह आरोपी को नहीं जानती और न ही उस व्यक्ति को पहचान सकती है जिसने उसका यौन उत्पीड़न किया था, क्योंकि वहां बहुत अंधेरा था। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 और 161 के तहत दर्ज किए गए बयानों पर भरोसा करते हुए आरोपी को दोषी ठहराया था, जिसे बाद में वर्ष 2011 में हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा था।

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इस मामले में आरोपी को दस साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी। हाईकोर्ट ने इस सजा को बरकरार रखने के लिए, प्रमुख रूप से इस तथ्य को आधार बनाया था कि गवाह का बयान होने के तीन महीने बाद उसका प्रति-परीक्षण किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट में अपील

आरोपी द्वारा दायर अपील पर विचार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अदालत में शपथ लेकर दिए गए बयानों को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए आरोपी को सजा दी थी। पीठ ने कहा कि-

''यह अदालत में शपथ पर दिया गया बयान है जिसे सजा का आधार बनना है। किसी अभियुक्त की सजा सीआरपीसी की धारा 161 या धारा 154 के तहत दर्ज गवाहों के बयान पर आधारित नहीं हो सकती। विशेषकर तब, जब गवाह अदालत में पेश होने के दौरान अपने पहले के बयानों से पलटते हैं और अदालत में पूरी तरह से अलग बयान देते हैं।''

अदालत ने कहा कि, हालांकि बलात्कार के एक मामले में सजा सिर्फ पीड़िता की की एकमात्र गवाही पर आधारित हो सकती है, बस बयान विश्वास को प्रेरित करने वाला होना चाहिए।

आरोपी की तरफ से दायर अपील को स्वीकारते हुए पीठ ने आरोपी को बरी कर दिया और कहा कि-

''यह पीड़ित का मामला है जो गर्म और ठंड में बह रहा है और जिसने समय-समय पर अपना बयान बदल दिया है। इस तरह के गवाह को एक भरोसेमंद गवाह के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इसलिए केवल पीड़िता के बयान के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराना उचित नहीं होगा। यह बात पहले से ही ऊपर कही गई है, यहां तक कि उसके पति ने भी पीड़िता के बयान का समर्थन नहीं किया है।'' 

फैसले की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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