दोषी का कहना है कि उसने 2 साल से अधिक जेल में बिताए, पुलिस का कहना है कि वह वहां कभी था ही नहीं: हाईकोर्ट ने हरियाणा के डीजीपी को मामले देखने का आदेश दिया

Update: 2023-07-12 03:55 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा के डीजीपी को उस मामले की जांच करने का निर्देश दिया, जिसमें दोषी ने दावा किया कि वह 1999 के मामले में पहले ही 02 साल और 05 महीने से अधिक की हिरासत में रह चुका है, लेकिन पुलिस के अनुसार, वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा उस पर लगाई गई दो साल की सजा अभी बाकी है।

जस्टिस सुवीर सहगल की पीठ ने स्थिति पर ध्यान देते हुए कहा,

"हरियाणा के पुलिस डायरेक्टर जनरल को मामले को देखने दें और हलफनामा दाखिल करने दें।"

अदालत याचिकाकर्ता के खिलाफ 2020 में रोहतक अदालत द्वारा जारी दोबारा गिरफ्तारी वारंट को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता सुनील पर 1999 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 148, 332, 353, 333, 452 और 506 के तहत मामले में आरोप लगाया गया।

2002 में सुनील को ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया और आठ साल की कैद की सजा सुनाई। इसके बाद 2010 में उसने हाईकोर्ट में अपील दायर की, जिसमें सजा को घटाकर चार साल कर दिया गया। 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सज़ा घटाकर दो साल कर दी।

पुलिस ने याचिका के जवाब में कहा कि 2020 में नारनौल जेल के उपाधीक्षक द्वारा जारी पत्र के अनुसार, सुनील नवंबर, 1999 से जुलाई, 2001 तक जिला जेल, रोहतक में विचाराधीन आरोपी के रूप में रहा। नवंबर, 2002 से जून, 2003 तक वह जिला जेल, रोहतक में रहा और जून, 2003 से अगस्त, 2003 तक वह जिला जेल, नारनौल में रहा।

इसमें आगे कहा गया कि रोहतक जेल इंस्पेक्टर के अनुसार उसे अक्टूबर 2016 में जेल से रिहा कर दिया गया। हालांकि, पुलिस ने विभागीय जांच के दौरान कहा, "यह पाया गया कि याचिकाकर्ता 17.11.1999 से 30.7.2001 तक हिरासत अवधि के दौरान कभी भी किसी जेल में नहीं रहा।" इसलिए पुलिस ने कहा, 2019 में पुनः गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया।

पुलिस ने कहा,

"याचिकाकर्ता को कभी भी हिरासत में नहीं लिया गया। उसने 03.10.2016 को जेल अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने उसे हिरासत में नहीं लिया।"

हालांकि, याचिकाकर्ता के अनुसार, अपील की लंबित अवधि के दौरान, वह पहले ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसे दी गई सजा से अधिक यानी 2 साल और 05 महीने की कैद काट चुका है। पुनः गिरफ्तारी वारंट के खिलाफ पुनर्विचार याचिका में उसने तर्क दिया कि गिरफ्तारी वारंट जेल अधिकारियों के अनुरोध पर रोहतक कोर्ट द्वारा इस तथ्य की अनदेखी करते हुए जारी किया गया कि वह पहले ही कारावास की सजा काट चुका है।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि निचली अदालत वारंट जारी करते समय इस तथ्य को समझने में विफल रही है कि आवेदक कानूनी रूप से रिहा किया गया व्यक्ति है और वह भगोड़ा नहीं है।

याचिका में कहा गया,

"कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत कानूनी रूप से रिहा किए गए व्यक्ति के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया जा सके।"

मामले को आगे विचार के लिए 18 अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध किया गया।

केस टाइटल: सुनील कुमार @ कल्लू बनाम हरियाणा राज्य

उपस्थिति: याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट निखिल घई और एडवोकेट शुभम मंगला।

रामेंदर सिंह चौहान, एएजी, हरियाणा।

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