'फिल्म का कंटेंट सांप्रदायिक रूप से पक्षपातपूर्ण': दिल्ली हाईकोर्ट में 'द कन्वर्जन' फिल्म की रिलीज को रोकने के लिए याचिका दायर
दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर कर 'द कन्वर्जन' फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने और उपयुक्त अधिकारियों द्वारा इसकी समीक्षा/जांच और सेंसर किए जाने तक इसके ट्रेलर को यूट्यूब से हटाने की मांग की गई।
अधिवक्ता आदिल शरफुद्दीन और उबैद यूआई हसन के माध्यम से ऑल इंडिया प्रैक्टिसिंग लॉयर्स काउंसिल द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि फिल्म के ट्रेलर में पक्षपातपूर्ण और सांप्रदायिक सामग्री को दर्शाया गया है।
उक्त फिल्म से आगामी उत्तर प्रदेश चुनावों के बीच सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की संभावना है।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने मामले की सुनवाई गुरुवार को की।
हालांकि सुनवाई को स्थगित कर दिया गया, क्योंकि वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश होने वाले याचिकाकर्ता के वकील को सुना नहीं जा रहा था।
सुनवाई के दौरान एएसजी चेतन शर्मा ने याचिका के विचारणीयता पर आपत्ति जताई।
उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता के लिए कानून में कई रास्ते उपलब्ध हैं। इस मामले में एक रिट कोर्ट से हस्तक्षेप करने के लिए कहना न केवल संविधान के अनुच्छेद 226 का दुरुपयोग है बल्कि जॉन डो (अज्ञात पक्षकार के खिलाफ आदेश) की मांग करना भी है।
उन्होंने कहा कि 45-50 व्यवस्थाएं हैं जिनके तहत सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम सहित सामग्री पर आपत्ति की जा सकती है।
उन्होंने सुझाव दिया,
"आप आईपीसी के प्रावधानों के तहत एफआईआर भी दर्ज कर सकते हैं।"
कोर्ट ने अब मामले की सुनवाई एक अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी।
याचिकाकर्ता निकाय ने प्रस्तुत किया कि उसने सूचना और प्रसारण मंत्रालय और यूट्यूब को भी फिल्म के ट्रेलर में दिखाए गए पक्षपातपूर्ण और सांप्रदायिक सामग्री के बारे में शिकायत करते हुए एक प्रतिनिधित्व भेजा और फिल्म के ट्रेलर को हटाने और इसकी रिलीज को रोकने का भी अनुरोध किया, लेकिन इसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
याचिका में कहा गया कि फिल्म के ट्रेलर की सामग्री एक धर्म के खिलाफ और उस सिद्धांत के खिलाफ है जिसके तहत भारत के संविधान का अनुच्छेद 19 (2) आधारित है।
याचिका में कहा गया,
"फिल्म के ट्रेलर से पता चलता है कि फिल्म की सामग्री मनगढ़ंत है, सांप्रदायिक रूप से पक्षपाती है। साथ ही सच्चाई से बहुत दूर और समाज या विशेष समुदाय के एक वर्ग को क्रूर रूप में चित्रित करती है। लव जिहाद के विचार का प्रचार करती है। विचार और शब्द एक मिथ्या नाम हैं और धर्म के आधार पर समाज के एक हिस्से को भेदभाव और विभाजित करते हैं।"
इसमें यह भी कहा गया कि फिल्म की सामग्री तार्किक अनुमानों पर आधारित है और बिना किसी डेटा और उक्त सामग्री के समाज के कुछ वर्ग के बीच घृणा को बढ़ावा देने के लिए व्यवहार्य है।
याचिका में कहा गया,
"फिल्म 'द कन्वर्जन' के ट्रेलर की सामग्री के अध्ययन से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि इसमें पहचान-आधारित हिंसा की संभावना है, खासकर भारत जैसे देश में जहां सांप्रदायिक घृणा और हिंसा का इतिहास है।"
केस टाइटल: ऑल इंडिया प्रैक्टिसिंग लॉयर्स काउंसिल बनाम भारत संघ और अन्य।