"धार्मिक टैटू हटाने पर उम्मीदवारी पर विचार करें": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र को BSF हेड कांस्टेबल उम्मीदवार को राहत दी

Update: 2023-05-23 07:17 GMT

आज के दौर में लोगों में टैटू बनवाने का काफी ट्रेंड है, खासकर युवाओं। वैसे ये निजी पसंद का मामला है,लेकिन कभी-कभी ये नुकसान भी पहुंचा सकती है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है। एक युवक ने सीमा सुरक्षा बल यानी BSF हेड कांस्टेबल की परीक्षा पास कर ली थी। लेकिन उसे नौकरी से रिजेक्ट कर दिया गया था। रिजेक्ट करने की पीछे की वजह थी कि उसके दाहिने हाथ पर धार्मिक टैटू। अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने युवक को राहत दी है। कोर्ट ने कहा कि अगर युवक टैटू हटा देता है तो केंद्र सरकार उसकी उम्मीदवारी पर विचार करे।

जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। बेंच ने केंद्र को निर्देश दिया कि अगर उम्मीदवार टैटू हटा देता है तो आवेदन पर विचार किया जा सकता है।

आइए पूरा मामला समझते हैं।

युवक ने साल 2018 की BSF हेड कांस्टेबल (रेडियो ऑपरेटर) की परीक्षा पास की। इसके बाद सेकेंड राउंड में पहुंचा। वो डॉक्यूमेंटेशन, PST और PET में भी सफल रहा। हालांकि, मेडिकल टेस्ट में टैटू के कारण अनफिट पाया गया।

युवक ने राहत पाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। युवक की ओर से पेश वकील ने कहा कि अगर उसे फिर से मौका मिलेगा तो वो टैटू हटा देगा। उसके बाद उसकी मेडिकल रिव्यू जांच फिर से की जा सकती है।

दूसरी ओर, केंद्र की ओर से पेश वकील ने याचिका का विरोध किया। और कहा कि नौकरी से रिजेक्ट करने के यो नियम और कानून भारतीय सेना के हैं वही BSF के भी हैं। इन नियमों के मुताबिक अगर किसी के शरीर पर टैटू है तो उसे नौकरी नहीं दी जा सकती है। इसलिए याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी खारिज कर दी गई।

आगे कहा- जहां तक टैटू हटाने का संबंध है, उम्मीदवार विहान नगर बनाम भारत संघ और अन्य मामले में हाईकोर्ट के फैसले से बंधा हुआ है। इसमें कोर्ट ने कहा था कि अगर टैटू हटा दिया जाता है तो फिर एक मेडिकल रिव्यू की जा सकती है, जिसमें उसे सिलेक्शन के लिए फिट पाया जा सके।

इसे देखते हुए कोर्ट ने केंद्र को आदेश दिया कि अगर युवक टैटू हटा देता है तो उसके आवेदन पर विचार करें। इस विशेष विकलांगता को मिनिस्ट्रिल पोस्ट पर चयन के लिए बाधा नहीं माना जा सकता है जिसके लिए याचिकाकर्ता ने आवेदन किया था।

कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर युवक स्थायी रूप से विकलांग है तो उस पर विचार नहीं किया जा सकता है। रिव्यू मेडिकल बोर्ड दो महीने के भीतर जांच पूरी करे।

याचिकाकर्ता के वकील: बिनोद कुमार मिश्रा, अतुल कुमार दुबे

प्रतिवादी के वकील: ए.एन. रॉय ए.एस.जी.आई.

केस टाइटल - हिमांशु कुमार बनाम भारत संघ और 2 अन्य [WRIT - A No. - 8063 of 2023]

केस साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एबी) 158

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