एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायतकर्ता को कंपनी के निदेशकों की सटीक भूमिका का पता नहीं हो सकता है, परोक्षा देयता के बारे में बुनियादी जानकारी पर्याप्त: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत एक कंपनी के निदेशकों के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही में, शिकायतकर्ता से केवल यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी परोक्ष देयता के बारे में आवश्यक बयान दे और उसके बाद निदेशकों पर यह साबित करने का भार होता है कि वे दोषी ठहराए जाने के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा,
"शिकायतकर्ता को केवल आम तौर पर यह जानना चाहिए कि कंपनी के मामलों के प्रभारी कौन थे ... शिकायतकर्ता से केवल यह अपेक्षा होती है कि वह यह आरोपित करे कि शिकायत में नामी व्यक्ति कंपनी के मामलों के प्रभारी है...निदेशक मंडल या कंपनी के मामलों के प्रभारी व्यक्तियों पर यह साबित करने का भार होगा कि वे दोषी ठहराए जाने के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।"
इसका कारण यह है कि केवल कंपनी के निदेशकों को ही कंपनी में अपनी भूमिका का विशेष ज्ञान होता है।
कोर्ट ने कहा,
"किसी भी विशेष परिस्थिति की मौजूदगी, जो उन्हें उत्तरदायी नहीं बनाती है, वह कुछ ऐसा है जो विशेष रूप से उनके ज्ञान के भीतर है और यह उनके लिए ट्रायल में स्थापित करने के लिए है कि प्रासंगिक समय पर वे कंपनी मामलों के प्रभारी नहीं थे।"
इस संबंध में कोर्ट ने एसपी मणि और मोहन डेयरी बनाम डॉ स्नेहलता एलंगोवन में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।
निष्कर्ष
पीठ ने मुख्य रूप से एसपी मणि (सुप्रा) पर भरोसा किया कि एक बार शिकायतकर्ता द्वारा जारी किए गए वैधानिक नोटिस में भागीदारों (इस मामले में निदेशकों) की परोक्ष देयता के संबंध में और इस तरह की सूचना प्राप्त होने पर, यदि भागीदार (निदेशक) चुप रहता है और उसके जवाब में कुछ नहीं कहता है, तो शिकायतकर्ता के पास यह मानने का पूरा कारण है कि उसने नोटिस में जो कहा है उसे नोटिसी ने स्वीकार कर लिया है।
इसके अलावा यह कहा गया कि शिकायतकर्ता को केवल आम तौर पर ही पता होना चाहिए कि कंपनी के मामलों के प्रभारी कौन थे। केवल कंपनी के निदेशक या फर्म के भागीदार ही कंपनी में उनकी भूमिका का विशेष ज्ञान रखते हैं। निदेशक मंडल या कंपनी के मामलों के प्रभारी व्यक्तियों पर यह दिखाने का भार होगा कि वे दोषी ठहराए जाने के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।
जिसके बाद अदालत ने कहा, "नोटिस की सामग्री, नोटिसी द्वारा दिया गया जवाब और शिकायत की सामग्री एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत आरोपी को कार्यवाही में शामिल करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगी।"
इसके बाद उसने कहा, "शिकायतकर्ता ने उपरोक्त उद्धृत पैराग्राफ में स्पष्ट रूप से बताया है कि आरोपी नंबर 2 अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक है और आरोपी नंबर 3 से 5 आरोपी नंबर 1 कंपनी के निदेशक हैं। वे रोजमर्रा के मामलों के लिए जिम्मेदार हैं। प्रतिवादी ने इस न्यायालय के समक्ष कुछ दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं जो कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 7(1)(सी), 168 और 170(2) के तहत जारी प्रपत्र संख्या 12 है, जिसमें याचिकाकर्ताओं को कंपनी के पूर्णकालिक निदेशक और प्रमोटर के रूप में दर्शाया गया है।''
इसमें कहा गया है, '' उक्त दस्तावेज याचिकाकर्ताओं के लिए इन कार्यवाही में शामिल होने के लिए पर्याप्त परिस्थिति बन जाएंगे, जैसा कि एसपी मणि (सुप्रा) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संदर्भ में, शिकायतकर्ता के लिए आरोपित करने के लिए एक बुनियादी बयान यह है कि याचिकाकर्ता की भूमिका है। याचिकाकर्ताओं को कार्यवाही में अपना बचाव बाद में करना है।''
तदनुसार, कानूनी नोटिस की सामग्री और शिकायत के आरोपों (सुप्रा)और दस्तावेजों को देखते हुए, जिसमें याचिकाकर्ताओं को पूर्णकालिक निदेशक और प्रमोटर के रूप में दर्शाया गया है, हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा,
"शिकायतकर्ता को केवल यह आरोपित करने की आवश्यकता है कि याचिकाकर्ताओं की भूमिका है। यह बाद में याचिकाकर्ताओं पर है कि वे कार्यवाही में अपना बचाव करें।"
केस टाइटल: हीना थिरुमाली सतीश और अन्य बनाम मेसर्स मिनिमेल्ट इंजीनियर्स इंडिया।
केस नंबर: CRIMINAL PETITION No.2340 OF 2022
आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें