सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए दावा उन जगहों पर होता हैं,जहां पक्षकार रहते हैं, ''कभी-कभार'' जाने वाली जगहों पर नहीं : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, ग्वालियर पीठ ने हाल ही में कहा है कि सीआरपीसी की धारा 126 के तहत ''निवास'' शब्द की तुलना उस स्थान से नहीं की जा सकती है जहां कोई 'आकस्मिक प्रवास करता है या कभी-कभार जाता है'।
प्रावधान में बताया गया है कि धारा 125 के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ किसी भी जिले में भरण-पोषण की कार्यवाही की जा सकती हैः (ए) जहां वह रहता है, या (बी) जहां वह या उसकी पत्नी रहती है, या (सी) जहां वह अंतिम बार अपनी पत्नी के साथ रहता था , या जैसा भी मामला हो, नाजायज बच्चे की माँ के साथ रहता था।
जस्टिस जीएस अहलूवालिया याचिकाकर्ता/पति द्वारा दायर एक रिविजन पर विचार कर रहे थे, जो फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश से व्यथित था। फैमिली कोर्ट ने OVII R11 के तहत दायर उसके आवेदन को खारिज कर दिया था।
याचिकाकर्ता का मामला यह है कि प्रतिवादी/पत्नी ने उसके खिलाफ फैमिली कोर्ट, ग्वालियर के समक्ष सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसमें उसने अपने और अपनी नाबालिग बेटी के लिए भरण-पोषण की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने उसके खिलाफ OVII R11 सीपीसी के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसमें उसने तर्क दिया था कि चूंकि प्रतिवादी और बेटी दिल्ली में रह रहे हैं इसलिए कार्रवाई का कारण ग्वालियर में उत्पन्न नहीं होता है। उसने यह भी बताया था कि उसने और प्रतिवादी ने भोपाल में शादी की थी और अलग होने से पहले वह भोपाल में रह रहे थे।
यह भी तर्क दिया गया कि मामले को ग्वालियर के अधिकार क्षेत्र में लाने के लिए, प्रतिवादी ने अपने माता-पिता के पते का उल्लेख किया था। इसलिए, उन्होंने जोर देकर कहा था कि अदालत के पास भरण-पोषण के लिए दायर आवेदन पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है और अधिकार क्षेत्र के अभाव में इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 और 27 के तहत प्रतिवादी की तरफ से दायर याचिका पर भी अदालत का ध्यान आकर्षित किया था, जिसमें उसने अपना दिल्ली का पता दिया था और यह भी बताया था कि वह वहां काम कर रही है। इसलिए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि इससे यह स्पष्ट होता है कि वह ग्वालियर की निवासी नहीं है।
प्रतिवादी ने अपने जवाब में कहा कि याचिकाकर्ता से अलग होने के बाद, वह ग्वालियर में अपने पैतृक घर चली गई थी। उसने कहा कि वह केवल दिल्ली में सेवा दे रही है, जबकि उसका स्थायी पता ग्वालियर में ही है। इसलिए, उसने तर्क दिया कि निचली अदालत के पास आवेदन पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र था।
फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता के आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि चूंकि प्रतिवादी/पत्नी का ग्वालियर में पैतृक घर है, इसलिए अदालत के पास आवेदन पर सुनवाई का अधिकार क्षेत्र है।
रिकॉर्ड पर पेश दस्तावेजों और दोनों पक्षकारों की दलीलों पर विचार करने के बाद,कोर्ट ने पाया कि प्रतिवादी सीआरपीसी की धारा 126 के तहत 'निवास' शब्द की गलत व्याख्या कर रही है-
उसका तर्क है कि ग्वालियर उसका स्थायी पता है क्योंकि उसके माता-पिता वहां रहते हैं और वह कभी-कभार अपने माता-पिता से मिलने जाती हैं और इसलिए फैमिली कोर्ट, ग्वालियर के पास सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर आवेदन पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र है। प्रतिवादी नंबर 1 द्वारा दी गई दलील की सराहना नहीं की जा सकती है क्योंकि ''निवास'' शब्द की तुलना उन जगहों से नहीं की जा सकती है जहां कभी-कभार जाते हैं। प्रतिवादी नंबर 1 का यह मामला नहीं है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन दाखिल करते समय वह ग्वालियर में तैनात थी और फैमिली कोर्ट, ग्वालियर केवल इस आधार पर अपना अधिकार क्षेत्र नहीं खोएगा कि बाद में उसका तबादला हो गया था,बल्कि प्रतिवादी नंबर 1 का मामला यह है कि वर्ष 2011 से वह दिल्ली में तैनात है। अधिकार क्षेत्र प्रदान करने के एकान्त इरादे से किसी विशेष स्थान पर कभी-कभार जाना सीआरपीसी की धारा 126 (1) के प्रावधानों को पूरा नहीं करेगा।
के.मोहन बनाम बालाकांत लक्ष्मी मामले में मद्रास हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा करते हुए, न्यायालय ने कहा कि किसी विशेष स्थान पर आकस्मिक प्रवास या कभी-कभार जाने को ''निवास'' शब्द के एक भाग के रूप में नहीं माना जा सकता है। प्रतिवादी की दलीलों का हवाला देते हुए, अदालत ने कहा कि उसने खुद स्वीकार किया है कि वह दिल्ली में अपनी बेटी के साथ रह रही है।
उनके द्वारा वाद-शीर्षक में जो पता दिखाया गया है, वह फैमिली कोर्ट, ग्वालियर को क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र देने के एकान्त इरादे से दिया गया है और वास्तव में फैमिली कोर्ट, ग्वालियर के पास सीआरपीसी की धारा 126 के आलोक में आवेदन पर विचार करने के लिए कोई क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र नहीं है।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, न्यायालय ने रिविजन को अनुमति दे दी और तदनुसार, OVII R11 सीपीसी के तहत याचिकाकर्ता की तरफ से दायर आवेदन को खारिज करने वाले निचली अदालत के आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया गया। कोर्ट ने आगे कहा कि फैमिली कोर्ट, ग्वालियर के पास सीआरपीसी की धारा 125 के तहत प्रतिवादी की तरफ से दायर आवेदन पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।
केस का शीर्षक-निर्माण सागर बनाम श्रीमती मोनिका सागर चौधरी व अन्य
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