सिविल जज भर्ती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दोषपूर्ण प्रमाण पत्र के कारण अयोग्य ठहराए गए उम्मीदवारों की याचिका खारिज की

Update: 2023-07-04 11:16 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद के लिए अपने आवेदन के साथ निर्धारित प्रारूप में 'प्रमाण पत्र' प्रस्तुत करने में विफलता के कारण हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग (एचपीपीएससी) द्वारा अयोग्य घोषित किए गए उम्मीदवारों द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी है।

चीफ जस्टिस एमएस रामचन्द्र राव और जस्टिस अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने कहा,

"चरित्र, अच्छा व्यवहार और पूर्ववृत्त सार्वजनिक रोजगार चाहने वाले व्यक्तियों और विशेष रूप से जिला न्यायपालिका के लिए सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के रूप में बहुत महत्वपूर्ण योग्यताएं हैं।"

कोर्ट ने कहा यदि याचिकाकर्ताओं को कोई नरमी दी गई, तो यह "परेशानियों का पिटारा खोल देगा" क्योंकि लगभग 1,700 उम्मीदवारों की उम्मीदवारी समान आधार पर खारिज कर दी गई थी।

सभी याचिकाकर्ता कानून स्नातक ‌थे, जिन्होंने संबंधित बार काउंसिल में नामांकन किया था। उन्होंने एचपीपीएससी द्वारा विज्ञापित सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पदों के लिए आवेदन किया था। हालांकि, उनकी उम्मीदवारी इस आधार पर खारिज कर दी गई कि अपलोड किए गए क्रेडेंशियल सर्टीफिकेट दोषपूर्ण माने गए थे।

एचपीपीएससी ने विज्ञापन में स्पष्ट रूप से कहा था कि उम्मीदवारों को उनके चरित्र, अच्छे व्यवहार और पूर्ववृत्त की गवाही देने वाले दो सम्मानित व्यक्तियों की ओर से जारी क्रेडेंशियल सर्टीफिकेट प्रस्तुत करना होगा, जो उनसे संबंध‌ित ना हो। एचपीपीएससी के ऑनलाइन भर्ती प्रणाली (ओटीआरएस) पोर्टल पर आवेदन के साथ प्रमाणपत्र अपलोड करना आवश्यक था।

अपनी अस्वीकृति पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि उन्हें गलत तरीके से अयोग्य घोषित किया गया था और आयोग ने उन्हें निष्पक्ष सुनवाई का मौका नहीं दिया था।

याचिकाकर्ताओं द्वारा यह तर्क दिया गया था कि क्रेडेंशियल प्रमाणपत्र केवल प्राथमिक दस्तावेजों के पूरक हैं, जिन्हें उम्मीदवार की पात्रता निर्धारित करने के लिए ध्यान में रखा जा सकता है और एचपी न्यायिक सेवा नियमों के नियम 5 में निहित 'नोट' को लागू नहीं किया जा सकता है। और याचिकाकर्ताओं की उम्मीदवारी को परीक्षा के प्रारंभिक चरण में खारिज नहीं किया जा सकता है।

मामले पर फैसला सुनाते हुए पीठ ने कहा कि आयोग के 28 अप्रैल, 2023 और 10 मई, 2023 के चेतावनी वाले प्रेस नोट्स के बावजूद, जिसमें उम्मीदवारों को निर्धारित प्रारूप में क्रेडेंशियल प्रमाणपत्र अपलोड करने की याद दिलाई गई थी, याचिकाकर्ताओं ने ऐसा नहीं किया।

अदालत ने कहा कि इसके बजाय, वे या तो प्रमाण पत्र जमा करने में विफल रहे या आधार कार्ड की प्रतियां जैसे गलत दस्तावेज अपलोड कर दिए। यह देखते हुए कि याचिकाकर्ताओं ने विज्ञापन में दिए गए निर्देशों का पालन करने में "घोर लापरवाही" दिखाई है, अदालत ने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया।

याचिकाकर्ताओं के इस तर्क पर विचार करते हुए कि प्रमाणपत्र बाद के चरण में प्रस्तुत किए जा सकते हैं, अदालत ने फैसला सुनाया कि क्रेडेंशियल प्रमाणपत्र जमा करना आवश्यक योग्यता रखने के समान आवश्यक माना जाना चाहिए, और तदनुसार पिछले निर्णयों पर भरोसा करते हुए इसे खारिज कर दिया जहां सुप्रीम कोर्ट ने ने माना था कि आवेदन प्रक्रिया के दौरान आवश्यक प्रमाण पत्र या दस्तावेज शामिल करने में विफल रहने से उम्मीदवार अयोग्य हो जाएंगे।

इसके अलावा, अदालत ने कहा कि क्रेडेंशियल प्रमाणपत्र एससी, एसटी, ओबीसी, आर्थिक रूप से पिछड़े या शारीरिक रूप से विकलांग उम्मीदवारों जैसी श्रेणियों के लिए सरकारी विभागों द्वारा जारी किए गए प्रमाणपत्रों से तुलनीय नहीं हैं।

न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि निर्धारित आवेदन आवश्यकताओं के अनुपालन में याचिकाकर्ताओं की लापरवाही ने उनकी उम्मीदवारी की अस्वीकृति को उचित ठहराया और तदनुसार उनकी याचिकाएं खारिज कर दीं।

केस टाइटल: मन्नी और अन्य बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य

साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एचपी) 50

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