"विवाह विवाद हमारे देश में सबसे कड़वी लड़ाई वाले मुक़दमे हैं": हाईकोर्ट ने महिला को अपने बेटे के साथ भारत आने के दिए निर्देश

Update: 2023-04-12 08:35 GMT

Bombay High Court

“विवाह विवाद हमारे देश में सबसे कड़वी लड़ाई वाले मुक़दमे हैं।“

ये टिप्पणी बॉम्बे हाईकोर्ट ने की। हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवादों में बच्चों को ‘गुलाम’ या चल संपत्ति की तरह इस्तेमाल किये जाने पर गंभीर चिंता जताई है। कोर्ट ने एक महिला को अपने 15-साल के बेटे के साथ थाईलैंड से भारत आने का निर्देश दिया। ये निर्देश कोर्ट ने इसलिए दिया ताकि बच्चा को अपने पिता और भाई-बहनों से मिल सके।

जस्टिस आर. डी. धानुका और जस्टिस गौरी गोडसे की बेंच ने कहा,

‘‘एक बच्चे पर माता-पिता के अधिकारों से अधिक महत्वपूर्ण उस बच्चे का कल्याण है। वैवाहिक विवादों में बच्चों को चल संपत्ति की तरह इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह के विवाद हमारे देश में सबसे कड़वी लड़ाई वाले मुकदमे हैं।"

कोर्ट एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका में थाईलैंड में अपनी मां के साथ रहने वाले बेटे से मिलने की मांग की गई थी।

पहले पूरा केस समझ लीजिए।

अलग रह रहे पति-पत्नी के तीन बच्चे हैं। एक महिला के साथ थाईलैंड में है। बाकी दोनों यानी एक बेटा और बेटी अपने पिता के साथ रहते हैं। दोनों बालिग हैं।

पति की ओर से पेश एडवोकेट रोहन कामा ने दावा किया कि सितंबर 2020 में फैमिली कोर्ट ने उसकी पत्नी को निर्देश दिया था कि वो उसे, लड़के के बड़े भाई बहन और दादा-दादी को मां के साथ रह रहे लड़के तक पहुंच प्रदान करे, लेकिन पत्नी ने इसका पालन नहीं किया।

याचिका में अनुरोध किया गया कि कोर्ट महिला को गर्मी की छुट्टियों में बेटे को भारत लाने का निर्देश दे।

महिला की ओर से एडवोकेट संतोष पॉल पेश हुए। उन्होंने कोर्ट को बताया कि वो अपने बेटे के साथ भारत आने को तैयार है, लेकिन पहले ये सुनिश्चित करने का आदेश दिया जाए कि वो छुट्टी खत्म होते ही अपने बेटे के साथ सुरक्षित थाईलैंड लौट सके।

कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और कहा कि अदालत ने कहा कि लड़के को अपने माता-पिता के बीच कड़वाहट भरे मुकदमे के कारण गहरा झटका लगा है और वो अपने पिता से मिलने को इच्छुक है. हमारे देश में वैवाहिक विवाद सबसे तीखी लड़ाई वाली प्रतिकूल मुकदमेबाजी है। एक समय ऐसा आता है जब जोड़े झगड़े करते हैं, बच्चों को अपनी संपत्ति के रूप में देखते हैं।

आगे कहा,

"बच्चों को गुलाम या संपत्ति के रूप में नहीं माना जा सकता है, जहां माता-पिता का अपने बच्चों के भाग्य और जीवन पर पूर्ण अधिकार हो. बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है, न कि माता-पिता के कानूनी अधिकार।’

अदालत ने आगे कहा, माता-पिता की जरूरतों और बच्चे के कल्याण के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। इसलिए अगर लड़के के विचारों का उचित विचार नहीं किया गया तो ये उसके भविष्य के लिए हानिकारक हो सकता है। बच्चे के विचारों का भी सम्मान करना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि बच्चे के लिए विकास के लिए जरूरी है कि उसे अपने माता-पिता और भाई-बहन दोनों का साथ मिले।

इसके साथ ही कोर्ट ने महिला को अपने 15-साल के बेटे के साथ थाईलैंड से भारत आने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने कहा कि पिता, महिला और उनके बेटे के भारत में रहने के दौरान उनकी गिरफ्तारी या हिरासत के लिए कोई शिकायत नहीं करेगा। साथ ही संबंधित राज्य और केंद्रीय एजेंसियां ये सुनिश्चित करें कि बाद में उनकी थाईलैंड वापसी में कोई रूकावट पैदा न हो।

केस टाइटल: आशु दत्त बनाम अनीशा दत्त

आदेश की कॉपी यहां देखें:




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