"अगर अनुमति दी गई तो हम फिर से एक तबाही को आमंत्रित करेंगे": उत्तराखंड हाईकोर्ट ने चारधाम यात्रा आयोजित करने के सरकार के फैसले पर रोक लगाई
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उत्तराखंड राज्य मंत्रिमंडल के चारधाम यात्रा आयोजित करने के फैसले पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि यह निर्णय मनमाना और अनुचित है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि चारधाम मंदिरों के भीतर किए जाने वाले समारोह, पूजा और अर्चना का लाभ के लिए सीधा प्रसारण किया जाए।
सरकार का फैसला
20 जून को राज्य सरकार ने एक सरकारी आदेश जारी किया, जिसमें चरणबद्ध तरीके से चारधाम यात्रा को फिर से खोलना का फैसला लिया था। फिर से 25 जून, 2021 को कैबिनेट ने 1 जुलाई, 2021 से चारधाम यात्रा को सीमित सीमा तक खोलने की अनुमति देने का निर्णय लिया और पूरे राज्य के लोगों को 11.07.2021 से चारधाम के दर्शन की अनुमति दी जाएगी।
COVID-19 की दूसरी और तीसरी लहर के संबंध में कोर्ट की टिप्पणियां
कोर्ट ने कहा कि यह मुद्दा केवल तीर्थ स्थलों के उद्घाटन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह मुद्दा मानव जीवन, राज्य के लोगों और राष्ट्र के लोगों के लिए अधिक महत्वपूर्ण है।
कोर्ट ने COVID-19 की दूसरी लहर की सुनामी को ध्यान में रखते हुए टिप्पणी की कि अप्रैल और मई, 2021 के दौरान, न तो जीवन रक्षक दवाएं उपलब्ध थीं, न ही ऑक्सीजन टैंक उपलब्ध थे, न ही पर्याप्त संख्या में बेड उपलब्ध थे, न ही पर्याप्त संख्या में एम्बुलेंस उपलब्ध थे।
कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से कहा कि,
"यह सब जानते हैं कि जैसे-जैसे लोगों मरने लगे, हमारे यहां शव को दफन करने के लिए श्मशान और कब्रिस्तान में अपर्याप्त स्थान थे। लोग हमारे खोए हुए भाइयों का एक अच्छा दाह संस्कार या सभ्य अंत्येष्टि नहीं कर सके। मई, 2020 सेटेलाइट इमेज और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया लगातार जलती हुई चिताओं की अंतहीन संख्या और हमारे लोगों की दयनीय स्थिति दिखाता रहा।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत को एक पाखण्डी और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के एक गैर-जिम्मेदार सदस्य के रूप में चित्रित किया गया और भारत से आने वाली उड़ानों को विभिन्न देशों द्वारा रोक दिया गया था।
यह अनुमान है कि COVID-19 की तीसरी लहर आने की संभावना है। कोर्ट ने कहा कि विशेषज्ञों का दावा है कि तीसरी लहर अगस्त, 2021 के दूसरे या तीसरे सप्ताह में देश में आने की संभावना है, लेकिन ऐसी कोई गारंटी नहीं है कि यह लोगों को प्रभावित नहीं करेगा।
कोर्ट ने उत्तराखंड राज्य की टीकाकरण दर पर भी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि यह निश्चित रूप से खुश करने वाला नहीं है और मई, 2021 के अंत तक 1.32 करोड़ की आबादी में से केवल 35,36,840 व्यक्तियों को टीका लगाया गया है।
कोर्ट ने कहा कि,
'अगर उत्तराखंड की 100 फीसदी आबादी का टीकाकरण भी कर दिया जाए तो भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि डेल्टा प्लस वैरिएंट के आक्रमण से उत्तराखंड के लोगों की रक्षा होगी।"
चारधाम के संबंध में न्यायालय की टिप्पणियां
कोर्ट ने तीन उदाहरण बताए जहां राज्य सरकार ने लोगों को बड़ी संख्या में इकट्ठा होने की अनुमति दी और लोगों द्वारा एसओपी का उल्लंघन किया गया।
कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि राज्य सरकार के सर्वोत्तम इरादों के बावजूद हरिद्वार और ऋषिकेश के नागरिक प्रशासन कुंभ मेले से संबंधित एसओपी को लागू करने में विफल रहे हैं।
बेंच ने कहा कि,
"इंटरनेट पर बड़ी संख्या में चित्र उपलब्ध हैं, जो स्पष्ट रूप से साबित करती हैं कि बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों ने न तो मास्क पहना था, न ही छह फीट की सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखी थी, न ही सैनिटाइज़र का इस्तेमाल किया गया, न ही अपने हाथ धोने के लिए साबुन का इस्तेमाल किया गया था। वास्तव में लाखों लोगों को पवित्र गंगा के तट पर इकट्ठा होने और दिन में स्नान करने की अनुमति दी गई थी, जबकि कुंभ मेला एक महीने तक चला था। "
बेंच ने इसके अलावा यह भी कहा कि गंगा दशहरा के अवसर पर हरिद्वार में हर की पौड़ी और नैनीताल जिले में सरकार ने नीम करोली बाबा मंदिर (कैंची धाम) में एक लाख से अधिक की भीड़ को इकट्ठा होने की अनुमति दी थी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रस्तावित चारधाम यात्रा के लिए तैयार एसओपी में कई निर्देश थे, लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि इस तरह के निर्देशों को कैसे लागू किया जाएगा।
कोर्ट ने आगे कहा कि इसमें शामिल स्वास्थ्य मुद्दों पर विचार करते हुए COVID19 की पहली लहर के प्रभाव को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल यह सुनिश्चित किया था कि स्थानीय लोग पुरी (उड़ीसा) रथ यात्रा में शामिल नहीं होंगे।
कोर्ट ने राज्य के फैसले पर कहा कि,
"मंत्रिमंडल का दिनांक 25.06.2021 का निर्णय न केवल बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री के लोगों को धर्मस्थलों पर एकत्र होने की अनुमति देगा, बल्कि संबंधित जिलों के लोगों को अपने-अपने मंदिरों में इकट्ठा होने की अनुमति देगा। इस प्रकार कैबिनेट का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों का उल्लंघन करता है।"
कोर्ट ने फैसला सुनाया कि,
"मंत्रिमंडल का निर्णय अनावश्यक रूप से लोगों को तीसरी लहर के खतरों से अवगत कराएगा। इस प्रकार निर्णय भारत के संविधान के अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 39 (ई) और 39 (एफ) और अनुच्छेद 47 के खिलाफ है। यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के लिए भारत की प्रतिबद्धता की भी अनदेखी करता है।"
कोर्ट ने कैबिनेट के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा कि कैबिनेट ने विशेषज्ञों द्वारा दी गई चेतावनियों की अनदेखी की, केंद्र सरकार द्वारा जारी निर्देशों की अनदेखी की और सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों की अनदेखी की है।
कोर्ट ने इसके अलावा यह भी कहा कि कैबिनेट को यह समझना चाहिए कि लोगों द्वारा एसओपी की धज्जियां उड़ाई जाती हैं और नागरिक प्रशासन के पास उन्हें सख्ती से लागू करने के लिए साधन नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि चारधाम यात्रा आयोजित करने लोगों और देश के लिए अपूरणीय क्षति होगी।
कोर्ट ने आगे कहा कि,
"इस प्रकार लोगों के पक्ष में एक मजबूत प्रथम दृष्टया मामला है, चारधाम यात्रा की अनुमति नहीं देने के लिए, यहां तक कि सीमित तरीके से भी। लोगों के जीवन को डेल्टा प्लस वैरियंट COVID-19 की तीसरी लहर के खतरे की संभावना है और अगर चारधाम यात्रा की अनुमति दी गई, तो हम फिर से एक तबाही को आमंत्रित करेंगे।"
कोर्ट ने अंत में फैसला सुनाया कि जिला उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और चमोली के निवासियों के लिए चार सप्ताह की अवधि के लिए चारधाम यात्रा आयोजित करने के कैबिनेट के निर्णय के संचालन पर रोक लगाना जनहित और न्याय के हित में होगा।
कोर्ट ने राज्य सरकार को चार सप्ताह के लिए तीर्थयात्रियों को चारधाम मंदिर जा कर दर्शन करने की अनुमति नहीं देने का भी निर्देश दिया।