'लिंग परिवर्तन एक संवैधानिक अधिकार': लिंग परिवर्तन सर्जरी की अनुमति मांगने वाली महिला कांस्टेबल को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राहत दी

Update: 2023-08-23 04:20 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहते हुए कि किसी व्यक्ति को सर्जिकल हस्तक्षेप के माध्यम से अपना लिंग बदलने का "संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त" अधिकार है, पिछले सप्ताह राज्य के डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) को एक महिला कांस्टेबल द्वारा लिंग बदलवाने की प्रक्रिया की अनुमति मांगने के लिए दायर एक आवेदन का निपटान करने का निर्देश दिया।

जस्टिस अजीत कुमार की पीठ ने आगे कहा कि यदि आधुनिक समाज में हम किसी व्यक्ति में अपनी पहचान बदलने के इस निहित अधिकार को स्वीकार नहीं करते हैं तो हम "केवल जेंडर आईडेंटिटी डिस ऑर्डर सिंड्रोम को प्रोत्साहित करेंगे।"

न्यायालय ने टिप्पणी की,

"कभी-कभी ऐसी समस्या घातक हो सकती है क्योंकि ऐसा व्यक्ति विकार, चिंता, अवसाद, नकारात्मक आत्म-छवि और किसी की यौन शारीरिक रचना के प्रति नापसंदगी से पीड़ित हो सकता है। यदि इस तरह के संकट को कम करने के लिए उपरोक्त मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप विफल हो जाते हैं, तो सर्जिकल हस्तक्षेप करना चाहिए और इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।"

पीठ ने ये टिप्पणियां यूपी पुलिस में काम करने वाली एक अविवाहित महिला कांस्टेबल द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए की। महिला ने दावा किया था कि वह जेंडर डिस्फोरिया से पीड़ित है और खुद को अंततः एक पुरुष के रूप में पहचानने और वैयक्तिकृत करने के लिए सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) से गुजरना चाहती है।

अदालत में याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता ने 11 मार्च, 2023 को पुलिस महानिदेशक, लखनऊ, यूपी के समक्ष एसआरएस के लिए आवश्यक मंजूरी के लिए आवेदन किया था, लेकिन उस संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया गया और इसलिए इस वर्तमान याचिका दायर की गई थी।

याचिकाकर्ता के वकील ने मुख्य रूप से सुप्रीम कोर्ट के राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ और अन्य, 2014 5 एससीसी 438 के मामले पर भरोसा करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के आवेदन को रोकना उत्तरदाताओं के लिए उचित नहीं है।

गौरतलब है कि इसी मामले में शीर्ष अदालत ने ट्रांसजेंडर लोगों को पुरुष, महिला या थर्ड जेंडर के रूप में अपने लिंग की स्वयं पहचान करने का अधिकार देते हुए उन्हें थर्ड जेंडर' घोषित किया था।

यह तर्क दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट के 2014 के फैसले के अनुसार, जिसमें लिंग पहचान को किसी व्यक्ति की गरिमा का अभिन्न अंग घोषित किया गया, प्रतिवादी अधिकारी याचिकाकर्ता के मामले में निर्णय लेने के लिए बाध्य हैं।

याचिकाकर्ता के वकील ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 15 का भी उल्लेख किया जो सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी और हार्मोनल थेरेपी सहित स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं से संबंधित है।

राजस्थान हाईकोर्ट के हालिया फैसले का भी हवाला दिया गया जिसमें हाईकोर्ट ने एक शारीरिक प्रशिक्षण प्रशिक्षक को लिंग परिवर्तन सर्जरी के बाद सेवा रिकॉर्ड में अपना नाम और लिंग बदलने की अनुमति दी थी।

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि यदि कोई व्यक्ति लिंग डिस्फोरिया से पीड़ित है और शारीरिक संरचना को छोड़कर, उसकी भावना और विपरीत लिंग के लक्षण इतने अधिक हैं कि ऐसा व्यक्ति शारीर के साथ अपने व्यक्तित्व का पूरी तरह से मिस अलायमेंट महसूस करता है तो ऐसे व्यक्ति के पास "सर्जिकल हस्तक्षेप के माध्यम से अपना लिंग बदलवाने का संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त अधिकार" होता है।

उपरोक्त के मद्देनजर, याचिकाकर्ता के आवेदन को रोकने के लिए पुलिस महानिदेशक की ओर से कोई औचित्य नहीं पाते हुए न्यायालय ने डीजीपी को याचिकाकर्ता के लंबित आवेदन को संदर्भित निर्णयों के आलोक में सख्ती से निपटाने का निर्देश दिया।

न्यायालय ने राज्य सरकार से एक उचित हलफनामा दाखिल करने को भी कहा कि क्या उसने एनएएलएसए मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के अनुपालन में ऐसा कोई अधिनियम बनाया है और यदि ऐसा है तो उसे रिकॉर्ड पर भी लाया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसा कोई अधिनियम या नियम आज तक प्रसिद्ध नहीं हुआ है तो राज्य सरकार को केंद्रीय कानून के अनुरूप ऐसा अधिनियम बनाना सुनिश्चित करना चाहिए और उस संबंध में सुनवाई की अगली तारीख तक एक व्यापक हलफनामा दायर करना चाहिए कि अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।

मामले की अगली सुनवाई 21 सितंबर, 2023 को तय की गई है।

केस टाइटल - नेहा सिंह बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य - 7796/2023]

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