केंद्र ने जस्टिस कौशिक चंदा को कलकत्ता हाईकोर्ट का स्थायी जज नियुक्त किया
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिश को स्वीकार करते हुए जस्टिस कौशिक चंदा को कलकत्ता हाईकोर्ट का स्थायी जज नियुक्त किया है।
इस संबंध में नियुक्ति की अधिसूचना शुक्रवार को जारी की गई,
"भारत के संविधान के अनुच्छेद 217 के खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए, राष्ट्रपति श्री न्यायमूर्ति कौशिक चंदा, कलकत्ता उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश को कलकत्ता उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त करते हैं, जो उनके पदभार ग्रहण करने की तिथि से प्रभावी होगी।"
जस्टिस चंदा के बारे में
04 जनवरी 1974 को जन्मे जस्टिस चंदा ने 1997 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी से लॉ में स्नातक किया और उसके बाद 18 दिसंबर 1998 को एडवोकेट के रूप में दाखिला लिया।
उन्हें 10 जून, 2014 को एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था और 09 अप्रैल, 2015 को भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया था। वे सितंबर, 2019 तक उक्त पद पर रहे।
उन्हें 01 अक्टूबर, 2019 को कलकत्ता में उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में बेंच में पदोन्नत किया गया।
हालिया विवाद
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि न्यायमूर्ति चंदा पश्चिम बंगाल में एक राजनीतिक तूफान की चपेट में आए थे, जब राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नंदीग्राम चुनाव परिणामों को चुनौती दी, जहां उन्हें 2021 विधानसभा चुनाव में भाजपा के सुवेंदु अधिकारी ने हराया था।
न्यायमूर्ति चंदा के मुख्यमंत्री की उक्त याचिका पर सुनवाई करने पर मुख्यमंत्री ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि बतौर वकील न्यायमूर्ति चंदा भाजपा के साथ जुड़े रहे थे।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल को लिखे एक पत्र में बनर्जी ने उनसे अपने खिलाफ पूर्वाग्रह से बचने के लिए अपनी चुनाव याचिका किसी अन्य न्यायाधीश (जस्टिस कौशिक चंदा के अलावा) को फिर से सौंपने का आग्रह किया था।
पत्र ने न्यायमूर्ति कौशिक चंदा के समक्ष उनकी याचिका को सूचीबद्ध करने पर आपत्ति जताई और कहा,
"मेरे मुवक्किल को न्यायिक प्रणाली और इस न्यायालय की महिमा में अत्यधिक विश्वास है, हालांकि, माननीय न्यायाधीश की ओर से पूर्वाग्रह की संभावना के बारे में मेरे मन में एक उचित आशंका है।"
7 जुलाई को कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति कौशिक चंदा ने यह देखते हुए मामले की सुनवाई से खुद को अलग करने का फैसला किया था कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा दायर चुनावी याचिका में उनका हितों का टकराव नहीं है।
न्यायाधीश ने हालांकि, सुनवाई से खुद को अलग करने का फैसला किया और कहा था कि यदि मामला उनके सामने जारी रहता है, तो कुछ 'परेशान करने वाले' विवाद जीवित रहेंगे और कार्यवाही को प्रभावित करने के लिए नए विवादों को भी ढूंढेंगे।
हालांकि उन्होंने ममता बनर्जी पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था, जिस तरह से उन्होंने याचिका से उन्हें हटाने की मांग की थी।
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