केंद्र अपने अधिकारी के खिलाफ कर सकता है जांच, राज्य को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट
कोलकाता हाईकोर्ट के समक्ष हाल ही में सवाल उठा कि यदि केंद्र सरकार अपने ही कर्मचारी के खिलाफ़ कार्यवाई करना चाहती है, तब भी क्या डीपीएसई अधिनियम की धारा 6 के तहत राज्य सरकार की सहमति आवश्यक होगी।
भले ही वह कर्मचारी राज्य में तैनात हो, उसे केंद्रीय निधि से भुगतान किया जा रहा हो और केंद्रीय कानून के तहत अपना कार्य का निर्वहन कर रहा हो। 12 मार्च को दिए गए अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि सीबीआई की अपने अधिकारियों के खिलाफ जांच और मुकदमा चलाने की शक्ति को किसी भी तरह से राज्य सरकार बाधित नहीं कर सकती है, भले ही अपराध राज्य की सीमा के भीतर किए गए हों।
मौजूदा मामले में, केंद्र सरकार ने सीबीआई समक्ष एक शिकायत दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ताओं ने अपने नाम और अपने परिवार के नाम पर अपने आय के स्रोतों के अनुपात से ज्यादा संपत्ति जुटा ली है। जिसके बाद पुलिस अधीक्षक, सीबीआई, एसीबी, कोलकाता ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7, 13 (2), 13 (1) (बी) के साथ आईपीसी की धारा 109 के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी।
हालांकि, नवंबर 2018 की एक अधिसूचना के आधार पर, राज्य सरकार ने पश्चिम बंगाल राज्य में सीबीआई को शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने के लिए दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6 के तहत दी गई सहमति वापस ले ली।
याचिकाकर्ताओं ने उसके बाद एफआईआर रद्द करने के लिए आवेदन दिया, जिसमें कहा गया कि धारा 6 के तहत सीबीआई को दी गई अनुमति वापस ले ली गई है, जिसके बाद सीबीआई अपराध की जांच नहीं कर सकती है। यह तर्क दिया गया था कि भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 2 की प्रविष्टि 2 में पुलिसिंग के संबंध में राज्य को विशेष अधिकार क्षेत्र प्रदान करता है और किसी राज्य के ऐसे अनन्य क्षेत्राधिकार का सीबीआई के माध्यम से केंद्र अतिक्रमण नहीं कर सकता है। इसलिए, सीबीआई जांच अवैध है, क्योंकि राज्य सरकार के विशेष क्षेत्राधिकार के अधीन किसी विषय वस्तु की जांच करना उसका अधिकार क्षेत्र नहीं है।
हाईकोर्ट ने तब अनुच्छेद 246 और सातवीं अनुसूची की पृष्ठभूमि में अधिनियम की प्रस्तावना और उद्देश्य के मद्देनजर धारा 6 के उचित दायरे और उद्देश्य पर विचार किया। धारा 6 में कहा गया है कि दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान के किसी भी सदस्य को राज्य सरकार की सहमति के बिना राज्य किसी भी क्षेत्र में अपनी शक्ति के इस्तेमाल और क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं होगा।
"केंद्र सरकार का, अपने अधिकारी के कृत्यों और गलतियों के खिलाफ जांच की कार्यवाई करने की आकांक्षा का कृत्य, भले की वह अधिकारी ऐसे कानून के तहत कार्य करता है, जिसमे केंद्र सरकार ने बनाया है, डीएसपीई अधिनियम, 1946 की धारा 6 के दायरे से बाहर होना चाहिए।"
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 2 की प्रविष्टि 2 के एकमात्र दृष्टिकोण से जांच पर सवाल उठाना कठिन होगा और सवाल यह है कि सीबीआई क्यों नहीं।
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि राज्य की ओर से दी गई सामान्य सहमति की वापसी केंद्र सरकार और सीबीआई की शक्ति को संबंधित राज्य में नए मामले स्थापित करने से रोकती है। सहमति की वापसी भावी रूप से लागू होती है और इसलिए, मौजूदा मामलों को उनके तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचने की अनुमति होगी।
सीबीआई राज्य सरकार से व्यक्तिगत मामलों में विशिष्ट सहमति लेने या प्राप्त करना का प्रयास भी कर सकती है। कोर्ट ने कहा, "धारा 6 के तहत सहमति वापस लेने के संबंध में राज्य सरकार से सूचना प्राप्त करने से पहले मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इसलिए सीबीआई द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ तत्काल कार्यवाही की गई है और इसे राज्य द्वारा सहमति की वापसी की कार्यवाई के जरिए खत्म नहीं किया जा सकता है।"
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