'अभियुक्तों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ अनजाने में खिलवाड़ हो रहा': मद्रास हाईकोर्ट ने कार्यकारी मजिस्ट्रेटों के लिए आपराधिक कानून प्रशिक्षण की सिफारिश की

Update: 2022-11-09 10:31 GMT

मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में "आपराधिक कानून की बुनियादी अवधारणाओं को जाने या समझे बिना" आदेश पारित करने पर कार्यकारी मजिस्ट्रेटों को कड़ी फटकार लगाई। सीआरपीसी की धारा 122 (1) (बी) के तहत उप-मंडल मजिस्ट्रेट सह राजस्व मंडल मजिस्ट्रेट द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दरमियान हाईकोर्ट ने उक्त प्रतिक्रिया दी।

ज‌स्टिस के मुरली शंकर ने खेद व्यक्त किया कि कार्यकारी मजिस्ट्रेट किसी भी प्रकार की जांच किए बिना यांत्रिक रूप से आदेश पारित कर रहे हैं।

उन्होंने कहा,

"..यह न्यायालय यह कहने के लिए विवश है कि कार्यकारी मजिस्ट्रेट, आपराधिक न्याय वितरण प्रणाली की मूल अवधारणाओं को जाने/समझे बिना और अपनी मर्जी और पसंद के अनुसार, आकस्मिक और यंत्रवत, किसी प्रकार की जांच करके अभियुक्तों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।"

अदालत ने इस प्रकार नोट किया कि सरकार को नए नियुक्त कार्यकारी मजिस्ट्रेटों के लिए प्रशिक्षण/पुनश्चर्या पाठ्यक्रम आयोजित करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे उचित तरीके से जांच कर रहे हैं।

मजिस्ट्रेट को शांति बनाए रखने के लिए दोषी व्यक्ति से सिक्योरिटी लेने और इस संबंध में जमानत के साथ या उसके बिना बांड निष्पादित करने की शक्ति है। धारा 122 मजिस्ट्रेट को धारा 106 या 117 के तहत सिक्योरिटी देने में विफल रहने या बांड का उल्लंघन करने पर किसी व्यक्ति को कैद करने की शक्ति देती है।

अदालत ने कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र में यह अनिवार्य है कि प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के संदर्भ में एक सार्थक और निष्पक्ष अवसर दिया जाए और यह सीआरपीसी की धारा 106 और 117 के तहत कार्यवाही में भी लागू होगा।

इस संबंध में मद्रास हाईकोर्ट ने पी सतीश उर्फ ​​सतीश कुमार बनाम पुलिस निरीक्षक के जर‌िए राज्य और अन्य में सीआरपीसी की धारा 122 के तहत आदेश पारित करते समय कार्यकारी मजिस्ट्रेटों द्वारा पालन किए जाने वाले कानूनी सिद्धांतों को तैयार किया था। ये दिशानिर्देश अनुच्छेद 21 और 22 के अभिन्न अंग हैं और राज्य के नीति के प्रत्यक्ष सिद्धांतों की धारा 39-ए के अनुरूप भी हैं।

अदालत ने हालांकि कहा कि भले ही कार्यकारी मजिस्ट्रेटों को इन दिशानिर्देशों का पालन करने के निर्देश जारी किए गए थे, फिर भी वे इन दिशानिर्देशों से अनजान थे और उनका पालन करने के लिए कदम उठाने में विफल रहे हैं।

पीठ ने यह भी कहा कि आपराधिक पुनरीक्षण विभाग को संभालने के 3 महीनों में 41 आपराधिक पुनरीक्षण मामलों में से 40 मामलों में कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने अदालत द्वारा निर्धारित सिद्धांतों का पालन नहीं किया और न ही प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया।

वर्तमान मामले में सब डिविजनल मजिस्ट्रेट ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया था।

उन्होंने किसी गवाह से पूछताछ के संबंध में कोई ब्योरा नहीं दिया था और न ही किसी दस्तावेज को चिह्नित किया था। इस बारे में कोई विवरण नहीं था कि क्या अभियुक्त को कानूनी प्रतिनिधित्व के उसके अधिकार के बारे में सूचित किया गया था या क्या आदेश पारित करने से पहले उसे ठीक से सुना गया था। इस प्रकार, यह पाते हुए कि आक्षेपित आदेश कानून में अच्छा नहीं था, अदालत ने उसे रद्द कर दिया।

केस टाइटल: विनोद बनाम सब डिविजनल मजिस्ट्रेट और अन्य

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (Mad) 457


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