शिक्षा के अधिकार को 'झूठा सहारा' बनने नहीं दे सकते : मैसूर एक्सप्रेसवे के लिए स्कूल गिराए जाने पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा, नया भवन बनाने का आदेश दिया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को मद्दुर तालुक में एक स्कूल भवन के निर्माण के लिए चिन्हित भूमि की पहचान/अनुमोदन करने का निर्देश दिया है। बंगलौर-मैसूर राजमार्ग को चौड़ा करने और के लिए अपग्रेड करने के लिए जिस भूमि को अधिग्रहित किया गया था, स्कूल उसी पर बना था, जिसे बाद में ध्वस्त कर दिया गया था।
नए स्कूल का निर्माण में तीन साल की देरी हो चुकी है, और स्कूल को अस्थायी इमारत में चलाया जा रहा है। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने तस्वीरों में अस्थायी स्कूल में बच्चों के हालात देखकर और निर्माण में विलंब पर नाराजगी जताई।
उन्होंने कहा,
"यह अदालत राज्य को संविधान राज्य को अनुच्छेद 21-ए के तहत बच्चों के मौलिक अधिकार को "झूठे सहारे" में बदलने की अनुमति नहीं देगी।
पीठ ने जापान का उदाहरण दिया। जहां होक्काइडो द्वीप पर एक सुदूर स्थान तक राज्य सरकार की ट्रेनें दिन में केवल कुछ बार ही रुकती हैं, वह भी केवल उस जगह से एक मात्र लड़की को स्कूल ले जाने और फिर उसे लेकर आने के लिए।
कोर्ट ने कहा कि वह स्टेशन केवल एक बच्चे को स्कूल ले जाने और और उसे वापस लाने के लिए बना है, जहां सरकार ट्रेंने अपने पैसे से चलाती हैं।
कोर्ट ने कहा,
"जपान सरकार का बच्चे की शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का यह प्रयास दुनिया भर में सराहा गया है। जमीनी स्तर पर सुशासन के रूप में इसकी सराहना की गई है।”
कोर्ट ने कहा,
“राज्य सरकार के अधिकारियों को यह याद रखना चाहिए कि प्रत्येक नागरिक का अधिकार मायने रखता है और किसी भी बच्चे को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इस न्यायालय के समक्ष मुद्दा "एक स्कूल" नहीं, बल्कि यह " भी एक स्कूल" है।
मामला
गवर्नमेंट लोअर प्राइमरी स्कूल, अगरलिंगना डोड्डी, मद्दुर तालुक की स्कूल डेवलपमेंट एंड मॉनिटरिंग कमेटी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और जमीन की पहचान और सरकारी स्कूल के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सरकार को निर्देश देने की मांग की थी।
विद्यालय की स्थापना 35 वर्ष पूर्व हुई थी। जैसे-जैसे छात्रों की संख्या बढ़ी, आवश्यक बुनियादी ढांचे के साथ स्कूल के विस्तार की आवश्यकता भी बढ़ी। गांव के कई सदस्यों ने स्वेच्छा से स्कूल के निर्माण के उद्देश्य से राज्य के पक्ष में 10 गुंटा भूमि दान की।
सरकारी स्कूल तब ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र में आता था क्योंकि यह अग्रलिंगाना डोड्डी ग्राम पंचायत के आसपास था। राज्य ने उस क्षेत्र में लड़के और लड़कियों दोनों के लिए दो कमरे, एक रसोई और शौचालय का निर्माण किया, जिसे गांव के सदस्यों द्वारा दान किया गया और उक्त क्षेत्र में एक नई इमारत की स्थापना की गई। 2003 से 2018 तक स्कूल अपने पूरे जोरों पर काम करता रहा। उक्त स्कूल में पहली से पांचवीं कक्षा तक 25 छात्र-छात्राएं, दोनों लड़के और लड़कियां पढ़ रहे थे।
वर्ष 2016 में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने बंगलौर-मैसूर राजमार्ग को दस-लेन की सड़क में चौड़ा और उन्नत करने की एक परियोजना शुरू की। जिस भूमि पर स्कूल स्थापित किया गया था, उसे भी अधिग्रहण के लिए अधिसूचित किया गया, जिसके कारण पूरे स्कूल भवन को तोड़ दिया गया था। एनएचएआई ने लगभग 67 लाख रुपये का मुआवजा दिया। इसके बाद 2020 में समिति ने एक नए स्कूल भवन के निर्माण के लिए वैकल्पिक भूमि खरीदने के लिए मुआवजे की राशि के उपयोग के लिए खंड शिक्षा अधिकारी को एक अभ्यावेदन दिया, लेकिन यह व्यर्थ रहा।
सरकार ने आसपास के किसी भी जमीन की पहचान नहीं की। लेकिन राज्य द्वारा 10-06-2020 को एक सर्कुलर जारी कर निर्देश दिया गया कि स्कूल को गिराए जाने पर मिलने वाली मुआवजा राशि को तत्काल राज्य के समेकित खाते में जमा किया जाए। चूंकि स्कूल नहीं बन रहा था, इसलिए गांव के लोगों ने भूमि चिन्हित करने और स्कूल भवन के निर्माण के लिए विरोध करना शुरू कर दिया।
इसके चलते समिति ने एक छोटा कमरा लेकर एक स्कूल की स्थापना की ताकि बच्चों को शिक्षा से बाहर न जाना पड़े। छोटे कमरे में कोई सुविधा नहीं है। कहा गया कि इसमें न तो किचन है और न ही वॉशरूम।
राज्य सरकार ने याचिका का विरोध किया
राज्य सरकार ने प्रस्तुत किया कि समिति के पास इस अदालत के दरवाजे पर दस्तक देने का कोई अधिकार नहीं है। इसके अलावा, मुआवजे की राशि पहले राज्य के समेकित कोष में आनी चाहिए और उसके बाद ही राज्य नए स्कूल भवन की स्थापना के लिए धन जारी करेगा।
यह भी कहा गया कि "स्कूल के 25 छात्रों को अब हुनसेमरदा डोड्डी में पहले से चल रहे एक स्कूल में समायोजित करने का निर्देश दिया गया है जो ध्वस्त हो चुके स्कूल भवन से या तो 500 मीटर या एक किमी की दूरी पर है। मुआवजा राशि जमा करने के बाद ही भवन का पुनर्निर्माण किया जाएगा।”
जवाब में समिति ने तर्क दिया कि जहां बच्चों को समायोजित करने की मांग की गई है, उक्त स्कूल तक पहुंचने के लिए बच्चों को स्टेट हाईवे पार करना पड़ता है। इसलिए, छोटे बच्चों को उस स्कूल में जाने के लिए जोखिम में नहीं डाला जा सकता है
निष्कर्ष
शुरुआत में पीठ ने कहा कि राष्ट्र का सामाजिक और आर्थिक विकास उसकी शिक्षित आबादी पर निर्भर करता है। "एक सफल लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए, शिक्षा एक मूलभूत आवश्यकता है। मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के लिए बच्चों का अधिकार 04-08-2009 को संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था। अधिनियम 6 से 14 वर्ष के बीच के प्रत्येक बच्चे के लिए शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाता है और प्राथमिक विद्यालयों में न्यूनतम मानदंड निर्दिष्ट करता है।
पीठ ने बाद में यह इंगित किया कि राज्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए संवैधानिक दायित्व से बंधा है, जिसके लिए यह राज्य का कर्तव्य है कि वह उक्त अधिकार के उचित कार्यान्वयन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा और प्रभावी तंत्र प्रदान करे। ऐसा न करने पर, अनुच्छेद 21-ए के तहत गारंटीकृत शिक्षा का अधिकार भ्रामक बना रहेगा।
राज्य के इस तर्क को खारिज करते हुए कि याचिका सुनवाई योग्य नहीं थी, अदालत ने कहा, "यह देखा जाना चाहिए कि इस अदालत के समक्ष समिति किस स्तर पर बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के मौलिक अधिकार को लागू करने की मांग कर रही है। इसलिए, राज्य का रुख अस्वीकार्य है।
स्कूल विकास और निगरानी समिति, कर्नाटक बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा नियम, 2012 के अधिकार के तहत गठित एक वैधानिक समिति है, और यह कई कार्य करती है।
समिति ने कर्नाटक राज्य सिविल सेवा अधिनियम, 1978 की धारा 3 के संदर्भ में कर्नाटक ग्राम पंचायत (स्कूल विकास और निगरानी समिति) (मॉडल) उपनियम, 2006 नामक अपने उपनियम बनाए हैं। उपनियम 10 (जे) और (क्यू), समिति को कुछ संपत्तियों को हासिल करने, खरीदने या अन्यथा लेने या पट्टे पर लेने या अस्थायी रूप से किराए पर लेने का अधिकार है, जो स्कूल के रूप में अपने कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक हैं, स्कूल की सभी संपत्तियों और वित्त का पर्यवेक्षण करने का अधिकार है।
कोर्ट ने कहा, इसलिए, ऐसा नहीं है कि समिति दंतहीन है। कार्यालयों के बीच किए गए पत्राचार स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि बच्चों की मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार, विशेष रूप से सरकारी स्कूल में, पर बहुत ही लापरवाही बरती गई है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
खंडपीठ ने कहा कि राज्य को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरणों से वर्ष 2020 में मुआवजा राशि प्राप्त होने पर, बिना समय गंवाए स्कूल भवन बनाने के लिए समिति के अभ्यावेदन के जवाब में तत्काल कदम उठाने चाहिए थे, ताकि बच्चों की पढ़ाई ना छूटे।
तदनुसार पीठ ने याचिका को अनुमति दी और 01-06-2023 से भूमि की पहचान के बाद स्कूल भवन के निर्माण का निर्देश दिया।
केस टाइटलः स्कूल विकास और निगरानी समिति और कर्नाटक राज्य और अन्य
केस नंबर: रिट पीटिशन नंबर 21595/2022
साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (कर) 151