12वीं कक्षा की छात्रा को नाबालिग नहीं मान सकते : दिल्ली हाईकोर्ट ने बलात्कार के मामले में POCSO चार्ज जोड़ने पर पुलिस से सवाल किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने कथित बलात्कार के एक मामले में एक आरोपी के खिलाफ लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) (POCSO) की धारा 6 लागू करने के लिए पुलिस को फटकार लगाई। कथित तौर पर पुलिस ने इस धारणा के आधार पर POCSO के तहत चार्ज जोड़ा कि चूंकि पीड़िता बारहवीं कक्षा की छात्रा है, इसलिए वह नाबालिग होनी चाहिए।
जस्टिस रजनीश भटनागर ने पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर बलात्कार के मामले को रद्द करने की मांग वाली याचिका की सुनवाई के दौरान पुलिस का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील से पूछा कि इस मामले में प्रावधान कैसे लागू किया गया।
वकील ने कहा कि चूंकि घटना के समय पीड़िता 12वीं कक्षा में थी, इसलिए यह माना गया कि वह नाबालिग होगी।
अदालत ने कहा,
“राज्य के लिए पेश हुए एपीपी द्वारा किए गए सबमिशन बेहद हास्यास्पद हैं। रिकॉर्ड पर किसी भी दस्तावेज के बिना, कोई यह कैसे मान सकता है कि पीड़िता नाबालिग है, यहां तक कि एक बालिग लड़की भी 12वीं कक्षा में हो सकती है।"
इसके बाद वकील ने स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के लिए समय मांगा। चूंकि जांच अधिकारी अदालत में उपस्थित नहीं थे, इसलिए डीसीपी को सुनवाई की अगली तारीख पर पेश होने के लिए एक नोटिस जारी किया गया है ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि आईओ अदालत में क्यों मौजूद नहीं थे।
POCSO अधिनियम की धारा 6 में गंभीर प्रवेशन यौन हमले के अपराध के लिए सजा का प्रावधान है। इसमें कहा गया है कि अपराध करने वाले किसी भी व्यक्ति को कम से कम 20 साल के सश्रम कारावास से दंडित किया जाएगा, जो आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास होगा।
मामले की अगली सुनवाई 07 मार्च को होगी।
सुल्तानपुरी के मामले में आरोपी और "पीड़िता" ने नवंबर 2022 में शादी कर ली और पति-पत्नी के रूप में खुशी-खुशी साथ रह रहे हैं।