अगर अभियोजन ने अपने बोझ का निर्वहन नहीं किया है तो अभियुक्त पर साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत उल्टा बोझ नहीं डाला जा सकताः इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2022-12-09 14:01 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अभियुक्त पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106  के तहत उल्टा बोझ नहीं डाला जा सकता [उन तथ्यों को साबित करने का बोझ, जो विशेष रूप से जानकारी में हो], जब अभियोजन पक्ष ने पहले अपने बोझ का निर्वहन नहीं किया है।

जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस अजय त्यागी की पीठ ने उक्त टिप्‍पणी के साथ अनिल नामक आरोपी की दोषसिद्धी और आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया। उस पर जून 2013 में कथित रूप से अपनी पत्नी की हत्या करने का आरोप है।

ऐसा आरोप था कि पति/आरोपी ने परिवार के अन्य सदस्य के साथ साठगांठ कर अपनी पत्नी (मृतक) को जहर दे दिया था। आरोप था कि पत्नी दहेज की मांग को पूरा नहीं कर पा रही थी।

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने के शुरुआती बोझ का निर्वहन करने में विफल रहा कि जिस समय मृतक ने जहर खाया था, अपीलकर्ता यानि उसका पति उसके साथ घर के अंदर था।

कोर्ट ने कहा,

" इसलिए, इस मामले में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 की कोई प्रयोज्यता नहीं है।" अदालत ने आरोपी पति की सजा को रद्द कर दिया।

न्यायालय ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि यह मामला दहेज हत्या का मामला है, क्योंकि अभियोजन पक्ष की ओर से जिन गवाहों की जांच की गई थी, वे सुनवाई के दरमियान मुकर गए। निचली अदालत ने भी इसे दहेज हत्या नहीं माना था।

अदालत ने कहा कि मुकदमे के दरमियान, जब आरोपी ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान दिया कि वह और मृतक अपने माता-पिता से अलग घर में रहते थे, ट्रायल कोर्ट ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 का सहारा लिया और मृत्यु के तथ्य को साबित करने का बोझ अपीलकर्ता के कंधों पर डाल दिया।

कोर्ट ने कहा,

"यह एक स्थापित तथ्य है कि अपीलकर्ता और उसकी मृत पत्नी एक ही घर में रहते थे। इसलिए, मृत्यु के तथ्य को साबित करने का भार अपीलकर्ता के कंधों पर तब तक नहीं डाला जा सकता, जब तक कि अभियोजन यह साबित नहीं करता है कि कथित घटना के समय या जिस समय मृतक ने जहर खाई, उस समय अपीलकर्ता भी घर के अंदर था।"

यह पाते हुए कि अभियोजन पक्ष ने उचित संदेह से परे मामले को साबित करने के अपने दायित्व का निर्वहन नहीं किया था, अदालत ने आईपीसी की धारा 302 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया।

केस टाइटल- अनिल बनाम यूपी राज्य [ CRIMINAL APPEAL No. - 703 of 2017]

केस साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (एबी) 522

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