क्या पत्नी आपसी सहमति से तलाक और अंतिम निपटान के रूप में एकमुश्त राशि लेने के बाद भरण-पोषण का दावा कर सकती है? कलकत्ता हाईकोर्ट ने मामला बड़ी बेंच को भेजा

Update: 2021-09-06 11:30 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह इस कानूनी मुद्दे को बड़ी पीठ के पास संदर्भित किया है कि क्या एक पत्नी आपसी सहमति से हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13 बी के तहत तलाक की डिक्री द्वारा शादी भंग करने और पत्नी को भूत, वर्तमान और भविष्य के भरण-पोषण के लिए अंतिम निपटान के रूप में एकमुश्त राशि का भुगतान करने के बाद आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा कर सकती है?

न्यायमूर्ति तीर्थंकर घोष ने इस मामले को संदर्भित करने से पहले कहा कि इस मुद्दे पर हाईकोर्ट के परस्पर विरोधी फैसले मौजूद हैं।

न्यायालय के समक्ष विचाराधीन कानूनी मुद्दा इस प्रकार है,

एक बार जब मजिस्ट्रेट को पता चलता है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत तलाक की एक डिक्री द्वारा पार्टियों के बीच विवाह को भंग कर दिया गया है और यह पाया जाता है कि पत्नी को भरण-पोषण के लिए एकमुश्त राशि प्राप्त हुई है तो निम्नलिखित परिस्थितियों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया क्या होगी?

(ए) दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत एक नया मामला दर्ज किया गया हो।

(बी) आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत कार्यवाही लंबित है और सिविल कोर्ट ने तलाक की डिक्री द्वारा विवाह को भंग कर दिया हो और सिविल कोर्ट के समक्ष आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत लंबित कार्यवाही के बारे में कोई जानकारी न हो।

(सी) दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत कार्यवाही और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी (जो पहले ही तय हो चुकी है) के तहत कार्यवाही अलग-अलग उप-विभाजनों या अलग-अलग जिले या अलग-अलग राज्यों में होने पर मजिस्ट्रेट द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया/कदम क्या होने चाहिए?

न्यायमूर्ति घोष ने कहा कि,

''जैसा कि उपरोक्त प्रश्नों में गंभीर जटिलता शामिल है, जहां तक​दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत कार्यवाही का संबंध है, मेरा विचार है कि इसे एक बड़ी बेंच को संदर्भित करना और उसी के द्वारा निपटाया जाना चाहिए (क्योंकि इस बिंदु पर इस न्यायालय के परस्पर विरोधी निर्णय हैं)। तदनुसार, मामले का रिकॉर्ड माननीय मुख्य न्यायाधीश (कार्यवाहक), हाईकोर्ट, कलकत्ता के समक्ष रखा जाए।''

पृष्ठभूमि

तत्काल मामले में, पति को अलीपुर मजिस्ट्रेट कोर्ट ने 4 मई, 2015 को आदेश दिया था कि वह आदेश की तारीख से लेकर मामले के निपटारे तक प्रति माह 3,000 रुपये अंतरिम भरण-पोषण के रूप में अपनी पत्नी को दें क्योंकि उसकी पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन दायर कर भरण-पोषण की मांग की थी।

5 मई, 2015 को पति द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 बी के तहत विवाह को भंग करने के लिए एक आवेदन दिया गया। नतीजतन, अदालत को अवगत कराया गया कि दोनों पक्ष एक सौहार्दपूर्ण समझौते पर पहुंचे हैं, जिसमें यह सहमति हुई थी कि पति पिछले, वर्तमान और भविष्य के भरण-पोषण के लिए पूर्ण और अंतिम निपटान के रूप में 2.5 लाख रुपये की राशि का भुगतान करेगा।

कोर्ट के आदेश में कहा गया कि,

''पति केवल एक बार में 2,50,000 रुपये ( दो लाख पचास हजार रुपये) की राशि याचिकाकर्ता नंबर 2 यानी पत्नी को पिछले वर्तमान और भविष्य के भरण-पोषण के लिए अंतिम निपटान के रूप में भुगतान करेगा और यह दोनों पक्षों के माता-पिता, शुभचिंतकों और दोस्तों की उपस्थिति में स्पष्ट रूप से सहमति हुई है कि अब से याचिकाकर्ता नंबर 2 के याचिकाकर्ता नंबर 1 के खिलाफ उसके भरण-पोषण के लिए और साथ ही साथ किसी भी चल और अचल संपत्ति के संबंध में दावे और मांग के अधिकार पूरी तरह समाप्त हो जाएंगे।''

नवंबर 2015 में, अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश, चंदन नगर ने आपसी सहमति पर तलाक की एक डिक्री पारित की। जिरह के दौरान, पत्नी ने अदालत के समक्ष यह भी प्रस्तुत किया कि उसे वास्तव में एकमुश्त भरण-पोषण के रूप में 2.5 लाख रुपये मिल गए हैं। यह नवंबर 2015 के आदेश में भी दर्ज किया गया।

नतीजतन, पति ने अलीपुर कोर्ट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 127 (भत्ते में परिवर्तन) के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें भरण-पोषण के लिए पहले से चल रही कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई क्योंकि उसने भरण-पोषण के लिए 2.5 लाख रुपये का भुगतान एकमुश्त राशि के रूप में कर दिया था।

हालांकि, अलीपुर मजिस्ट्रेट ने यह देखते हुए आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत किए गए आवेदन में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत चल रही कार्यवाही के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी। सीआरपीसी की धारा 127 के तहत दायर आवेदन के खारिज होने के बाद पति ने राहत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

हाईकोर्ट के समक्ष, पति के वकील ने जोर देकर कहा कि एक बार जब पत्नी ने सिविल कोर्ट के समक्ष घोषणा कर दी और शपथ पर भरण-पोषण की राशि के बारे में स्वीकार कर लिया है तो उसके बाद वह आपराधिक संहिता प्रक्रिया के अध्याय IX के प्रावधानों के तहत कोई भी दावा करने से वंचित हो जाती है।

दूसरी ओर, पत्नी ने तर्क दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत एकमुश्त राशि प्राप्त होने के बाद भी, वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा करने की हकदार होगी।

दोनों पक्षों ने अपने तर्कों का समर्थन करने के लिए काफी सारे निर्णयों का हवाला दिया। हाईकोर्ट ने नोट किया कि इस मुद्दे पर विरोधाभासी फैसले मौजूद हैं और आगे ध्यान दिया कि हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने रजनेश बनाम नेहा के केस में वैवाहिक मामलों में भरण-पोषण के भुगतान के संबंध में व्यापक दिशानिर्देश निर्धारित  किए हैं।

इसके बाद मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया गया।

पति (याचिकाकर्ता) की ओर से अधिवक्ता प्रतिम प्रिया दासगुप्ता पेश हुईं। प्रतिवादी पक्ष (पत्नी) की ओर से अधिवक्ता अयान भट्टाचार्य पेश हुए।

केस का शीर्षकः प्रसेनजीत मुखर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य व अन्य

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