क्या मैरिज रजिस्ट्रार विवाह के लिए किए गए आवेदन को विवाह के विघटन के बाद भी अपनी वेबसाइट पर अनिश्चित काल तक प्रदर्शित कर सकता है?: दिल्ली हाईकोर्ट विचार करेगा
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को मैरिज रजिस्ट्रार के कार्यालय की वेबसाइट से विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act), 1954 के तहत शादी के पंजीकरण के लिए याचिकाकर्ता द्वारा किए गए आवेदन को हटाने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया।
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली के समक्ष यह प्रश्न उठाया गया कि क्या मैरिज रजिस्ट्रार संबंधित विवाह के विघटन के बाद भी इस तरह के आवेदन को अपनी वेबसाइट पर अनिश्चित काल तक बनाए रखने का हकदार है।
विशेष विवाह अधिनियम विभिन्न धर्मों के लोगों को किसी अन्य धर्म में परिवर्तित हुए बिना विवाह में प्रवेश करने की अनुमति देता है, कुछ ऐसा जो व्यक्तिगत कानून के लिए आवश्यक है। अधिनियम की धारा 6 के तहत संबंधित विवाह अधिकारी इस तरह के विवाह के लिए संभावित आपत्तियों को आमंत्रित करने के लिए 30 दिनों के लिए सार्वजनिक नोटिस जारी करने के लिए बाध्य है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विवेक चौधरी ने 12 जनवरी, 2021 के आदेश में कहा था कि अपनी इच्छा से विवाह करने के मामले में नोटिस का अनिवार्य प्रकाशन स्वतंत्रता और निजता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जिसमें राज्य और गैर-राज्य फैक्टर के हस्तक्षेप के बिना शादी करने की स्वतंत्रता भी शामिल है।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने 2018 में वापस रजिस्ट्रार के कार्यालय में शादी के पंजीकरण के लिए एक आवेदन जमा किया था। इसके बाद 7 सितंबर, 2020 को शादी विघटित हो गई। हालांकि, विवाह के इस तरह के विघटन के बावजूद संबंधित आवेदन रजिस्ट्रार की वेबसाइट पर प्रदर्शित है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि नतीजतन, पंजीकरण के लिए संबंधित आवेदन भी विभिन्न सर्च इंजनों के माध्यम से पाया जा सकता है जिससे याचिकाकर्ता को गंभीर शर्मिंदगी और पूर्वाग्रह होता है क्योंकि उसे अपने जीवन की पिछली घटनाओं के बारे में कई असहज सवालों के जवाब देने के लिए मजबूर किया जाता है।
याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी तर्क दिया कि आवेदन याचिकाकर्ता के व्यक्तिगत डेटा को जनता के सामने उजागर करता है जिसमें उसका पता, जन्म तिथि, पिता का नाम और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी शामिल है। यह याचिकाकर्ता के निजता के मौलिक अधिकार का हनन है। तद्नुसार, याचिकाकर्ता ने न्यायालय के समक्ष प्रार्थना की कि वह रजिस्ट्रार की वेबसाइट से ऐसे पंजीकरण आवेदनों को हटाने के लिए निर्देश जारी करें।
कोर्ट ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है और कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि 4 सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल किया जाना चाहिए। यदि कोई रिज्वाइंडर हो तो इसके बाद 3 सप्ताह के भीतर दाखिल किया जा सकता है।
केस का शीर्षक: ज़केरा मर्चेंट बनाम जिला मजिस्ट्रेट राजस्व विभाग एंड अन्य।