क्या कोर्ट दो व्यक्तियों की वैवाहिक स्थिति की जांच किए बिना एक साथ रहने के लिए सुरक्षा प्रदान कर सकता है?: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने मामले को बड़ी पीठ के पास भेजा
एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह यह सवाल बड़ी पीठ को संदर्भित किया है कि क्या अदालत को एक साथ रहने वाले दो व्यक्तियों की वैवाहिक स्थिति और उस मामले की अन्य परिस्थितियों की जांच किए बिना उनको सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है?
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल की खंडपीठ ने यह भी कहा, यदि उपरोक्त का उत्तर नकारात्मक है, तो ऐसी कौन सी परिस्थितियां हैं जिनमें न्यायालय उन्हें सुरक्षा से वंचित कर सकता है?
कोर्ट ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मामले को एक बड़ी बेंच के पास भेज दिया कि कोर्ट की समन्वय शक्ति वाली विभिन्न बेंच ने संबंधित मामले पर अलग-अलग राय दी है, जिनमें,कोर्ट के अनुसार,आसानी से सामंजस्य स्थापित नहीं जा सकता है।
कोर्ट के समक्ष मामला
न्यायालय याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर एक संरक्षण याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें न्यायालय से उन्हें निजी प्रतिवादियों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए उचित निर्देश देने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता नंबर 1 को विवाहित बताया गया था और आगे कहा गया था कि याचिकाकर्ता नंबर 1 और उसकी पत्नी के बीच संबंध तनावपूर्ण थे, लेकिन उन्होंने तलाक नहीं लिया था। यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता नंबर 1 अब याचिकाकर्ता नंबर 2 के साथ भाग गया था और वे एक साथ रहना चाहते हैं, लेकिन उनका रिश्ता निजी प्रतिवादियों को स्वीकार्य नहीं है।
कोर्ट की टिप्पणियां
न्यायालय ने मुख्य न्यायाधीश से निम्नलिखित प्रश्नों पर निर्णय लेने के लिए एक बड़ी पीठ गठित करने का अनुरोध करना उचित समझाः -
-जहां एक साथ रहने वाले दो व्यक्ति एक उपयुक्त याचिका दायर करके अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग करते हैं, क्या न्यायालय को उनकी वैवाहिक स्थिति और उस मामले की अन्य परिस्थितियों की जांच किए बिना उन्हें सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है?
-यदि उपरोक्त का उत्तर नकारात्मक है, तो वे कौन-सी परिस्थितियाँ हैं जिनमें न्यायालय उन्हें सुरक्षा से वंचित कर सकता है?
महत्वपूर्ण रूप से, न्यायालय ने ''वयस्क'' वाक्याशं का उपयोग करने के बजाय, पहले प्रश्न में ''व्यक्ति'' वाक्यांश का इस्तेमाल किया है। ऐसा इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए किया गया है कि हाईकोर्ट ने पहले कुछ ऐसे मामलों में सुरक्षा प्रदान की थी, जहां दोनों याचिकाकर्ता वयस्क नहीं थे।
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के परस्पर विरोधी फैसले
दो वयस्कों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप होने के बावजूद भी पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कुछ मामलों के तथ्यों पर विचार करते हुए याचिकाकर्ताओं को संरक्षण देने से इनकार कर दिया था, हालांकि इसके विपरीत भी एक विचार न्यायालय द्वारा लिया गया है।
फिलहाल ही पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने फिर से पुष्टि की है कि संरक्षण याचिकाओं में, विवाह की वैधता से जुड़े सवाल कपल के जीवन और स्वतंत्रता के संरक्षण से इनकार करने का आधार नहीं हो सकते हैं।
जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी की सिंगल बेंच ने कहा है कि,
''वर्तमान याचिका का दायरा केवल याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के संबंध में है, इसलिए विवाह की वैधता इस तरह के संरक्षण से इनकार करने का आधार नहीं हो सकती है।''
पिछले सप्ताह ही एक और महत्वपूर्ण फैसले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप सभी के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकता, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि ऐसा रिश्ता अवैध है या विवाह का पवित्र रिश्ता बनाए बिना एक साथ रहना कोई अपराध है।
न्यायमूर्ति जयश्री ठाकुर की खंडपीठ ने एक लिव-इन कपल से संबंधित एक मामले में यह टिप्पणी की थी। पीठ ने माना था कि वह दोनों बालिग हैं और उन्होंने इस तरह का रिश्ता बनाने का फैसला किया है। साथ ही उन्होंने लड़की के परिवार के सदस्यों से अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
एक संबंधित समाचार में, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार (18 मई) को कहा था कि एक व्यक्ति को शादी या लिव-इन रिलेशनशिप के गैर-औपचारिक दृष्टिकोण के जरिए अपने साथी के साथ रिश्ते बनाने का अधिकार है।
न्यायमूर्ति सुधीर मित्तल की खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक लिव-इन-रिलेशनशिप कपल से संबंधित एक मामले में की थी। कोर्ट ने माना था कि वह दोनों बालिग हैं और उन्होंने इस तरह का रिश्ता बनाने का फैसला किया है क्योंकि वे एक-दूसरे के लिए अपनी भावनाओं के बारे में आश्वस्त हैं।
महत्वपूर्ण है कि इससे कुछ दिन पहले ही हाईकोर्ट ने एक लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था और उसके बाद पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का यह महत्वपूर्ण अवलोकन आया था। हाईकोर्ट ने उस लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था,जिन्होंने दलील दी थी कि उनको लड़की के परिजनों से खतरा है। हाईकोर्ट ने कहा था कि ''यदि इस तरह के संरक्षण का दावा करने वालों को इसकी अनुमति दे दी जाएगी, तो इससे समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा।''
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल की पीठ ने कहा था,
''याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) मुश्किल से 18 साल की है जबकि याचिकाकर्ता नंबर 2 (लड़का) 21 साल का है। वे लिव-इन रिलेशनशिप में एक साथ रहने का दावा कर रहे हैं और अपने जीवन की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) के रिश्तेदारों से संरक्षण दिलाए जाने की मांग कर रहे हैं।''
इसी तरह एक अन्य लिव-इन कपल को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह उस लिव-इन कपल की याचिका खारिज कर दी थी,जिन्होंने सुरक्षा दिए जाने की मांग करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनका कहना था कि उनके रिश्ते का विरोध किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति एचएस मदान ने अपने संक्षिप्त आदेश में कहा था कि इस कपल ने सिर्फ इसलिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है ताकि उनके उस संबंध पर स्वीकृति की मुहर लग सके जो''नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं'' है।
''वास्तव में, याचिकाकर्ता वर्तमान याचिका दायर करने की आड़ में अपने लिव-इन-रिलेशनशिप पर स्वीकृति की मुहर लगाने की मांग कर रहे हैं, जो नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है। इसलिए इस याचिका में कोई सुरक्षा आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।''
केस का शीर्षक - यश पाल व अन्य बनाम हरियाणा राज्य व अन्य, [CRWP-4660-2021 (O&M)]
आदेश डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें