क्या अधिवक्ताओं को साक्ष्य अधिनियम के दायरे से परे उनके परिसरों की तलाशी और जब्ती की प्रक्रिया निर्धारित करने के लिए एक 'विशेष वर्ग' के रूप में घोषित किया जा सकता है? एएसजी ने दिल्ली हाईकोर्ट से पूछा
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने आज दिल्ली हाईकोर्ट से पूछा कि क्या अधिवक्ताओं को भारतीय साक्ष्य अधिनियम के दायरे से परे उनके परिसरों की तलाशी और जब्ती की प्रक्रिया निर्धारित करने के लिए व्यक्तियों के एक विशेष वर्ग के रूप में घोषित किया जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ के समक्ष यह प्रश्न रखा गया, जब पीठ अधिवक्ता निखिल बोरवणकर द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक वकील के परिसर में तलाशी और जब्ती की प्रक्रिया के समय पुलिस या जांच अधिकारियों द्वारा दिशा-निर्देशों का पालन करने की मांग की गई थी।
एएसजी शर्मा ने याचिका पर नोटिस जारी करने का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता "भाई अधिवक्ताओं" के परिसरों में तलाशी और जब्ती प्रक्रिया के दौरान जांच एजेंसियों की कार्रवाई से एडवोकेट ने व्यथित होने का दावा करता है। हालांकि, उन्होंने वे कौन सा एडवोकेट है यह खुलासा नहीं किया।
एएसजी ने याचिकाकर्ता के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाते हुए तर्क दिया कि,
"यह जनहित याचिका में "अधिवक्ता" कौन है? याचिकाकर्ता और "अधिवक्ता" के बीच क्या संबंध है? याचिकाकर्ता को जनहित याचिका में यह साफ होना चाहिए।"
एएसजी ने आगे अदालत से पूछा कि क्या वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम से परे व्यक्तियों का एक "विशेष वर्ग" रखना चाहेगी। एएसजी ने बताया कि एनडीपीएस, पीएमएलए आदि जैसे विभिन्न अधिनियमों में तलाशी और जब्ती की प्रक्रिया अलग है।
एएसजी शर्मा ने तर्क दिया कि,
"क्या वे इन सब से परे एक कानून की मांग कर रहे हैं? ऐसा नहीं किया जा सकता है।"
एएसजी ने इसके अलावा कहा कि कथित अवैध तलाशी सीबीआई, आईबी, एनआईए आदि द्वारा की गई, जिन्हें याचिका में पक्षकार नहीं बनाया गया है।
एएसजी ने इसलिए मामले में अपनी आपत्तियों का विवरण देते हुए संक्षिप्त प्रस्तुतियां दाखिल करने के लिए स्थगन की मांग की।
कोर्ट ने मामले को 3 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया है। यह स्पष्ट किया जा सकता है कि नोटिस जारी नहीं किया गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण पेश हुए। उन्होंने तर्क दिया कि वकीलों के कार्यालयों से मोबाइल फोन और लैपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की जब्ती एक गंभीर समस्या है क्योंकि इसमें क्लाइंट के साथ विशेषाधिकार प्राप्त संचार होता है, जिसे साझा करना भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत निषिद्ध है। उन्होंने कहा कि सीआरपीसी भी पहले समन जारी करने का प्रावधान करती है, जब तक कि बिना समन के तलाशी करने के लिए कारण नहीं दिखाए जा सकते।
एडवोकेट भूषण ने तलाशी और जब्ती के दौरान वकीलों के हितों की रक्षा के लिए अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा बनाए गए नियमों पर भी भरोसा करने की मांग की। उन्होंने कहा कि अधिवक्ता के परिसर में पुलिस द्वारा की गई तलाशी और जब्ती एक दुर्भावनापूर्ण कार्य है जो अधिवक्ताओं को स्वतंत्र रूप से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकता है और प्रैक्टिस करने के उनके अधिकार में भी बाधा डालता है।
केस का शीर्षक: निखिल बोरवणकर बनाम जीएनसीटीडी