"क्या मंदिर समिति किसी गैर-धार्मिक उद्देश्य के लिए दान कर सकती है?" केरल हाईकोर्ट ने गुरुवयूर देवास्वोम द्वारा मुख्यमंत्री राहत कोष में दान करने के खिलाफ याचिका को बड़ी पीठ के पास भेजा

Update: 2020-05-12 05:00 GMT

केरल हाईकोर्ट ने संदेह जताया है कि क्या गुरुवयूर मंदिर की प्रबंध समिति गैर-धार्मिक उद्देश्यों के लिए दान कर सकती है?  इसी के साथ हाईकोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि वह इस मामले से जुड़ी सभी याचिकाओं को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखें ताकि इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेजा जा सके।

न्यायमूर्ति शाजी पी चैली और न्यायमूर्ति एमआर अनीथा की खंडपीठ इस मामले में हिंदू भक्तों की तरफ से दायर उन कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी,जो COVID-19 स्थिति के मद्देनजर पांच मई 2020 को गुरुवयूर देवास्वोम की समिति द्वारा मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में 5 करोड़ रुपये दान देने के खिलाफ दायर की गई थी।

सभी याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाया गया मुख्य तर्क यह था कि गुरुवयूर देवास्वोम अधिनियम 1978 की धारा 11, 12 और 27 के अनुसार समिति मंदिर के फंड का उपयोग गुरुवयूर श्रीकृष्ण मंदिर की धार्मिक गतिविधियों के अलावा किसी अन्य काम के लिए नहीं कर सकती।

हालाँकि इस विषय पर केरल हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में दो परस्पर विरोधी निर्णय दिए जा चुके हैं। इसी के मद्देनजर हाईकोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने इस मामले में बड़ी पीठ के पास भेजने का आग्रह किया है।

सीके राजन बनाम राज्य एआईआर 1994 केरल 179 मामले में हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने माना था कि मुख्यमंत्री राहत कोष में दिया गया पांच लाख रुपये का दान ''प्रशंसनीय उद्देश्यों'' के लिए था। परंतु यह अनधिकृत था, क्योंकि अधिनियम की धारा 27 ऐसे भुगतान करने के लिए प्रबंध समिति को अधिकृत नहीं करती है।

गुरुवयूर देवास्वोम प्रबंध समिति बनाम राजन, 2003 (3) केएलटी 618(एससी) मामले में शीर्ष न्यायालय ने उक्त निर्णय को बरकरार रखा था।

एक अन्य परस्पर विरोधी निर्णय में (अनिल वी बनाम केरल राज्य व अन्य डब्ल्यूपी (सी) नंबर 19035/2019) एक डिवीजन बेंच ने पांच करोड़ रुपये के दान को सही ठहराया था। यह दान 2019 में आई बाढ़ के दौरान दिया गया था।

इस फैसले में यह माना गया था कि धारा 21 (2) में उल्लिखित उद्देश्यों के लिए पर्याप्त प्रावधान करने के बाद व खंड (ए) से (जी) के तहत उल्लिखित उद्देश्यों में से सभी या किसी एक पर होने वाले व्यय को फंड में से निकाल लिया जाए तो उसके देवस्वाम प्रबंधकीय कमेटी द्वारा मुख्यमंत्री राहत कोष में दिए गए दान को अमान्य करार देने के लिए धारा 27 के प्रावधानों को एक प्रतिबंध या रोक के रूप में नहीं माना जाएगा।

पिछले दिनों ही बृजेश कुमार एम बनाम केरल राज्य व अन्य,डब्ल्यूपी(सी) नंबर 20495/2019 नामक मामले की सुनवाई की रही खंडपीठ को उक्त दोनों निर्णयों के विरोधाभास के बारे में अवगत कराया गया था। जिसके बाद इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेज दिया गया था।

इसीलिए वर्तमान में दायर सभी जनहित याचिकाओं को भी बड़ी पीठ के पास भेज दिया गया है।

पीठ ने कहा कि-

''हमारा मानना है कि सभी रिट याचिकाओं को संदर्भित मामले या पहले से ही बड़ी पीठ के पास भेजे जा चुके मामलों के साथ सुना जाना चाहिए। इसलिए, रजिस्ट्री को निर्देशित किया जाता है कि वह इन सभी रिट याचिकाओं को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखें ताकि वह इस संबंध में उचित आदेश पारित कर सकें। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि दिया गया दान इन सभी रिट याचिकाओं के परिणाम के अधीन होगा।''

इसी बीच मंदिर समिति ने दलील दी कि वह फिलहाल सीएम के राहत कोष में कोई और राशि दान नहीं करेगी।

केस का विवरण-

केस का शीर्षक- ए नागेश बनाम केरल राज्य व अन्य (और अन्य जुड़ी हुई याचिकाएं)

केस नंबर-डब्ल्यूपी (सी) नंबर 9765/2020

कोरम-न्यायमूर्ति शाजी पी चैली और न्यायमूर्ति एमआर अनीथा

प्रतिनिधित्व-एडवोकेट राजेश चाकीत, सजीथ कुमार वी, डॉ वी.एन. शंकरजी, आर कृष्णराज, वी श्यामोहन और विष्णु प्रसाद नायर (याचिकाकर्ताओं के लिए) व अधिवक्ता टीके विपिनदास (गुरुवयूर देवस्वाम बोर्ड के लिए) और एडवोकेट बिमल के नाथ (सीनियर गवर्नमेंट प्लीडर के लिए) 


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